विवाहप्रकरणम्‌ - श्लोक ५४ ते ७२

अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .


अथ विवाहमासा : । माघफाल्गुनवैशाखे यद्यूढा मार्गशीर्षके । ज्येष्ठे वाऽऽषाढमासे च सुभगा वित्तसंयुता ॥५४॥

( विवाहके मास ) माघ . फाल्गुन , वैशाख , मार्गशिर , ज्येष्ठ , आषाढ , इन महीनोंमें विवाही हुई कन्या श्रेष्ठ भाग्य और धनको भोगनेवाली होती है ॥५४॥

अथ निषिद्धमासा : । श्रावणे वा‍ऽपि पौषे च कन्या भाद्रपदे तथा ॥ चैत्राश्वयुक्कार्त्तिकेषु याति वैधव्यतां लघु ॥५५॥

अथ पौषादिषु विशेष : ॥ पौषेऽपि कुर्यान्मकरस्थितेऽर्के चैत्रे भवेन्मेषगतो यदा स्यात्‌ । प्रशस्तमाषाढकृतं विवाहं वदंति गर्गा मिथुनस्थितेऽकें ॥५६॥

अथ विवाहे जन्ममासादिवर्जनम्‌‍ । जन्ममासे जन्मभे च नच जन्मदिने बुध : । ज्येष्ठमासे न ज्येष्ठस्य विवाहं कारयेत्कचित्‌ ॥५७॥

न कन्यावरयोर्ज्येष्ठे न ज्येष्ठो दोषमावहेत्‌ ॥५८॥

अथ मार्गे विशेष : । मार्गे मासि तथा ज्येष्ठे क्षौरं परिणयं व्रतम्‌ । ज्येष्ठपुत्रदुहित्रोश्व यत्नेन परिवर्जयेत्‌ ॥५९॥

सिंहे गुरौ गते कार्यो न विवाह : कदाचन । मेषस्थे च दिवानाथे सिंहस्थोऽपि शुभप्रद : ॥६०॥

( निषिद्ध मास ) श्रावण , पौष , आश्विन , भाद्रपद , चैर , कार्त्तिंक इन महीनोंमेम विवाह करनेसे विधवा , मंदभागिनी होती है ॥५५॥

( पौषादिमें विशेष ) पौषमें मकरका सूर्य हो और चैत्रमें मेषका सूर्य हो और आषाढमें मिथुनका सूर्य हो तो गर्गऋषि विवाहको श्रेष्ठ कहते हैं ॥५६॥

( विवाहमें जन्ममासादिका प्रतिषेध ) जन्मका मास , जन्मनक्षत्र , जन्मदिन और ज्येष्ठ पुत्र पुत्र कन्याके विवाहमें ज्येष्ठ मास वर्जने योग्य है ॥५७॥

परंच दोनों ज्येष्ठ वरकन्याओंका विवाह ज्येष्ठमें नहीं करे और यदि वरकन्याओंमें एक ज्येष्ठ हो तथा दूसरा कनिष्ठ हो तो ज्येष्ठ मासका दोष नहीं है ॥५८॥

( मार्गमें विशेष ) मार्गशिरमें तथा ज्येष्ठमें ज्येष्ठ पुत्र या कन्याका चौल ( बाल उतराना ) विवाह यज्ञोपवीत कदापि नहीं करना चाहिये ॥५९॥

सिंहराशिपर बृहस्पति हो तो विवाह नहीं करे और मेषपर सूर्य़ आनेसे करे तो विवाह शुभ है ॥६०॥

अथ विवाहनक्षत्राणि । रोहिण्युत्तररेवत्यो मूलं स्वातिर्मृगो मघा । अनुराधा च हस्तस्व विवाहे मंगलप्रदा : ॥६१॥

अथ विवाहे वर्ज्यतिथ्यादि । षष्ठो ६ दर्शो ३० ऽष्टमी ८ रिक्रा : ४।९।१५ कृष्णपक्षां त्यपंचके ११ । १२ । १३ । १४ ३० । शुक्ला च प्रतिपन्नेष्टा १ स्तिथयोऽन्यास्तु शोभना : ॥६२॥

अथ रिक्तासु विशेष : । रिक्तासु विधवा कन्या दर्गेऽपि स्याद्विवाहिता । शनैस्वरदिने चैव यदा रिक्त तिथिर्भवेत्‌ । तस्मिन्‌ विवाहिता कन्या पतिसंतानवर्द्धिता । सौम्यबारा : शुभा मध्यौ सूर्यमन्दौ कुजोऽधम : । वर्जयेद्वारवेलां च गण्डांतं जन्मभं तथा ॥६३॥

भद्रां क्रकचयोगं च तिथ्यंतं यमघंटकम्‌ । दग्धां तिथिं च भांत च कूलिकं च विवर्जयेत्‌ ॥६४॥

अथ वारवेला । तुयों ४ ऽकें सप्तम ७ श्वन्द्रे द्वितीयो २ भूमिनन्दने । चन्द्रपुत्रे पंचमश्व ५ देवाचार्ये तथाऽष्टम : ८ ॥६५॥

दैत्यपूज्ये तृतीय ३ श्व शनौ षष्ठ श्व निंदित : । प्रहरार्द्ध : शुभे कार्ये वारवेला च कथ्यते ॥६६॥

 

( विवाहके नक्षत्र ) रोहिणी , उत्तरा ३ , मूल , स्वाति , मृगशिर , मघा , अनुराधा , हस्त यह नक्षत्र विवाहमें शुभ हें ॥६१॥

( वर्जनीय तिथि आदि ) ६।३०।८।४।९।१४ कृष्णपक्षमें ११।१२।१३।१४।३० शुक्लपक्षकी प्रतिपदा १ यह तिथि विवाहमें त्याज्य है , बाकीकी श्रेष्ठ जानना ॥६२॥

( रिक्तामें विशेष ) रिक्ता ४।९।१४ तिथि अमावस्यामें विवाह करे तो विधवा हो और यदि रिक्ता तिथिके दिन शनैश्वरवार हो तो विवाही हुई कन्या पतिसंतानकी वृद्धि करनेबाली होती है । विवाहमें शुभवार शुभ हैं और सूर्य शनि मध्यम हैं , मंगलवार निषिद्ध है , और वारवेला , गंडांत , जन्मनक्षत्र , भद्रा , क्रकच योग , तिथिका अंत , यमघंट योग , दग्धा तिथि , नक्षत्रका अंत और कुलिक योग विवाहमें वर्जने चाहिये ॥६३॥६४॥

( वारवेला ) आदित्यवारको चौथे ४ पहरकी चार घडी वाग्वेलाकी हैं , सोमवारको सातवें ७ पहरकी ४ घडी , मंगलको दूसरे पहरकी ४ घडी , बुधको पांचवें पहरकी ४ घडी , गुरुवारको आठवें पहरकी ४ घडी , शुक्रवारको तीसरे पहरकी ४ घडी और शनिवारको छटें पहरकी ४ घडी . वारवेलाकी हैं सो विवाह आदि शुभकार्योंमें निषिद्ध हैं ॥६५॥६६॥

अथ गंडांतम्‌ ॥ मासांते दिनमेकं तु तिथ्यंते घटिकाद्वयम्‌ । घटिका त्रतपं भान्ते विवाहे परिवर्जयेत्‌ ॥६७॥

अथ गंडांतफलम्‌ ॥ मासांते म्रियते कन्या तिथ्यंते स्यादपुत्रिणी । नक्षत्रान्ते च वैधव्य विष्टौ मृत्युर्द्वयोर्भवेत ॥६८॥

अथ कुलिकयोग : ॥ सूर्ये च सप्तमी ७ सोमे षष्ठीं ६ भौमे च पंचमी ५ । बुधे चतुर्थी ४ देवेज्ये तृतीया भृगुनंदने ॥६९॥

द्वितीया वर्जनीया च प्रतिपच्च शनैश्वरे । कुलिकाख्यो हि योगोऽवं विवाहादौ न शस्यते ॥७०॥

अथ कुलिकादिफालम्‌ ॥ निधनं प्रहरार्द्धे तु नि : स्वत्वं यमघंटके । कुलिके सर्वनाश : स्याद्रात्रावेते न दोषदा : ॥७१॥

अथ परिहारा : । मत्स्यागमगधांध्रेषु यमघटस्तु दोषकृत्‌ । काश्मीरे कुलिक दुष्टमर्धयामस्तु सर्वत : ॥७२॥

( गंडांत ) संक्रांतिके अंतका १ दिन , तिथिके अंतकी २ घडी और नक्षत्रके अंतकी ३ घडी गंडांत संज्ञाकी हैं सो विहाहमें अशुभ हैं ॥६७॥

( गण्डान्तफल ) मासांतमें कन्याका नाश हो , तिथिके अंतमें पुत्ररहित हो और नक्षत्रके अंतमें विवाह करे तो विधवा हो और भद्रामें करे तो दोनोंकी मृत्यु होवे ॥६८॥

( कुलिकयोग ) आदित्यवारको सप्तमी ७ तिथि , सोमवारको षष्ठी ६ तिथि , मंगलको पंचमी ५ , बुधको चतुर्थी ४ , बृहस्पतिको तृतीया ३ , शुक्रको द्वितीया २ , शनिको प्रतिपदा १ हो तो कुलिक योग होता है सो यह कुलिक योग विवाहमें त्याज्य है ॥६९॥७०॥

( कुलिकादिफल ) वारवेलामें विवाह करे तो मृत्यु हो , यमघंटमें दरिद्र और कुलिकर्मे सर्वनाश हो परंतु इनका दोष रात्रिमें नहीं है ॥७१॥

( परिहार ) यमघंटयोग मत्स्य , अंग , मगध , आंध्र इन देशोंमें और कुलिक काश्मीरमें त्याज्य है , परन्तु वारवेला संपूर्ण देशोंमें त्यागनी चाहिये ॥७२॥

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Last Updated : November 11, 2016

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