श्राद्धकर्म -२

श्राद्ध ग्रहण करनेवाले नित्य पितर ही श्राद्धकर्ताओं को श्रेष्ठ वरदान देते हैं ।


सूतजी कहते हैं: एक समय महामुनि मार्कण्डेय जी राजा रोहिताश्व के यहाँ पधारे और यथायोग्य सत्कार के बाद उन्हें कथा सुनाने लगे । कथा के अन्त में राजा रोहिताश्व ने कहा - "भगवन ! मैं श्राद्धकल्प का यथार्थरूप से श्रवण करना चाहता हूँ ।

मार्कण्डेय जी बोले: राजन ! यही बात आनर्तनरेश ने भर्तृयज्ञ से पूछी थी । वही प्रसंग सुनाता हूँ ।
आनर्त नरेश ने पूछा: ब्रह्मन ! श्राद्ध के लिए कौन सा समय विहित है? श्रद्धोपयोगी द्रव्य कौन से हैं ? श्राद्ध के लिए कौन कौन सी वस्तुएं पवित्र मानी गयी हैं ? कैसे ब्राह्मण श्राद्धकर्म में सम्मिलित करने योग्य है और कैसे ब्राह्मण त्याज्य माने गए हैं ?

भर्तृयज्ञ ने कहा: राजन ! विद्वान पुरुष को अमावस्या के दिन अवश्य श्राद्ध करना चाहिए । क्षुधा से क्षीण हुए पितर श्राद्धान्न की आशा से अमावस्या तिथि आने की आशा करते रहते हैं । जो अमावस्या तिथि को जल या शाक से भी श्राद्ध करता है, उसके पितर तृप्त होते हैं और उसके समस्त पातकों का नाश हो जाता है ।

आनर्त ने पूछा: विशेषतः अमावस्या को श्राद्ध करने का विधान क्यों है ? मरे हुए जीव तो अपने कर्मानुसार शुभाशुभ गति को प्राप्त होते हैं; फिर श्राद्धकाल में वे अपने पुत्र के घर कैसे पहुँच पाते हैं ?

भर्तृयज्ञ ने कहा: महाराज ! जो लोग यहाँ मरते हैं, उनमें से कितने ही लोग जन्म ग्रहण करते हैं, कितने ही पुण्यात्मा स्वर्गलोक में स्थित होते हैं और कितने ही पापात्मा जीव यमलोक के निवासी हो जाते हैं । कुछ जीव भोगानुकूल शरीर धारण करके अपने किये हुए शुभाशुभ कर्म का उपभोग करते हैं । राजन ! यमलोक या स्वर्गलोक में रहनेवाले पितरों को भी तब तक भूख प्यास अधिक होती है, जब तक कि वे माता या पिता से तीन पीढ़ी के अंतर्गत रहते हैं, उनमें भूख-प्यास की अधिकता रहती है । पितृलोक या देवलोक के पितर तो श्राद्धकाल में सूक्ष्म शरीर से आकर श्राद्धीय ब्राह्मणो के शरीर में स्थित होकर श्रद्धभाग ग्रहण करते हैं; परन्तु जो पितर कहीं शुभाशुभ भोग में स्थित हैं या जन्म ले चुके हैं, उनका भाग दिव्य पितर आकर ग्रहण करते हैं और जीव जहाँ जिस शरीर में होता है - वहां तदनुकूल भोग की प्राप्ति कराकर उसे तृप्ति पहुंचाते हैं । ये दिव्य पितर नित्य और सर्वज्ञ होते हैं । पितरों के उद्देश्य से सदा ही अन्न और जल का दान करते रहना चाहिए । जो नीच मानव पितरों के लिए अन्न और जल न देकर आप ही भोजन किया करता या जल पीता है, वह पितरों का द्रोही है । उसके पितर स्वर्ग में अन्न और जल नहीं पाते हैं । इसलिए शक्ति के अनुसार अन्न और जल उनके लिए अवश्य देने चाहिए । श्राद्ध द्वारा तृप्त किये हुए पितर मनुष्य को मनोवांछित भोग प्रदान करते हैं ।

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Last Updated : May 08, 2024

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