दातौन

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


मुखशुध्दिके बिना पूजा-पाठ, मन्त्र-जप आदि निष्फल होते हैं, अत: प्रतिदिन मुख-शुद्ध्यर्थ दन्तधावन अथवा मंजनादि अवश्य करना चाहिये५ । दातौन करनेके लिये दो दिशाएँ ही विहित हैं -- ईशानकोण और पूरब । अत: इन्हीं दिशाओंकी ओर मुख करके बैठ जाय । ब्राह्मणके लिये दातौन बारह अंगुल, क्षत्रियकी नौ अंगुल, वैश्यकी छ: अंगुल और शूद्र तथा स्त्रियोकी चार-चार अंगुलकी हो । दातौन लगभग कनिष्ठिकाके समान मोटी हो । एक सिरेको कूँचकर कूँची बना ले । दातौन करते समय हाथ घुटनोंके भीतर रहे । दातौनको धोकर निन्म्लिखित मन्त्रसे अभिमन्त्रित करे --
आयुर्बलं यशो वर्च: प्रजा: पशुवसूनि च ।
ब्रह्म प्रज्ञां च मेधा च त्वं नो देहि वनस्पते ॥
इसके बाद मौन होकर मसूढ़े को बिना चोट पहुँचाये दातौन करे । दाँतोंकी अच्छी तरह सफाई हो जानेपर दातौनको तोडकर और धोकर नैऋत्य-कोणमें अच्छी जगहमें फेंक दे । जीभीसे जीभ साफकर बार्ह कुल्ले करे ।
(क) ग्राह्य दातौन-
चिड़चिड़ा, गूलर, आम, नीम, बेल, कुरैया, करंज, खैर आदिकी दातौनें अच्छी मानी जाती है । दूधवाले तथा काँटेवाले वृक्षोंकी दातौनें भे शास्त्रोमें विहित है ।
(ख) निषिध्द दातौन-
\लसोढ़ा, पलाश, कपास, नील, धव, कुश, काश आदिकी दातौन वर्जित है ।

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Last Updated : November 25, 2018

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