हिंदी सूची|पूजा एवं विधी|विशिष्ट पूजा|दीपावली की पूजा|गौवत्स द्वादशी| गोत्रिरात्र व्रत गौवत्स द्वादशी महत्व व्रत-कथा गोत्रिरात्र व्रत गौवत्स द्वादशी - गोत्रिरात्र व्रत दीपावली के पाँचो दिन की जानेवाली साधनाएँ तथा पूजाविधि कम प्रयास में अधिक फल देने वाली होती होती है और प्रयोगों मे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है । Tags : deepavalidiwalipoojaगौवत्स द्वादशीदिवाळीदीपावलीपूजा गोत्रिरात्र व्रत Translation - भाषांतर गोत्रिरात्र व्रत कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक किया जाता है । यह व्रत त्रिदिवसीय है । इसका आरम्भ सूर्योदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से होता है । यदि सूर्योदय व्यापिनी तिथि दो दिन हो अर्थात् त्रयोदशी की वृद्धि हो, तो यह पहले दिन से किया जाता है । इस वर्ष गोत्रिरात्र व्रत ४ नवम्बर को आरम्भ होगा और कार्तिक कृष्ण अमावस्या अर्थात् ६ नवम्बर तक चलेगा । इस व्रत में उपवास किया जाता है । गौशाला में लगभग ४ हाथ चौड़ी एवं ८ हाथ लम्बी एक वेदी का निर्माण किया जाता है । वेदी के ऊपर सर्वतोभद्रामण्डल का निर्माण किया जाता है । उसके ऊपर एक कृत्रिम वृक्ष बनाया जाता है, जिसमें फल और पुष्प लगे होते है तथा उस पर पक्षी बैठे होते है । इस कृत्रिम वृक्ष के नीचे ही मण्डल के मध्य भाग में भगवान् गोवर्धन (श्रीकृष्ण) की, उनके बायीं ओर रुक्मिणी,मित्रविन्दा, शैब्या और जाम्बवती की तथा दाहिने भाग में सत्यभामा, लक्ष्मणा, सुदेवा और नाग्रजिती की मूर्तियॉं स्थापित की जाती हैं । उनके सामने के भाग में नन्दबाबा और पीछे के भाग में बलभद्र, यशोदा की तथा श्रीकृष्ण के सामने सुरभि, सुभद्रा एवं कामधेनु नामक गायों की मूर्तियॉं स्थापित की जाती हैं । अगर ये मिट्टी की निर्मित की गयी है, तो इनपर सुनहरा रंग होना चाहिए इन १६ मूर्तियों की अर्घ्य, आचमन, स्नान, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य से क्रमशः पूजा की जाती है । पूजन में नाम मन्त्रों का प्रयोग करना चाहिए । इनके नाम मन्त्र निम्नानुसार है ।१. गोवर्धनःॐ गोवर्धनदेवायै नमः।२. रुक्मिणीःॐ रुक्मिणीदेव्यै नमः ।३. मित्राविन्दाःॐ मित्राविन्दादेव्यै नमः ।४. शैब्याःॐ शैब्यादेव्यै नमः ।५. जाम्बवतीःॐ जाम्बवतीदेव्यै नमः।६. सत्यभामाःॐ सत्यभामादेव्यै नमः।७. लक्ष्मणाःॐ लक्ष्मणादेव्यै नमः।८. सुदेवाःॐ सुदेवादेव्यै नमः।९. नाग्नजितीःॐ नाग्नजितीदेव्यै नमः ।१०. नन्दबाबाःॐ नन्दबाबादेवाय नमः।११. बलभद्रःॐ बलभद्राय नमः।१२. यशोदाःॐ यशोदादेव्यै नमः।१३.सुरभिःॐ सुरभ्यै नमः।१४.सुनन्दाःॐ सुनन्दाये नमः।१५.सुभद्राःॐ सुभद्रायै नमः ।१६. कामधेनुःॐ कामधेन्वै नमः।अन्तमें निम्मलिखित मन्त्र से भगवान् गोवर्धन सहित सभी देवी-देवताओं की अर्घ्य प्रदान करे ।गवामाधार गोविन्दरुक्मिणीवल्लभ प्रभो । गोपगोपीसमोपेत गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते ॥निम्नलिखित मन्त्र से गायों को अर्घ्य प्रदान करे ।रुद्राणां चैव या माता वसूनां दुहिता च या । आदित्यानां च भगिनी सा नः शान्ति प्रयच्छतु ॥उपर्युक्त मन्त्रों से गौशाला में उपस्थित गायों को भी अर्घ्य देना चाहिए और निम्नलिखित मन्त्रों से गौशाला में उपस्थित गायों को घास खिलानी चाहिए ।सुरभी वैष्णवी माता नित्यं विष्णुपदे स्थिता । प्रतिगृह्नातु मे ग्रासं सुरभी मे प्रसीदतु ॥उपर्युक्त पूजन के उपरान्त मौसम के अनुरूप फल एवं पुष्प तथा पक्वान्न का भोग लगाएँ । उसके पश्चात् । बॉंस से निर्मित डलियाओं में सप्तधान्य और सात प्रकार की मिठाई रखकर सौभाग्यवती स्त्रियों को देना चाहिए ।उपर्युक्त प्रकार से तीन दिन कृत्य किए जाते हैं । चतुर्थ दिन अर्थात् कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल गायत्री मन्त्र से तिल युक्त हवन सामग्री से १०८ आहुतियॉं देकर व्रत का विसर्जन करना चाहिए ।यह व्रत पुत्र, सुख एवं सम्पत्ति के लाभ के लिए किया जाता है ।गोवर्धन पूजाकार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धनोत्सव के अन्तर्गत भी गायों का पूजन किया जाता है । यद्यपि इस दिन मुख्यतः गोवर्धन की पूजा की जाती है, लेकिन गोवर्धन के साथ-साथ गायों के पूजन का भी विधान है ।. N/A References : N/A Last Updated : November 01, 2010 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP