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नाभागः [nābhāgḥ] N. N. of the son of Vaivasvata Manu. ˚अरिष्टः N. of the son of Vaivasvata Manu.
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नाभाग m. m. (
cf. नभ-ग, नभाग) N. of a son of मनुवैवस्वत, [MBh.] ; [Hariv.] ; [Pur.]
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नाभाग n. वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक, एवं प्राचीनकाल के एक महाप्रतापी राजा [पद्म. सृ.८] । कई ग्रंथों में, इसे वैवस्वत मनु का पौत्र, एवं नभग राजा का पुत्र कहा गया है [म.आ.७७.१४] ;[भा.९.४०] । इसने समुद्रपर्यत पृथ्वी को सात दिन में जीता था, एवं सत्य के द्वारा उत्तम लोकों पर विजय पायी थी [म.व.२६.११] । पृथ्वी को जीतने के बाद, इसने उसे दक्षिणा के रुप में ब्राह्मणों को दे दिया [म.शां.९७.२१] । किंतु शीलवान् एवं दयालु होने के कारण, दी हुई पृथ्वी स्वयं इसके पास वापस आ गयी [म.शां.१२४.१६-१७] । इसने जीवन में कभी मांस नहीं खाया था । मांसभक्षण के त्याग के इस पुण्य के कारण, इसे ‘परावरतत्त्व’का ज्ञान हो गया, एवं ब्रह्मलोक में इसे प्रवेश मिल गया [म.अनु.११५.५८-६८] । इसके सत्याचरण एवं उदारता की एक कथा पद्मपुराण में दी गयी है । अपने कुमाराअयु में, यह गुरुगृह में विद्यार्जन कर रहा था । यह मौका देख, वैवस्वत मनु के अन्य पुत्रों ने उसका राज्य आपस में बॉंट लिया । नाभाग को उसके राज्य के हिस्से से वंचित कर, इसे इसका पिता हिस्से के रुप में दिया । फिर इसके पिता ने इसे कहा, ‘तुम चिंता मत करो । विपुल धनार्जन का रास्ता मैं तुम्हे दिखाता हूँ । आंगिरस ऋषि यज्ञ कर रहे है । यज्ञ के छठवे दिन उन्हे कुछ भ्रम सा हो कर, यज्ञ के मंत्र की उन्हे विस्मृति हो जाती है । उस वक्त, तुम उसे देओ ‘विश्वदेवसूक्त’गा कर बताओ । उससे उसका यज्ञ पूरा होगा, एवं प्रसन्न हो कर, यज्ञ के लिये एकत्रित किया सारा धन वह तुम्हे दे देंगा।’ पिता के कथनानुसार, इसने अंगिरस् को ‘मंत्रस्मरण के बार एमें सहायता दी ’ एवं अंगिरस् ने भी यज्ञ का सारा धन इसे दे दिया । किंतु इसी वक्त एक कृष्णवर्णीय पुरुष का रुप धारण कर, रुद्र वहॉं उपस्थित हुआ, एवं यज्ञधन मॉंगने लगा । यज्ञ का अवशिष्ट धन पर रुद्र का ही अधिकार रहता है, यह जानते ही नामाग ने सार द्रव्य रुद्र को दे दिया । इसकी इस उदारता से प्रसन्न हो कर, रुद्र दे दिया । इसके इस उद्धारता से प्रसन्न हो कर, रुद्र ने आंगिरस के यज्ञ की सारी संपत्ति नाभाग को प्रदान की एवं इसे ‘ब्रह्मविद्या’ भी सिखायीं [पद्म.सृ८] । विल्कुल यही कथा नाभानेदिष्ट के नाम पर प्राचीन वैदिक ग्रंथों में दी गयी है [ऋ.१०.६१-६२] । ऋग्वेद के उन सूक्तों की रचना ‘नाभाककाण्व’ ने की हैं [ऋ.८.३९-४१] ;[नि.१०.५] । नाभाग को अंबरीष नामक एक पुत्र था । इसके वंश की विस्तृत जानकारी बारह पुराणों में दी गयी है [वायु.८९.विष्णु.४.२] ;;[अग्नि.२७२] ;[ब्रह्मांड.३.६३] ;[ब्रह्म.७] ;[मत्स्य.१२] ;[ह.वं.१.१०] ;[भा.९.४-६] ।
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patron. of अम्बरीष, [MBh.]
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