हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|तत्त्वान्वय का| आत्मारामनिरूपणनाम तत्त्वान्वय का वाल्मीकस्तवननिरूपणनाम सूर्यस्तवननिरूपणनाम पृथ्वीस्तवननिरूपणनाम आपनिरूपणनाम अग्निनिरूपणनाम महद्भूतनिरूपणनाम आत्मारामनिरूपणनाम नानाउपासनानिरूपणनाम गुणभूतनिरूपणनाम समास आठवां - आत्मारामनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास आठवां - आत्मारामनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ नमन गणपति मंगलमूर्ति । जिससे ही मतिस्फूर्ति । लोक भजते स्तवन करते । आत्मा का ॥१॥ नमन वैखरी वागेश्वरी । अभ्यंतर में प्रकाशकारी । नाना रहस्य विवरणकारी । नाना विद्या ॥२॥ सकल जनों में नाम । रामनाम उत्तमोत्तम । श्रम जाकर विश्राम । पाया चंद्रमौलि ने ॥३॥ नाम की महिमा महत्तर । रूप कैसा उत्तरोत्तर । परात्पर परमेश्वर । त्रैलोक्यधर्ता ॥४॥ आत्माराम चारों ओर । लोग घूमते इधर-उधर । मृत्यु होती देह गिरकर । आत्मा के बिना ॥५॥जीवात्मा शिवात्मा परमात्मा । जगदात्मा विश्वात्मा गुप्तात्मा । आत्मा अंतरात्मा सूक्ष्मात्मा । देवदानवमानवों में ॥६॥ सकल मार्ग चलते बोलते । अवतार पंक्ति की गति । आत्मा के कारण होते जाते । ब्रह्मादिक ॥७॥ नादरूप ज्योतिरूप । साक्षिरूप सत्तारूप । चैतन्यरूप सस्वरूप । द्रष्टारूप जानिये ॥८॥ नरोत्तमु वीरोत्तमु । पुरुषोत्तमु रघोत्तमु । सर्वोत्तमु उत्तमोत्तमु । त्रैलोक्यवासी ॥९॥ नाना खटपट और चटपट । नाना लटपट और झटपट । आत्मा न हो तो सब सपाट । चारों ओर ॥१०॥तितर बितर आत्मा के बिन । शव बेचारा आत्मा के बिन । कबर प्रत्यक्ष आत्मा के बिन । शरीर की ॥११॥आत्मज्ञानी समझे मन में । देखे जनों को पास आत्मा के । भुवन में अथवा त्रिभुवन में । आत्मा बिना उजाड़ ॥१२॥ परम सुंदर और चतुर । जाने सकल सारासार । आत्मा बिन अंधकार । उभय लोक में ॥१३॥ सर्वांग में सावधान सिद्ध । नाना भेद नाना वेध । नाना खेद और आनंद । उसी के कारण ॥१४॥ रंक अथवा ब्रह्मादिक । एक ही चलाये अनेक । देखें नित्यानित्यविवेक । कोई एक ॥१५॥ पद्मिनी नारी जिसके घर में । आत्मा रहने तक प्रीति करे । आत्मा जाने पर शरीर में । तेज कैसा ॥१६॥आत्मा दिखे ना न भासे ना । बाह्याकार से अनुमान में आये ना । नाना मन की कल्पना । आत्मा से ही ॥१७॥ आत्मा शरीर में वास्तव्य करे । सारा ब्रह्मांड विवरण से भरे । वासना भावना अनेक प्रकार से । कहें भी तो कितनी ॥१८॥ मन की अनंत वृत्ति । कल्पना अनंत उठीं। अनंत प्राणी कहें कितनी । अंतरंग उनका ॥१९॥ अनंत राजकारण धरना । कुबुद्धि सुबुद्धि का विवरण करना । समझने न देना चुकाना । प्राणीमात्र को ॥२०॥एक दूसरे को तकते ताकते । एक दूसरे के लिये नष्ट होते छिपते । शत्रुत्व की स्थिति गति ये । चारों ओर ॥२१॥ पृथ्वी में अनेक प्रकार से । एक दूसरे को हराते धोखा देते । कई भक्त विविध प्रकार से । परोपकार करते ॥२२॥ एक आत्मा अनंत भेद । देह के अनुरूप लेता स्वाद । आत्मा मूलतः अभेद । भेद भी रखता ॥२३॥ पुरुष को स्त्री चाहिये । स्त्री को पुरुष चाहिये । वधु को वधु चाहिये । यह तो होता नहीं ॥२४॥ पुरुष का जीव स्त्री की जीवी । उठापटक नहीं ऐसी कहीं । विषयसुख की गुत्थी । वहां भेद है ॥२५॥ जिस प्राणी का जो आहार । वहीं होता है तत्पर । पशु के आहार में नर । अनादर रखते ॥२६॥ आहारभेद देहभेद । गुप्त प्रकट उदंड भेद । वैसे ही जानिये आनंद । अलग अलग ॥२७॥ सिंधु भूगर्भ के नीर । उन नीर में शरीर । आवरणोदक के जलचर । अत्यंत विशाल ॥२८॥ सूक्ष्म दृष्टि अगर लाये मन में । तो शरीर का पार ना लगे । तब फिर अंतरात्मा अनुमान में । आयेगा कैसे ॥२९॥ देहात्मयोग खोजकर देखा । उससे कुछ अनुमान किया । कोलाहल स्थूल सूक्ष्म का । है उलझन ॥३०॥उलझन सुलझाने के लिये । नाना निरूपण किये । अंतरात्मा कृपालुता से । बोला बहुतों के मुखों से ॥३१॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मारामनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP