हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|हिन्दी कथा|रंजक कथा|बेताल पच्चीसी| पच्चीसवीं कहानी बेताल पच्चीसी जानकारी कथारंभ पहली कहानी दूसरी कहानी तीसरी कहानी चौथी कहानी पाँचवीं कहानी छठी कहानी सातवीं कहानी आठवीं कहानी नवीं कहानी दसवीं कहानी ग्यारहवीं कहानी बारहवीं कहानी तेरहवीं कहानी चौदहवीं कहानी पन्द्रहवीं कहानी सोलहवीं कहानी सत्रहवीं कहानी अठारहवीं कहानी उन्नीसवीं कहानी बीसवीं कहानी इक्कीसवीं कहानी बाईसवीं कहानी तेईसवीं कहानी चौबीसवीं कहानी पच्चीसवीं कहानी बेताल पच्चीसी - पच्चीसवीं कहानी बैताल पचीसी की कहानियाँ भारत की सबसे लोकप्रिय कथाओं में से हैं। Tags : storyvetal panchavishiकथाबेताल पच्चीसीहिन्दी पच्चीसवीं कहानी Translation - भाषांतर योगी राजा को और मुर्दे को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बोला, "हे राजन्! तुमने यह कठिन काम करके मेरे साथ बड़ा उपकार किया है। तुम सचमुच सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो।"इतना कहकर उसने मुर्दे को उसके कंधे से उतार लिया और उसे स्नान कराकर फूलों की मालाओं से सजाकर रख दिया। फिर मंत्र-बल से बेताल का आवाहन करके उसकी पूजा की। पूजा के बाद उसने राजा से कहा, "हे राजन्! तुम शीश झुकाकर इसे प्रणाम करो।"राजा को बेताल की बात याद आ गयी। उसने कहा, "मैं राजा हूँ, मैंने कभी किसी को सिर नहीं झुकाया। आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिए।"योगी ने जैसे ही सिर झुकाया, राजा ने तलवार से उसका सिर काट दिया। बेताल बड़ा खुश हुआ। बोला, "राजन्, यह योगी विद्याधरों का स्वामी बनना चाहता था। अब तुम बनोगे। मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है। तुम जो चाहो सो माँग लो।"राजा ने कहा, "अगर आप मुझसे खुश हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आपने जो चौबीस कहानियाँ सुनायीं, वे, और पच्चीसवीं यह, सारे संसार में प्रसिद्ध हो जायें और लोग इन्हें आदर से पढ़े।"बेताल ने कहा, "ऐसा ही होगा। ये कथाएँ ‘बेताल-पच्चीसी’ के नाम से मशहूर होंगी और जो इन्हें पढ़ेंगे, उनके पाप दूर हो जायेंगे।"यह कहकर बेताल चला गया। उसके जाने के बाद शिवाजी ने प्रकट होकर कहा, "राजन्, तुमने अच्छा किया, जो इस दुष्ट साधु को मार डाला। अब तुम जल्दी ही सातों द्वीपों और पाताल-सहित सारी पृथ्वी पर राज्य स्थापित करोगे।"इसके बाद शिवाजी अन्तर्धान हो गये। काम पूरे करके राजा श्मशान से नगर में आ गया। कुछ ही दिनों में वह सारी पृथ्वी का राजा बन गया और बहुत समय तक आनन्द से राज्य करते हुए अन्त में भगवान में समा गया।समाप्त N/A References : N/A Last Updated : January 22, 2014 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP