रूपचतुर्दशी - महत्व

दीपावली के पाँचो दिन की जानेवाली साधनाएँ तथा पूजाविधि कम प्रयास में अधिक फल देने वाली होती होती है और प्रयोगों मे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है ।  


प्रातःकाल चन्द्रोदय के समय चतुर्दशी विद्यमान होने के कारण रूपचतुर्दशी का स्नान एवं दीपदान इसी दिन किया जाएगा । रूपचतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व अर्थात् तारों की छॉंव में स्नान करने का विधान है । स्नान तेलमर्दन एवं उबटन के पश्चात् किया जाना चाहिए । इसके पश्चात् अपामार्ग का प्रोक्षण तथा तुम्बी को अपने ऊपर सात बार घुमाने की क्रिया की जाती है । उसके पश्चात् यमतर्पण किया जाता है । यमतर्पण का विशेष महत्त्व है । चतुर्वगंचिन्तामणि में उल्लेख है कि यमतर्पण से वर्षभर के संचित पापों का नाश हो जाता है ।
रूपचतुर्दशी को प्रातःकाल देवताओं के लिए दीपदान किया जाता है । दीपदान पूर्वाभिमुख होकर किया जाना चाहिए । दीपदान के साथ अपने इष्टदेव एवं सर्वदेवों का पूजन किया जाता है ।
इस बार हनूमानुत्सव भी क्षेत्रीय भिन्नता एवं मतभिन्नता के आधार पर दो दिन मनाया जाएगा । इसका कारण यह है कि एक मत से हनूमान् जी का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को अर्धरात्रि में माना गया है । उस मत से हनूमान् जयन्ती के रूप में माना गया है । उस मत से हनूमान् जयन्ती के रूप में हनूमानुत्सव 4 नवम्बर को मनाया जाएगा । दूसरे मत के अनुसार हनुमानुत्सव 5 नवम्बर को मनाया जाएगा, क्योंकि उस दिन सूर्योदयकालीन एवं मध्याह्नकालीन चतुर्दशी विद्यमान है । इसके अतिरिक्त कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हनूमान्जी को सीता से सिन्दूर प्राप्त होने के रूप में जो हनूमानुत्सव मनाया जाता है, वह सूर्योदयकालीन चतुर्दशी के आधार पर मनाया जाता है । यह हनूमानुत्सव 5 नवम्बर को होगा ।
हनूमान्-उत्सव के दिन हनूमान् जी निमित्त व्रत किया जाता है । और मध्याह्न में हनूमान् मन्दिर में जाकर चोला चढ़ाया जाता है और उनकी विशेष पूजा की जाती है । दीपावली भी ५ नवम्बर को ही मनायी जाएगी । यद्यपि इस दिन सूर्योदयकालीन अमावस्या नहीं है, परन्तु इस सम्बन्ध में विधान यह है कि प्रदोषकाल में कार्तिक कृष्ण अमावस्या होने पर दीपावली मनायी जाती है । इस बार शुक्रवार के दिन १३:०२ बजे तक चतुर्दशी रहेगी । उसके पश्चात् अमावस्या आएगी और अमावस्या दूसरे दिन अर्थात् शनिवार को १०:२२ पर ही समाप्त हो जाएगी । इस प्रकार 5 नवम्बर शुक्रवार को ही प्रदोषकाल में अमावस्या होने के कारण दीपावली मनायी जाएगी । दीपावली पर प्रदोषकाल, वृषभलग्न अथवा सिंह लग्न में महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है । महालक्ष्मी पूजन के साथ ही दीपमाला प्रज्वलन का कार्य होता है । उसके पश्चात् रात्रि में अखण्ड दीपक का प्रज्वलन करते हुए जागरण किया जाना चाहिए । जागरण के दौरान महालक्ष्मी के विशिष्ट स्तोत्र यथा; श्रीसूक्त, महालक्ष्मी-अष्टक, महालक्ष्मी-कवच, कमलाशतनामस्तोत्र एवं नाममन्त्रावली इत्यादि का एक या अधिक बार पाठ करना चाहिए । इसके अतिरिक्त पुरुषसूक्त, गोपालसहस्त्रनाम, गोपालशतनामस्तोत्र एवं नाममन्त्रावली, श्री काली अष्टोत्तरशतनामस्तोत्र एवं नाममन्त्रावली इत्यादि का भी पाठ करना चाहिए ।.

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Last Updated : November 01, 2010

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