संस्कारप्रकरणम्‌ - श्लोक ९७ ते ११५

अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .


अथ वर्णप्रीति : । मीनालिकर्कटा १२ । ८ । ४ विप्रा : क्षत्त्रिर्मेषो हरिर्धनु : १ । ५ । ९ । शुद्रो युग्मं तुला कुम्भो ३ । ७ । ११ वैश्य : कन्या वृषो मृग : । ६ । २ । १० ॥९७॥

अथ वर्णगुण : । एको गुण : सद्दघ्वर्णे तथा वर्णोत्तमे वरे । हीनवर्णे धरे शून्यं केऽप्याहु : सद्दशेऽर्तकम्‌ ॥९८॥

नोत्तमामुद्वहेत्कन्यां ब्राह्मणीं च विशेषत : ॥ म्रियते हीनवर्णोऽयं ब्रह्मणा सद्दशी यदि । यदि जीवति भर्त्ता तु ज्येष्ठपुत्रो विनश्यति ॥९९॥

अथ वश्यप्रीति : । युग्मं ३ कुम्भस्तुलाकन्याप्रग्दलं धनुषो द्विपात्‌ ॥१७०॥

परार्द्धं धनुषश्वैव पूर्वार्द्धं मकरस्य च । केसरी वृषभा २ ख्यश्व मेषश्वैते चतुष्पदा : ॥१०१॥

नक्रो १० त्तरदलं मीनो जलचारी प्रकीर्त्तित : । कर्क : कीटकसंज्ञश्व वृश्विकस्तु सरीसृप : ॥१०२॥

सिंहं विना वशा : सर्वे द्विपदानां चतुष्पदा : ॥ भक्ष्या जलचरास्तेषां भयस्थाने सरीसृपा : ॥१०३॥

( वर्णप्रीति ) मीन १२ , वृश्चिक ८ , कर्क ४ यह राशि ब्राह्मणसंज्ञाकी हैं और मेष १ , सिंह ५ , धन ९ क्षत्रियसंज्ञाकी हैं , मिथुन ३ , तुला ७ , कुभ ११ शुद्रसंज्ञक हैं और कन्या ६ , वृष २ , मकर १० वैश्यसंज्ञाकी हैं ॥९७॥

( वर्णके गुण ) दोनोंका एक वर्ण हो अथवा वर उत्तम वर्णका हो तो १ गुण होता है और हीन वर्णका वर हो तो ० शून्य जानना , कोई आचार्थ एकसे वर्णमें आधा गुण मानते हैं , परन्तु उत्तम वर्णकी या ब्राह्मण वर्णकी कन्या नहीं विवाहनी चाहिये , यदि हीन वर्ण विवाह ले तो ब्रह्माके सद्दश हो तो भी मरजावे अथवा वर जीवे तो ज्येष्ठ पुत्र मरता है ॥९८॥९९॥

( वश्यके गुण ) मिथुन ३ , कुंभ ११ , तुला ७ , कन्या ६ , धनका पूर्वभाग यह राशि द्विपादसंज्ञक हैं , धनका उत्तरार्द्ध तथा मकरका पूर्वार्द्ध , सिंह ५ , वृष २ , मेष १ यह चतुष्पद राशि हैं ॥१००॥१०१॥

और मकरका उत्तरार्द्ध मीन १२ यह जलचर है और कर्क ४ कीटसंज्ञक है , वृश्विक ८ सरीसृपसंज्ञक है ॥१०२॥

परन्तु सिंहके विना संपूर्ण चतुष्पद द्विपद मनुष्यके वश हैं और उन्हींके जलचर भक्ष्य हैं तथा सरीसृप भयका देनेवाला है ॥१०३॥

अथ वश्ये गुणसंख्या । सख्यं वैरं च भक्ष्यं च वश्यमाहुस्त्रिधा बुधा : । वरे भक्ष्ये गुणाभावो द्वयो : सख्ये गुणद्वयम्‌ ॥१०४॥

अथ तारामैत्री । कन्याभं वरभाद्र्ण्यं वधूभाद्वरभं तथा । नवहृच्छेषभे नेष्टे सप्त ७ पंच ५ त्रि ३ संख्यके ॥१०५॥

एकतो लश्र्यते तारा शुभा चैवाशुभाऽन्यत : । तदा सार्द्धो गुणश्वैव ताराशुद्धया मिथस्त्रय : ॥१०६॥

उभयोर्न शुभा तारा तदा शून्यं समादिशेत्‌ । अथ योनिमैत्री अश्विनीवासवश्वाश्वो रेवती भरणी गज : ॥१०७॥

पुष्यश्व कृत्तिका छागो नागश्व रोहिणी मृग : । आर्द्रा मूलमपि श्वानौ मूषक : फाल्गुनी मघा ॥१०८॥

मार्जारोऽदितिराश्लेषा गोजातिस्तूत्तरात्रयम्‌ । महिषौ स्वातिहस्तौ च मृगो ज्येष्ठानुराधिके ॥१०९॥

व्याघ्रश्वित्रा विशाखा च श्रुत्याषाढे च मर्कटौ । शतं भाद्रपदा सिंहौ नकुलश्वाभिजित्स्मृत : ॥ योनय : कथिता भानां वैरं मैत्री विचार्यताम्‌ ॥११०॥

यह वश्य तीन प्रकारका है - सख्य १ , वैर २ , भक्ष्य ३ सो वैरमें तथा भक्ष्यमें गुण नहीं है और सख्यमें दो २ गुण जानना ॥१०४॥

( तारामैत्री ) वरके नक्षत्रसे कन्याके नक्षत्रतक गिने और कन्याके नक्षत्रसे वरके नक्षत्रतका गिने , फिर दोनों जगह नौ ९ का भाग दे यदि ७ । ५ । ३ बचे तो अशुभ जानना ॥१०५॥

यदि एक तरफ तारा शुभ हो और दूसरी तरफ अशुभ हो तो डेढ १॥ गुण होता है , और दोनों तरफ तारा शुभ हो तो तीन ३ गुण हो ॥१०६॥

यदि दोनों तरफ अशुभ तारा हो तो गुणका अभाव जानना ( योनि ) अश्विनी धनिष्ठाकी अश्व योनि है , रेवती भरणीकी गज है , पुष्प कृतिकाकी छाग है , रोहिणी मृगशिरकी नाग ( सर्प ) है , आर्द्रा मूलकी श्वान है , और पूर्वाफाल्गुनी मघाकी मूषा योनि है ॥१०७॥१०८॥

पुनर्वसु आश्लेषाकी मार्जार है , तीनों उत्तराओंकी गौ योनि है , स्वाती हस्तकी महिष है , ज्येष्ठा अनुराधाकी मृग योनि है ॥१०९॥

चित्र विशाखाकी व्याघ्र है , श्रवण पूर्वाषाढाकी वानर है , शतभिषापूर्वाभाद्रपदाकी सिंह है , अभिजित्‌की नकुल योनि है इस प्रकार नक्षत्रोंकी योनि जानके वैर मैत्रीका विचार करना चाहिये ॥११०॥

अथ योनिवैरम्‌ । गोव्याघ्रं गजसिंहमश्वमाहेषं श्वैणं च बभ्रूरगं वैरं वारनमेषकं च सुमहत्तद्वद्विडालोंदुरम्‍६ । लोकानां व्यवहारतस्तदपि च ज्ञात्वा प्रयत्नादिदं दंपत्योर्नृपभृत्ययोरपि सदा वर्ज्यशुभस्यार्थिभि : ॥१११॥

अथ योनिगुणा : । अष्टाविशतिताराभां योनयस्तु चतुर्दश । मैत्रं चैवातिमैत्रं च विवाहे नरयोषितो : ॥११२॥

मगद्वौरे च वौरे च स्वभावे च यथाक्रमम्‌ । मैत्रे चैवातिमैत्रे च खेंदुद्वित्रिचतुर्गुणा : ॥ ० । १ । २ । ३ । ४ ॥११३॥

अथ ग्रहमैत्री । शत्रू मंदसितौ समश्व शशिजो मित्राणि शेषा रवेस्तीक्ष्णांशुर्हिमरश्मिजश्व सुहृदौ शेषा : समा : शीतगो : । जीवेंदूष्णकरा : कुजस्य सुहदौ ज्ञोरि : सितार्की समो मित्रे सूर्यसितौ बुधस्य हिमगु : शत्रु : समाश्वापरे ॥११४॥

सूरे सौम्यसितावरी रविसुतो मध्योऽपरे त्वन्यथा सौम्यार्की सुह्रदौ समौ कुजगुरू शुक्रस्य शेषावरी । शुक्रज्ञो सुह्रदौ सम : सुरगुरू : सौम्यस्य त्वन्येऽरयो ये प्रोक्ता : सुह्रदस्त्रिकोणभवनात्तेऽमी मया कीर्तिता : ॥११५॥

गौका व्याघ्रका वैर है , गजका सिंहका वैर है , अश्व महिषका वैर है , श्वान मृगका वैर है , नकुल सर्पका , वानर मेषका , तथा बिलाव मूषेका वैर जानना चाहिये । यह वैर लोकोंके व्यवहारसे कन्यावरके और राजा नौकरके जरूर जर्जने योग्य हैं ॥१११॥

( योनिके गुण ) इसप्रकार अठ्ठाईस २८ नक्षत्रोंके योनिकी चौदा १४ प्रकारकी संज्ञा है जैसा कन्या वरके , मैत्र १ अतिमैत्र २ महान्‌ वैर ३ वैर ५ स्वाभाविक ४ इसी क्रमसे जानना और मैत्रमें ३ तीन गुण अतिमैत्रमें ४ गुण महान्‌ वैरमें शून्य० वैरमें १ गुण , स्वभावमें २ हैं ॥११२॥११३॥

( ग्रहमैत्री ) सूर्यके शनि शुक्र शत्रु हैं , बुध सम है और गुरु मंगल चन्द्रमा मित्र हैं और चन्द्रमाके सूर्य बुध मित्र हैं , बाकीके सम जानने और मंगलके गुरु सूर्य चन्द्रमा मित्र हैं और बुध वैरी १ है , शुक्र शनि सम हैं और बुधके सूर्य शुक्र मित्र हैं , चंद्रमा शुत्र है , बाकीके सम हैं ॥११४॥

गुरुके बुध शुक्र वैरी , शनि सम है , बाकीके मित्र हैं और शुक्रके बुध शनि मित्र हैं , मंगल गुरु सम हैं , बाकीके शत्रु हैं और शनैश्वरके शत्रु बुध मित्र हैं , गुरु सम है , बाकीके वैरी हैं इस प्रकार यह ग्रहके त्रिकोण भवनसे हमने मित्र वर्णन किया है ॥११५॥

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Last Updated : November 11, 2016

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