आमुख

दक्षिण देश के एक प्रान्त में महोलारोप्य नाम का नगर था । वहां एक महादानी, प्रतापी राजा अमरशक्ति रहता था । उसके अनन्त धन था; रत्‍नों की अपार राशि थी; किन्तु उसके पुत्र बिल्कुल जड़्बुद्धि थे । तीनों पुत्रों----बहुशक्ति, उग्रशक्ति, अनन्तशक्ति---के होते हुए भी वह सुखी न था । तीनों अविनीत, उच्छृङखल और मूर्ख थे ।

राजा ने अपने मन्त्रियों को बुलाकर पुत्रों की शिक्षा के संबंध में अपनी चिन्ता प्रकट की । राजा के राज्य में उस समय ५०० वृत्ति-भोगी शिक्षक थे । उनमें से एक भी ऐसा नहीं था जो राजपुत्रों को उचित शिक्षा दे सकता । अन्त में राजा की चिन्ता को दूर करने के लिए सुमति नाम के मन्त्री ने सकलशास्त्र-पारंगत आचार्य विष्णुशर्मा को बुलाकर राजपुत्रों का शिक्षक नियुक्त करने की सलाह दी ।

राजा ने विष्णुशर्मा को बुलाकर कहा कि यदि आप इन पुत्रों को शीघ्र ही राजनीतिज्ञ बनादेंगे तो मैं आपको १०० गांव इनाम में दूँगा । विष्णुशर्मा ने हँसकर उत्तर दिया----"महाराज ! मैं अपनी विद्या को बेचता नहीं हूँ । इनाम की मुझे इच्छा नहीं है । आपने आदर से बुलाकर आदेश दिया है इसलिये ६ महीने में ही मैं आपके पुत्रों को राजनीतिज्ञ बनादूंगा । यदि मैं इसमें सफल न हुआ तो अपना नाम बदल डालूंगा ।"

आचार्य का आश्‍वासन पाकर राजा ने अपने पुत्रों का शिक्षण भार उनपर डाल दिया और निश्‍चिन्त हो गया । विष्णुशर्मा ने उनकी शिक्षा के लिये अनेक कथायें बनाईं । उन कथाओं द्वारा ही उन्हें राजनीति और व्यवहार-नीति की शिक्षा दी । उन कथाओं के संग्रह का नाम ही ’पंचतंन्त्र’ है । पांच प्रकरणों में उनका विभाग होने से उसे ’पंचतंन्त्र’ नाम दिया गया ।

राजपुत्र इन कथाओं को सुनकर ६ महीने में ही पूरे राजनीतिज्ञ बन गये । उन पांच प्रकरणों के नाम हैं : १---मित्रभेद, २--मित्रसम्प्राप्ति, ३---काकोलूकीयम, ४--लब्धप्रशाशम् और ५---अपरीक्षितकारकम्। प्रस्तुत में पांचों प्रकरण दिये गये हैं ।

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Last Updated : February 19, 2008

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