रूपचतुर्दशी - हनूमानुत्सव

दीपावली के पाँचो दिन की जानेवाली साधनाएँ तथा पूजाविधि कम प्रयास में अधिक फल देने वाली होती होती है और प्रयोगों मे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है ।  


हनूमान् के भक्तों को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को उत्सव मनाना चाहिए । प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर निम्नलिखित संकल्प लेना चाहिए ।

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टविंशतितमे

कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे २०६७ वैक्रमाब्दे शोभन संवत्सरे कार्तिक मासे कृष्णपक्षे चतुर्दश्याम तिथौ शुक्रवासरे मध्याह्नसमये शुभ मुहूर्ते ...

( अपने गोत्र का नाम लें ) गोत्रोत्पन्नो ... ( अपने नाम का उच्चारण करें ) शर्मा / वर्मा / गुप्तः अहं मम शौर्यौदार्यधैर्यादिवृद्ध्य़र्थं हनूमत्प्रीतिकामनया हनूमत्महोत्सवमहं करिष्ये ।

हनूमान भक्त को इस दिन उपवास करना चाहिए । दोपहर में हनूमान् जी पर सिन्दूर में सुगन्धित तेल या घी मिलाकर उसका लेप (चोला ) करना चाहिए । तदुपरान्त चॉंदी के वर्क लगाने चाहिए । चोला चढ़ाने के उपरान्त हनूमान् जी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए । इसके लिए सर्वप्रथम गणेश अम्बिका पूजन करें । तदुपरान्त षोडशमातृका एवं नवग्रह की पूजा करें ।

हनूमान् जी के पूजन से पूर्व सीताराम जी का पूजन भी अवश्य करना चाहिए । उक्त समस्त प्रक्रिया के पश्चात् प्रधान पूजा में हनूमान् जी के पूजन हेतु सर्वप्रथम हाथ में अक्षत एवं पुष्प लें तथा निम्नलिखित मन्त्र से हनूमान् जी का ध्यान करे ।

अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं । सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ ॐ हनूमते नमः ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि ।

अक्षता एवं पुष्प हनूमानजी के समक्ष अर्पित करें ।

आवाहनः हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र से श्री हनूमान् जी का आवाहन करें ।

ॐ हनूमते नमः आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ॥

अब पुष्प समर्पित करें ।

आसनः निम्नलिखित मंत्र से हनूमान् जी को आसन अर्पित करे ।

तप्तकाञ्चनर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् । अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ॥

आसन के लिए कमल अथवा गुलाब का पुष्प अर्पित करें । इसके पश्चात् निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए हनूमान् जी के समक्ष किसी पात्र अथवा भूमि पर तीन बार बल छोड़े और बोलें ।

पाद्यं , अर्घ्यं , आचमनीयं समर्पयामि

स्नानः इस मन्त्र के द्वारा गंगाजल अथवा अन्य किसी पवित्र नदी के जल से अथवा शुद्ध जल से हनूमान् जी को स्नान कराएँ ।

मन्दाकिन्यास्तु यद् वारि सर्वपापहरं शुभम् ।

तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।

पञ्चामृत स्नानः शुद्धोदक स्नान के पश्चात् हनूमान् जी को पञ्चामृत से स्नान करवाएँ ।

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् । पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , पंचामृत स्नानं समर्पयामि ॥

शुद्धोदक स्नानः निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए हनूमान् जी को पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएँ

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् । तदिदं कल्पितं तभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ॥

वस्त्रः इस मन्त्र से वस्त्र समर्पित करेः

शीतवातोष्णंसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम् । देहालंकरणं धृत्वा , मतः शान्ति प्रयच्छ मे ॥

ॐ हनूमते नमः , वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि ।

आभूषणः हनूमान् जी को आभूषण अर्पित करेः

रत्नकंकणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च । सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥

ॐ हनूमते नमः , आभूषणं समर्पयामि ॥

गन्ध : हनूमान् जी को गन्ध (रोली -चन्दन ) अर्पित करेः

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , गन्धं समर्पयामि ॥

सिन्दूरः इसके पश्चात् निम्नलिखित मंत्र से हनूमान् जी को सिन्दूर अर्पित करेः

सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये । भक्त्यां दत्तं मया देव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , सिन्दूरं समर्पयामि ॥

कुंकुमः इसमें पश्चात् निम्नलिखित मंत्र से हनूमान् जी को कुंकुम अर्पित करेः

तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च । मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्र्वरः॥

ॐ हनूमते नमः कुंकुमं समर्पयामि ।

अक्षतः निम्नलिखित मंत्र से हनूमान् जी को अक्षत अर्पित करेः

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुमुमाक्ताः सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्र्वरः॥

ॐ हनूमते नमः , अक्षतान् समर्पयामि ॥

पुष्प एवं पुष्पमालाः हनूमान् जी को पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित करे ।

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो । मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ।

ॐ हनूमते नमः , पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि ॥

धूपः निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए हनूमान् जी को सुगंधित धूप अर्पित करे ।

वनस्पतिरसोद्भतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः । आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , धूपमाघ्रापयामि ॥

दीपः धूप के पश्चात् निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए हनूमान् जी को दीप दिखाएँ ।

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया । दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥

ॐ हनूमते नमः , दीपकं दर्शयामि ॥

नैवद्यः निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए हनूमान् जी को नैवेद्य (प्रसाद ) अर्पित करे ।

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च । आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , नैवेद्यं निवेदयामि ॥

उत्तरापाऽनार्थ हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ।

ऐसा कहते हुए जल अर्पित करें ।

ऋतुफलः अग्रलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए हनूमान् जी को ऋतुफल अर्पित करेः

इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव । तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥

ॐ हनूमते नमः , ऋतुफलं समर्पयामि ॥

ऋतुफलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥

इसके पश्चात् आचमन हेतु जल छोड़े ।

ताम्बुलः निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए लौंग इलायचीयुक्त पान चढ़ाएँ :

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् । एलालवङ्गसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ हनूमते नमः , मुखवासार्थे ताम्बूलवीटिकां समर्पयामि ।

दक्षिणाः इस मन्त्र के द्वारा हनूमान् जी को दक्षिणा चढ़ाएँ ।

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।

अनन्तपुण्यफलदमतः शांति प्रयच्छ मे ॥

ॐ हनूमते नमः , पूजासाफल्यार्थं दक्षिणां समर्पयामि ॥

आरतीः अन्त में एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक प्रज्वलित कर आरती करें ।

आरति श्री अंजनिकुमार की ।

शिवस्वरूप मारुतनन्दन केसरीसुअन कलियुग कुठार की ॥

हियमें राम -सीय नित राखत ,

मुखसों राम -नाम -गुण भाखत् ,

सुमधुर भक्ति प्रेम रस चाखत ,

मंगलकर मंगलाकारकी ॥ आरति ....

विस्मृत -बल -पौरुष , अतुलित बल ,

दहन दनुज -वन हित , दावानल ,

ज्ञानि -मुकुट -मणि , पूर्ण गुण सकल ,

मंजु भूमिशुभ सदाचारकी ॥

मन -इन्द्रिय -विजयी , विशाल मति ,

कलानिधान , निपुण गायक अति ,

छन्द -व्याकरण -शास्त्र अमित गति ,

रामभक्त अतिशय उदार की ॥ आरति .....

पावन परम सुभक्ति प्रदायक ,

शरणागतको सब सुखदायक ,

विजयी वानर -सेना -नायक ,

सुगति -पोतके कर्णधारकी ॥ आरति .....

पुष्पाञ्जलि और प्रदक्षिणाः अब पुष्पाञ्जलि और प्रदक्षिणा करे

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च ।

पुष्पाञ्जलिर्मया दत्ता गृहाण परमेश्र्वरः॥

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे ।

ॐ श्रीहनूतमे नमः , प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि ॥

समर्पणः निम्नलिखित का उच्चारणय करते हुए हनूमान् जी के समक्ष पूजन कर्म को समर्पित करें और इस निमित्त जल अर्पित करे ।

कृतेनानेन पूजनेन श्री हनूमत्देवतायै प्रीयतां न मम ॥

उक्त प्रक्रिया के पश्चात् श्रीहनूमानजी के समक्ष दण्डवत् प्रणाम करें तथा अनजाने में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा माँगते हुए , हनूमानजी से सुखसमृद्धि , आरोग्य तथा वैभव की कामना करें। .

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Last Updated : November 01, 2010

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