हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|अखंडध्याननाम| कवित्वकलानिरूपणनाम अखंडध्याननाम निस्पृहलक्षणनाम भिक्षानिरूपणनाम कवित्वकलानिरूपणनाम कीर्तनलक्षणनाम हरिकथालक्षणनिश्चयनाम चातुर्यलक्षणनाम युगधर्मनिरूपणनाम अखंडध्याननिरूपणनाम शाश्वतनिरूपणनाम मायानिरूपणनाम समास तीसरा - कवित्वकलानिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास तीसरा - कवित्वकलानिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ कवित्वशब्दसुमनमाला । अर्थपरिमल निराला । उससे संतषट्पदकुल । होते आनंदित ॥१॥ ऐसी माला अंतःकरण में । पिरोकर पूजा रामचरणों में । ओंकार तंतु अखंडता में । खंडित ही ना हो ॥२॥परोपकार के कारण । कवित्व अवश्य करना । उस कवित्व के लक्षण । कहे जाते ॥३॥ जिससे हो भगवद्भक्ति । जिससे हो विरक्ति । ऐसे कवित्व की युक्ति । बढायें पहले ॥४॥ क्रिया के बिन शब्दज्ञान । उसे ना मानते सज्जन । इस कारण देव प्रसन्न । अनुताप से करें ॥५॥ देव के रहते प्रसन्न । वाणी से निकलते जो जो वचन । वे रहते अति श्लाघ्य वचन । इसका नाम प्रासादिक ॥६॥ ढीठ पाठ प्रासादिक । ऐसे कहते अनेक । तो यह त्रिविध विवेक । कहता हूं ॥७॥ ढीठ याने ढिठाई से किया । जो जो अपने मन में आया । हठपूर्वक कवित्व रचाया । इसे कहते ढीठ ॥८॥ पाठ याने अनुवाद । बहुत देख लिये ग्रंथांतर । उनकी नकल फिर । स्वयं ने उतारी ॥९॥ शीघ्र ही कवित्व जोड़ दिया । दृष्टि देखा वर्णन किया । भक्ति विरहित जो किया । उसका नाम ढीठपाठ ॥१०॥ कामिक रसिक शृंगारिक । वीर हास्य प्रास्ताविक । कौतुक विनोद अनेक । इसका नाम ढीठपाठ ॥११॥मन हुआ कामाकार । वैसे ही निकलते उद्गार । ढीठपाठ से भव पार । मिलता नहीं ॥१२॥ होने को उदर शांति । करनी पडती नरस्तुति । वहां किये जो व्युत्पत्ति । इसका नाम ढीठपाठ ॥१३॥कवित्व ना हो ढीठपाठ । कवित्व ना हो खटपट । कवित्व ना हो उद्धट । पाखंड मत ॥१४॥ कवित्व ना हो वादांग । कवित्व ना हो रसभंग । कवित्व ना हो रंग भंग । दृष्टांतहीन ॥१५॥ कवित्व ना हो फैलाव केवल । कवित्व ना हो बकबक । कवित्व ना हो कुटिल । लक्ष्य बनाकर ॥१६॥ हीन कवित्व न रहें । कहा हुआ ही न कहें । छंद भंग न करें । मुद्राहीन ॥१७॥ व्युत्पत्तिहीन तर्कहीन । कलाहीन शब्दहीन । भक्तिज्ञानवैराग्यहीन । कवित्व ना हो ॥१८॥ भक्ति हीन जो कवित्व । उसे ही जानें उज्जड मत । रुचिहीन वक्तृत्व । ऊबानेवाला ॥१९॥ भक्ति बिन जो अनुवाद । उसे ही जानें विनोद । प्रीति बिना संवाद । होता है कब ॥२०॥ अस्तु ढीठ पाठ है ऐसे । झूठी अहंता के उन्माद जैसे । अब प्रासादिक वह कैसे । कहे जाते ॥२१॥वैभव कांता कांचन । जिसे लगे कि ये वमन । अंतरंग में लगा ध्यान । सर्वोत्तम का ॥२२॥ जिसे घडी हर घडी । लगे भगवंत से प्रीति । चढ़ती बढ़ती रूचि । भगवद्भजन की ॥२३॥ जो भगवद्भजन के बिन । जाने ना दे एक क्षण । सर्वकाल अंतःकरण | रंगा भक्ति रंग से ॥२४॥ जिसके अंतरंग में भगवंत । अचल रहा हो शांत । वह सहज ही करे जो बात । वह ब्रह्मनिरूपण ॥२५॥अंतरंग में बैठा गोविंद । उसे लगा भक्तिछंद । भक्ति बिन अनुवाद । अन्य नहीं ॥२६॥ अंतरंग में हो रूचि जैसे । वैखरी कहती वैसे । करुणा कीर्तन करे भाव से । नाचे प्रेमोन्नत होकर ॥२७॥भगवंत से लगा जो मन । उसे न रहता देहभान । शंका लज्जा कर पलायन । दूर ही रहती ॥२८॥ वह प्रेम रंग से रंगा । वह भक्ति मद से मत्त हुआ । उसने अहंभाव को रौंदा । पैरों तले ॥२९॥ गाता नाचता निःशंक । उसे कैसे दिखते लोक । दृष्टि में त्रैलोक्यनायक । आ बसा ॥३०॥ ऐसा भगवंत में जो रंगा । और कुछ ना उसको लगे । स्वइच्छा से कहने लगा । ध्यान कीर्ति प्रताप ॥३१॥ नाना ध्यान नाना मूर्ति । नाना प्रताप नाना कीर्ति । उसके समक्ष नरस्तुति । तृणतुल्य लगे ॥३२॥ अस्तु ऐसा जो भगवद्भक्त । जो इस संसार से विरक्त । उसे मानते मुक्त । साधुजन ॥३३॥ उसकी भक्ति का कौतुक । इसका नाम प्रासादिक। सहज बोलते ही विवेक । प्रकट होये ॥३४॥ सुनो कवित्वलक्षण । किया जो वही करुं निरूपण । जिससे शांत हो अंतःकरण । श्रोताओं के ॥३५॥कवित्व हो निर्मल । कवित्व हो सरल । कवित्व हो प्रांजल । अन्वययुक्त ॥३६॥ कवित्व में हो भक्ति बल । कवित्व में हो निराला अर्थ । कवित्व हो अलग । अहंता से ॥३७॥ कवित्व में हो कीर्ति बढ़कर । कवित्व हो रम्य मधुर । कवित्व हो भरपूर । प्रताप विषयक ॥३८॥ कवित्व हो सरल । कवित्व हो अल्परूप । कवित्व हो सुरूप । चरणबद्ध ॥३९॥ मृदु मंजुल कोमल । भव्य अद्भुत विशाल । गौल्य माधुर्य रसीला । भक्ति रस से ॥४०॥ अक्षरबद्ध पदबद्ध । नाना चातुर्य प्रबंध । नाना कौशल्ययुक्त छंदबद्ध । धाटी मुद्रा अनेक ॥४१॥ नाना युक्ति नाना बुद्धि । नाना कला नाना सिद्धि । नाना अन्वय साधे । नाना कवित्व ॥४२॥ नाना साहित्य दृष्टांत । नाना तर्क वितर्क युक्त । नाना सम्मति सिद्धांत । पूर्व पक्ष से ॥४३॥ नाना गति नाना व्युत्पत्ति । नाना मति नाना स्फूर्ति । नाना धारणा नाना धृति । इसका नाम कवित्व ॥४४॥ शंका आशंका प्रत्युत्तर । नाना काव्य शास्त्राधार । टूटे संशय निर्धार । से करते ही निर्धार ॥४५॥ नाना प्रसंग नाना विचार । नाना योग नाना विवर । नाना तत्त्वचर्चासार । इसका नाम कवित्व ॥४६॥ नाना साधन पुरश्चरण । नाना तप तीर्थाटन । नाना संदेह निरसन । इसका नाम कवित्व ॥४७॥ जिससे अनुताप उपजे । जिससे लौकिक लजाये । जिससे ज्ञान उपजे । उसका नाम कवित्व ॥४८॥ यह ज्ञान प्रबल हो जिससे । यह वृत्ति शांत हो जिससे । समझे भक्तिमार्ग जिससे । उसका नाम कवित्व ॥४९॥ जिससे देहबुद्धि टूटे । जिससे भवसिंधु सूखे । जिससे भगवंत प्रकटे । उसका नाम कवित्व ॥५०॥ जिससे सद्बुद्धि उपजे । जिससे पाखंड भग्न होये । जिससे विवेक जागे । उसका नाम कवित्व ॥५१॥जिससे सद्वस्तु भासे । जिससे भ्रम निरसन होये । भिन्नत्व नष्ट हो जिससे । उसका नाम कवित्व ॥५२॥जिससे हो समाधान । जिससे टूटे संसार बंधन । जिसे मानते सज्जन । इसका नाम कवित्व ॥५३॥ ऐसे कवित्वलक्षण । कहने में वे असाधारण । परंतु कुछ एक निरूपण । किया समझाने के लिये ॥५४॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे कवित्वकलानिरूपणनाम समास तीसरा ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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