यक्षिणी साधना - वनस्पति यक्षिणियां

भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया , उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है ।


वनस्पति यक्षिणियां

कुछ ऐसी यक्षिणियां भी होती हैं , जिनका वास किसी विशेष वनस्पति ( वृक्ष - पौधे ) पर होता है । उस वनस्पति का प्रयोग करते समय उस यक्षिणी का मंत्र जपने से विशेष लाभ प्राप्त होता है । वैसे भी वानस्पतिक यक्षिणी की साधना की जा सकती है । अन्य यक्षिणियों की भांति वे भी साधक की कामनाएं पूर्ण करती हैं ।

वानस्पतिक यक्षिणियों के मंत्र भी भिन्न हैं । कुछ बंदों के मंत्र भी प्राप्त होते हैं । इन यक्षिणियों की साधना में काल की प्रधानता है और स्थान का भी महत्त्व है ।

जिस ऋतु में जिस वनस्पति का विकास हो , वही ऋतु इनकी साधना में लेनी चाहिए । वसंत ऋतु को सर्वोत्तम माना गया है । दूसरा पक्ष श्रावण मास ( वर्षा ऋतु ) का है । स्थान की दृष्टि से एकांत अथवा सिद्धपीठ कामाख्या आदि उत्तम हैं । साधक को उक्त साध्य वनस्पति की छाया में निकट बैठकर उस यक्षिणी के दर्शन की उत्सुकता रखते हुए एक माह तक मंत्र - जप करने से सिद्धि प्राप्त होती हैं ।

साधना के पूर्व आषाढ़ की पूर्णिमा को क्षौरादि कर्म करके शुभ मुहूर्त्त में बिल्वपत्र के नीचे बैठकर शिव की षोडशोपचार पूजा करें और पूरे श्रावण मास में इसी प्रकार पूजा - जप के साथ प्रतिदिन कुबेर की पूजा करके निम्नलिखित कुबेर मंत्र का एक सौ आठ बार जप करें -

'' ॐ यक्षराज नमस्तुभ्यं शंकर प्रिय बांधव ।

एकां मे वशगां नित्यं यक्षिणी कुरु ते नमः ॥

इसके पश्चात् अभीष्ट यक्षिणी के मंत्र का जप करें । ब्रह्मचर्य और हविष्यान्न भक्षण आदि नियमों का पालन आवश्यक है । प्रतिदिन कुमारी - पूजन करें और जप के समय बलि नैवेद्य पास रखें । जब यक्षिणी मांगे , तब वह अर्पित करें । वर मांगने की कहने पर यथोचित वर मांगें । द्रव्य - प्राप्त होने पर उसे शुभ कार्य में भी व्यय करें ।

यह विषय अति रहस्यमय है । सबकी बलि सामग्री , जप - संख्या , जप - माला आदि भिन्न - भिन्न हैं । अतः साधक किसी योग्य गुरु की देख - रेख में पूरी विधि जानकर सधना करें , क्योंकि यक्षिणी देवियां अनेक रुप में दर्शन देती हैं उससे भय भी होता है । वानस्पतिक यक्षिणियों के वर्ग में प्रमुख नाम और उनके मंत्र इस प्रकार हैं -

बिल्व यक्षिणी - ॐ क्ली ह्रीं ऐं ॐ श्रीं महायक्षिण्यै सर्वेश्वर्यप्रदात्र्यै ॐ नमः श्रीं क्लीं ऐ आं स्वाहा ।

इस यक्षिणी की साधना से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।

निर्गुण्डी यक्षिणी - ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।

इस यक्षिणी की साधना से विद्या - लाभ होता है ।

अर्क यक्षिणी - ॐ ऐं महायक्षिण्यै सर्वकार्यसाधनं कुरु कुरु स्वाहा ।

सर्वकार्य साधन के निमित्त इस यक्षिणी की साधना करनी चाहिए ।

श्वेतगुंजा यक्षिणी - ॐ जगन्मात्रे नमः ।

इस यक्षिणी की साधना से अत्याधिक संतोष की प्राप्ति होती है ।

तुलसी यक्षिणी - ॐ क्लीं क्लीं नमः ।

राजसुख की प्राप्ति के लिए इस यक्षिणी की साधना की जाती है ।

कुश यक्षिणी - ॐ वाड्मयायै नमः ।

वाकसिद्धि हेतु इस यक्षिणी की साधना करें ।

पिप्पल यक्षिणी - ॐ ऐं क्लीं मे धनं कुरु कुरु स्वाहा ।

इस यक्षिणी की साधना से पुत्रादि की प्राप्ति होती है । जिनके कोई पुत्र न हो , उन्हें इस यक्षिणी की साधना करनी चाहिए ।

उदुम्बर यक्षिणी - ॐ ह्रीं श्रीं शारदायै नमः ।

विद्या की प्राप्ति के निमित्त इस यक्षिणी की साधना करें ।

अपामार्ग यक्षिणी - ॐ ह्रीं भारत्यै नमः ।

इस यक्षिणी की साधना करने से परम ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

धात्री यक्षिणी - ऐं क्लीं नमः ।

इस यक्षिणी के मंत्र - जप और करने से साधना से जीवन की सभी अशुभताओं का निवारण हो जाता है ।

सहदेई यक्षिणी - ॐ नमो भगवति सहदेई सदबलदायिनी सदेववत् कुरु कुरु स्वाहा ।

इस यक्षिणी की साधना से धन - संपत्ति की प्राप्ति होती है । पहले के धन की वृद्धि होती है तथा मान - सम्मान आदि इस यक्षिणी की कृपा से सहज ही प्राप्त हो जाता है ।

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Last Updated : December 26, 2010

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