प्रथम पटल - विविध साधनानि २

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


फिर उल्कामुखीसाधन , रक्तमुखीसाधन , वीरसाधन और नाना विधानों से निर्माणपूर्वक शवसाधन , फिर देवीसाधन , तदनन्तर अहिसाधन , फिर नक्षत्रविद्यापटल , कालीपटल , फिरा श्मशान में रहने वाली कालिका देवी का साधन , भूतसाधन , रतिक्रीडा - साधन , तदनन्तर सुन्दरीसाधन महामालासाधन , महामायादिसाधन , भद्रकालीसाधन , नीलासाधन , भुवनेशीसाधन , दुर्गासाधन , फिर अत्यन्त अदभुत वाराहीसाधन , गारुडीसाधन और चान्द्रीसाधन कहा गया है ॥२० - २४॥

ब्रह्माणीसाधन , इसके पश्चात् ‍ हंसीसाधन कहा गया है , इसके बाद माहेश्वरीसाधन और कौमारीसाधन फिर विष्णवीसाधन फिर धात्रीसाधन एवं धनदारतिसाधन , फिर पञ्चाभ्राबलिपूर्णास्या एवं नारसिंहीसाधन , कालिन्दी , रुक्मिणीविद्या और राधाविद्यादिसाधन , फिर गोपीश्वरी , पद्‍मनेत्रा पद्‍ममालादिसाधन , मुण्डमालासाधन , इसके बाद भृङ्रारीसाधन फिर सकलाकर्षिणीविद्या , फिर कपालिन्यादिसाधन , गुह्यकालीसाधन , बगलामुखीसाधन , फिर महाबालासाधन , कलावत्यादि साधन , फिर कुलजा , कालिका , कक्षा एवं कुक्कुटीसाधन , चिञ्चादेवीसाधन और शाङ्करीगूढसाधन का विस्तारपूर्वक वर्णन है ॥२५ - ३०॥

इसके बाद प्रफुल्लाब्जमुखीविद्या , फिर काकिनीसाधन , फिर कुब्जिकासाधन , फिर नित्या एवं सरस्वत्यादिसाधन , भूर्लेखासाधन , शशिमुकुटा एवं उग्रकाल्यादिसाधन , फिर मणिद्वीपेश्वरीधात्रीसाधन , यक्षसाधन , फिर केतकी , कमला , कान्तिप्रदा एवं भेद्यादिसाधन , फिर वागीश्वरी , महाविद्या एवं अन्नपूर्णादिसाधन , फिर वज्रदण्डा , रक्तमयीमन्वारीसाधन , हस्तिनीहस्तिकर्णाद्या एवं मातङ्रीसाधन का वर्णन है ॥३१ - ३४॥

इसके बाद परानन्दानन्दमयीसाधन , गतिसाधन , कामेश्वरीसाधन , महालज्जा एवं ज्वालिनीसाधन , वसुसाधन फिरा गौरी , वेताल , कङ्काली , वासवीसाधन , फिर चन्द्रास्या , सूर्यकिरणा एवं रटन्ती साधन , फिर किङ्रिनी , पावनीविद्या तथा अवधूतेश्वरी साधन कहा गया है । इस प्रकार ऊपर कही गई सभी विद्याओं का साधन करने वाला साधक साक्षाद् ‍ रुद्र स्वरूप ही है ॥३५ - ३७॥

फिर अलका , कलियुगस्था , शक्तिटङ्कार का साधन , फिर हरिणी , मोहिनी , क्षिप्रा एवं तृष्यादिसाधन , फिर अट्‍टहासा घोरनादा एवं महामेघादिसाधन का विधान है । इसके बाद अत्यद्‍भुत वल्लरी एवं कौरविणी आदि का साधन , रङ्किणी साधन , इसके बाद नन्दकन्यादिसाधन , मन्दिरासाधन तथा कात्यायनीसाधन , कहा गया है ॥३८ - ४०॥

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Last Updated : July 28, 2011

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