चतुर्थ पटल - रामचक्र

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


रामचक्र --- हे महादेव ! अब अत्यन्त दुर्लभ चक्रसार कहती हूँ वह रामचक्र है जो महाविद्या का ही नहीं अपितु सभी मन्त्रों का मन्दिर है । जिसमें अपना नाम आवे वही मन्त्र समस्त सिद्धियों को देने वाला है । उसी का आश्रय लेना चाहिए । हे महेश्वर ! उसके आश्रय मात्र से साधक सिद्धि प्राप्त कर लेता है - यह सत्य है , यह सत्य है ॥१२४ - १२५॥

हे प्रियवल्लभ ! हे क्रोधभैरव ! अब उसका प्रकार सुनिए । विद्वान ‍ साधक बायीं ओर से दक्षिण ओर नव अङ्क ( रेखा ) खींचे । उसके मध्य में क्रमशः १७ अङ्क ( रेखा ) खींचे । फिर दक्षिणादि क्रम से इस प्रकार उक्त विद्याओं को लिखे ॥१२६ - १२७॥

सभी गृहों में अकार से लेकर क्षकारान्त वर्ण लिखे । फिर उसमें बाला देवता से प्रारम्भ कर भ्रामरी पर्यन्त देवता मन्त्र लिखे । इसके बीच में रहने वाले आकाश गृह में सान्त ( मन्त्र ) नित्य फलप्रद है । फिर अकारादि से लेकर क्षकारान्त गृह में विलोम रीति से रक्तदन्ता से लेकर श्री विद्या पर्यन्त मन्त्रों को लिखे । फिर उसी में अनुलोम क्रम से क्षकारादि वर्णों से प्रारम्भ कर उकारान्त अक्षरों को लिखे ॥१२८ - १३०॥

इसके बाद शेष गृहों में शेष विद्यायें लिखे । फिर काय शोधन मुख्य से आरम्भ कर शैलवासिनि पर्यन्त मन्त्र को लिखे । फिर साधक २५ गृहों में रहने वाले मन्त्रों की गणना करे । अब हे योगीशवल्लभ ! उन गृहों में रहने वाले अङ्कों को कहता हूँ उन्हें सुनिए । बाला के गृह से लेकर शेष गृह पर्यन्त मुनि ७ , हस्त २ अर्थात ‍ कुल २७ गृहों में क्रमषः स्थापित किये जाने वाले अंकों को सावधान होकर सुनो -

बुद्धिमान् पुरुष इन गृहों की गणना दाहिनी ओर से करे । वसु ८ , सप्त ७ , पंचम ५ , वहिन ३ , वेद ४ , अनन्त ३ , मुनि ७ , षष्ठ ६ , आद्य १ , वेद ४ , सप्त ७ , इषु ५ , मुनि ७ , पञ्च ५ , वेद ४ , इषु ५ , वसु ८ , वेद ४ , इषु ५ , वहिन ३ , वहिन ३ , वेद ४ - इन अंकों को स्थापित करे । इसके बाद आकाश है । आकाश के बाद अग्नि का गृह है ॥१३३ - १३६॥

इसके बाद के सभी गृहों में दक्षिणावर्त क्रम से जिस प्रकार सभी अंक दिये जाने चाहिए , हे महाभैरव उन्हें सुनिए - वहिन ३ , वहिन ३ , वेद ४ , वहिन ३ , वेद ४ , वहिन ३ , श्रवण २ , अक्षि २ , वेद ४ , बाण ५ , वेद ४ , इषु ८ , सप्तक ७ , षष्ठ ६ , अष्ट ८ , सप्तम ७ , फिरा वहिन ३ , अग्नी ३ , इषु ५ , मुनि ७ , फिर मुनि ७ , इषु ५ , बाण ५ , वेद ४ , मुनि ७ , अग्नि ३ , वहिन ३ , वहिन ३ , वेदा ४ , बाण ५ , सप्त ७ , अष्ट ८ , अंक ९ , वेद ४ , बाण ५ , पंच ५ , सप्त ७ , अनल ३ , अग्नि ३ , वहिन ३ , इषु ५ , बाण ५ , बाण ५ , बेदकान्त ३ या ५ , वेदकान्त ३ या ५ , श्रुति ४ , चतुर्थक ४ , राम ३ , ऋषि ७ मुनि ७ , षष्ठ ६ , सप्त ७ , इषु ५ , राम ३ , वेक ४ , वेद ४ , सप्त ७ , अष्ट ८ , वसु ८ , नवम ९ , अष्टम ८ , सप्तम ७ , वहिन ३ , अग्नि ३ , वेद ४ , बाण ५ , वसु ८ , अष्ट ८ , अनल ३ , वेदका ४ , सप्त ७ , अष्टम ८ ये अन्य गृहों मे लिखे जाने वाले अंक मैने कह दिया है ॥१३७ - १४२॥

जिनके मन में भावना द्वारा जिसा विद्या का निवास होता है , विद्वान् साधक उसी का आश्रय ले कर जप करे तो वह निश्चित रुप से सिद्ध हो जाता है । अपना नाम तथा मन्त्र देवता को नाम को १६ अङ्कों से पूर्ण करे । फिर उत्तम साधक अपने नाम वाले गृह के अङ्क से भाग देवे । यदि अधिक शेष आवे तो वे देवता शुभ करते हैं यह निश्चित है । साधक के लिए अल्पाङ्क शेष भी सुखकारी होता है इसमें संशय नहीं ॥१४३ - १४५॥

साधक स्थिर बुद्धि से ऊपर कही गई विधि के अनुसार महाविद्या नायिका के साधन में , यज्ञ के साधन में तथा भूतादि साधनों में उक्त क्रम से ही गणना करे । हे सदाशिव ! सभी तन्त्रों में अत्यन्त गोपनीय चक्रसार हमने कहा , उस चक्र के विचार से साधक अवश्य ही सिद्धि प्राप्त करता है ॥१४६ - १४७॥

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Last Updated : July 29, 2011

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