हिंदी सूची|पूजा एवं विधी|नित्य कर्म पूजा|संध्या-प्रकरण|जपके पूर्वकी चौबीस मुद्राएँ| जपके पूर्वकी चौबीस मुद्राएँ जपके पूर्वकी चौबीस मुद्राएँ जपके पूर्वकी चौबीस मुद्राएँ गायत्री-मन्त्रका विनियोग जपके पूर्वकी चौबीस मुद्राएँ प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे. Tags : devatadevipoojaदेवतादेवीपूजा जपके पूर्वकी चौबीस मुद्राएँ Translation - भाषांतर जपके पूर्वकी चौबीस मुद्राएँसुमुखं सम्पुटं चैव विततं विस्तृतं तथा।व्दिमुखं त्रिमुखं चैव च चतुष्पत्र्चमुखं तथा॥षण्मुखाऽधोमुखं चैव व्यापकात्र्चलिकं तथा।शकटं यमपाशं च ग्रथितं चोन्मुखोन्मुखम्॥प्रलम्बं मुष्टिकं चैव मत्स्य: कूर्मो वराहकम्।सिहाक्रान्तं महाक्रान्तं मुद्गरं पल्लवं तथा॥एता मुद्राश्चतुर्विशज्जपादौ परिकीर्तिता:॥१) सुमुखम्-दोनों हाथोंकी अँगुलियोंको मोडकर परस्पर मिलाये।२) सम्पुटम्-दोनों हाथोंको फ़ुलाकर मिलाये।३) विततम्-दोनों हाथोंकी हथेलियाँ परस्पर सामने करे ।४) विस्तृतम्-दोनों हाथोंकी अँगुलियाँ खोलकर दोनोंको कुछ अधिक अलग करे।५) व्दिमुखम्-दोनों हाथोंकी कनिष्ठिकासे कनिष्ठिका तथा अनामिकासे अनामिका मिलाये।६) त्रिमुखम्-पुन: दोनों मध्यमाओंको मिलाए।७) चतुर्मुखम्-दोनों तर्जनिया और मिलाये।८) पत्र्चमुखम्-दोनों अंगूठे और मिलाये।९) षण्मुखम्-हाथ वैसे ही रखते हुए दोनों कनिष्ठिकाओंको खोले।१०) अधोमुखम-उलटे हाथोंकी आँगुलियोंको मोडे तथा मिलाकर नीचेकी ओर करे।११) व्यापकात्र्चलिकम्-वैसे ही मिले हुए हाथोंको शरीरकी ओर घुमाकर सीधा करे।१३) शकटम-दोनों हाथोंको उलटाकर अँगुठेसे अँगुठा मिलाकर तर्जनियोंको सीधा रखते हुए मुठ्ठी बाँधे।१४) ग्रथितम् -दोनों हाथोंकी अँगुलियोंको परस्पर गूँथे।१५) उन्मुखोन्मुखम्-हाथोंकी पाँचो अँगुलियोंको मिलाकर प्रथम बायेपर दाहिना, फ़िर दाहिनेपर बायाँ हाथ रखे।१६) प्रलम्बम्-अँगुलियोंको कुछ मोड दोनों हाथोंको उलटाकर नीचेकी ओर करे।१७) मुष्टीकम्-दोनों अँगुठे ऊपर रखते हुए दोनों मुठ्ठीयाँ बाँधकर मिलाये।१८) मत्स्यः-दाहिने हाथकी पीठपर बायाँ हाथ उलटा रखकर दोनों अँगुठे हिलाये।१९) कूर्म-सीधे बाये हाथकी मध्यमा, अनामिका तथा कनिष्ठिकाको मोडकर उलटे दाहिने हाथकी मध्यमा, अनामिकाको उन तीनों अँगुलियोंके नीचे रखकर तर्जनीपर दाहिनी कनिष्ठिका और बायें अँगुठेपर दाहिनी तर्जनी रखे।२०) वराहकम्-दाहिनी तर्जनीको बायें अँगुठेसे मिला, दोनों हाथोंकी अँगुलियोंको परस्पर बाँधे।२१) सिंहाक्रान्तम्-दोनों हाथोंकी अँगुलियोंको कानोंके समीप करे ।२२) महाक्रान्तम्-मुट्ठी बाँध, दहिनी कुहनी बायों हथेलीपर रखे ।२३) मुद्गरम्-मुठ्ठी बाँध, दाहिनी कुहनी बायी हथेलीपर रखे।२४) पल्लवम्-दाहिने हाथकी अँगुलियोंको मुखके सन्मुख हिलाये। N/A References : N/A Last Updated : November 27, 2018 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP