एक जङगल में महाचतुर नाम का गीदड़ रहता था । उसकी दृष्टि में एक दिन अपनी मौत आप मरा हुआ हाथी पड़ गया । गीदड़ ने उसकी खाल में दाँत गड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं से भी उसकी खाल उघेड़ने में उसे सफलता नहीं मिली । उसी समय वहाँ एक शेर आया । शेर को आता देखकर वह साष्टांग प्रणाम करने के बाद हाथ जोड़कर बोला----"स्वामी ! मैं आपका दास हूँ । आपके लिये ही इस मृत हाथी की रखवाली कर रहा हूँ । आप अब इसका यथेष्ट भोजन कीजिये ।"

शेर ने कहा----"गीदड़ ! मैं किसी और के हाथों मरे जीव का भोजन नहीं करता । भूखे रह कर भी मैं अपने इस धर्म का पालन करता हूँ । अतः तू ही इसका आस्वादन कर । मैंने तुझे भेंट में दे दिया ।"

शेर के जाने के बाद वहाँ एक बाघ आया । गीदड़ ने सोचा : ’एक मुसीबत कोतो हाथ जोड़ कर टाला था, इसे कैसे टालूँ ? इसके साथ भेद-नीति का ही प्रयोग करना चाहिए । जहाँ सामदाम की नीति न चले वहाँ भेद-नीति ही अपना काम करती है । भेद-नीति ही ऐसी प्रबल है कि मोतियों को भी माला में बाँध देती है ।’ यह सोचकर वह बाघ के सामने ऊँची गर्दन करके गया और बोला----

"मामा ! इस हाथी पर दाँत न गड़ाना । इसे शेर ने मारा है । वह अभी नदी पर स्नान करने गया है और मुझे रखवाली के लिये छो़ड़ गया है । वह यह भी कह गया है कि यदि कोई बाघ आए तो उसे बता दूँ, जिससे वह सारा जङगल बाघों से खाली कर दे ।"

गीदड़ की बात सुनकर बाघ ने कहा----"मित्र ! मेरी जीवनरक्षा कर, प्राणों की भिक्षा दे । शेर से मेरे आने की चर्चा न करना ।" यह कह कर वह बाघ वहाँ से भाग गया ।

बाघ के जाने के बाद वहाँ एक चीता आया । गीदड़ ने सोचा----’चीते के दाँत तीखे होते हैं, इससे हाथी की खाल उघड़वा लेता हूँ ।’ यह सोच वह उसके पास जाकर बोला----"भगिनीसुत ! क्या बात है, बहुत दिनों में दिखाई दिये हो । कुछ भूख से सताए मालूम होते हो । आओ, मेरा आतिथ्य स्वीकार करो । देखो, यह हाथी शेर ने मारा है, मैं इसका रखवाला हूँ । जब तक शेर नहीं आता, तब तक इसका माँस खाकर जल्दी से भाग जाओ । मैं उसके आने की खबर दूर से ही दे दूँगा ।"

गीदड़ थोड़ी दूर पर खड़ा हो गया और चीता हाथी की खाल उघेड़ने में लग गया । जैसे ही चीते ने एक दो जगहों से खाल उघेड़ी, वैसे ही गीदड़ चिल्ला पड़ा : "शेर आ रहा है, भाग जा ।" चीता यह सुनकर भाग खड़ा हुआ ।

उसके जाने के बाद गीदड़ ने उघड़ी जगहों से माँस खाना शुरु कर दिया । लेकिन अभी एक दो ग्रास ही खाए थे कि एक गीदड़ आ गया । गीदड़ तो उसका समशक्ति ही था । इसलिये वह उस पर टूट पडा़ और उसे दूर तक भगा आया । इसके बाद बहुत दिनों तक वह उस हाथी का मांस खाता रहा ।

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यह कहानी सुनाकर बन्दर ने कहा----"तभी तुझे भी कहता हूँ कि स्वजातीय से युद्ध करके अभी निपट ले, नहीं तो उसकी जड़ जम जाएगी । वही तुझे नष्ट कर देगा । स्वजातियों का यही दोष है कि वही विरोध करते हैं, जैसे कुत्तों ने किया था ।"

मगर ने कहा---"कैसे ?"

बन्दर ने तब कुत्ते की यह कहानी सुनाई ----

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Last Updated : February 21, 2008

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