ग्रहलाघव - ग्रहच्छायाधिकार

ज्योतिषशास्त्रसे कालज्ञान , कालगती ज्ञात होती है , इसलिये इसे वेदका एक अंग माना गया है ।


तहां प्रथम अभीष्टग्रहके दिनगतकालके साधनकी रीति लिखते हैं -

रात्रिमें जब अभीष्ट ग्रहका दिनगत (ग्रहके उदयको प्राप्त होनेसे रात्रिमें जब उसका वेध लेना होय तब तक व्यतीत हुआ ) काल लाना होय तो पूर्वदृक्कर्म्मदत्त अभीष्टग्रह और तात्कालिक लग्न यह दोनों लावे ,य तदनन्तर पूर्व दृक्कर्म्मदत्त अभीष्टग्रह यदि तात्कालिक लग्नकी अपेक्षा कम और षड्राशियुक्त तात्कालिक लग्नकी अपेक्षा अधिक होय तो रात्रिमें वह ग्रह उस समय दृश्य होयगा , तदनन्तर दृक्कर्म्मदत्त ग्रहसे लायाहुआ भोग्यकाल ; तात्कालिक लग्नका भुक्तकाल और तात्कालिक लग्न तथा दृक्कर्म्भदत्त ग्रह इनके मध्यके पलात्मक उदयोंका योग करे , तब अभीष्टग्रहका घटिकादि दिनगत काल आता है , परन्तु यदि चन्द्रमाका दिनगत काल लाना होय तो पूर्वोक्त रीतिसे लाई हुई कलाओंमेंसे नौ पल घटा देय ॥१॥

उ .-शके १५३२ वैशाख शुक्ल नवमी शनिवारके दिन ० घटी रात्रिको चन्द्रमाकी छाया साधते हैं -तहां अहर्गण ७७७ , प्रातःकालीन मध्यम ग्रह रवि . राशि ० अंश ५६ कला २२ विकला , चन्द्र राशि २६ अंश ५८ कला विकला उच्च राशि २२ अंश कला विकला , राहु राशि ३३ अंश ४७ कला विकला , स्पष्टीकरण -रविमन्दकेन्द्र राशि २७ अंश कला ३८ विकला , मन्दफलधन अंश ४९ कला ० विकला , मन्दस्पष्ट रवि २२ अंश ४६ कला विकला , अयनांश १८ अंश कला , चरऋण ७३ विकला , चरसंस्कृतस्पष्टरवि ० राशि २२ अंश ४४ कला ४९ विकला , स्पष्टगति ५७ कला २८ विकला , विफलसंस्कृत चन्द्र राशि २६ अंश ३५ कला १३ विकला , मन्दकेन्द्र राशि २५ अंश २८ कला ५३ विकला , मन्दफल धन अंश ३२ कला ० विकला संस्कृत स्पष्टचन्द्र राशि अंश कला १३ विकला , स्पष्टगति ८१९ कला १९ विकला , दिनमान ३२ घटी २६ पल , सूर्योदयसे गत घटियों ४२ घटी २६ पलसे चालित सूर्य ० राशि २३ अंश २५ कला ४७ विकला , चालितचन्द्र राशि ० अंश ४६ कला ३९ विकला , चालितराहु राशि २५ अंश ४४ कला ४८ विकला , व्यगुविधु राशि १७ अंश कला ५१ विकला चन्द्रशर उत्तर ६५ अंगुल ४४ प्रतिअंगुल , चन्द्रमा राशि ० अंश ४६ कला ३९ विकलामें राशि . घटाई तब शेष रहा राशि ० अंश ४६ कला ३९ विकला , इससे लाई क्रांति उत्तर ० अंश १९ कला ३९ विकला , अक्षांशदक्षिण २५ अंश २६ कला ४२ विकला , नतांशदक्षिण राशि ० अंश १३ कला विकला , पूर्व दृक्कर्म्मकलादिक ऋण १६ कला ४९ विकला , दृक्कर्म्मदत्तच द्र राशि ० अंश २९ कला ० विकला , ० घटी रात्रिका लग्न राशि १६ अंश २४ कला २२ विकला , अब दृक्कर्म्मदत्तचन्द्र लग्नकी अपेक्षा कमती है और षड्रशियुक्त लग्न राशि १६ अंश २४ कला २२ विकलाकी अपेक्षा अधिक है , इस कारण चन्द्रमा दृश्य है , दृक्कर्म्मदत्त चन्द्रसे लाया हुआ भोग्यकाल १५ पल , लग्नसे लाया हुआ भुक्तकाल ४६ पल , सायन दृक्कर्म्मदत्त चन्द्रमाके भोग्यकाल १५ पलको सायन लग्नके भुक्तकालमें युक्त करा तब ६१ हुए इसको ग्रह और लग्न इन दोनोंके मध्यमें जो सिंहसे लेकर मकरपर्यन्त राशियोंके उदय तिनके योग १३५७ में युक्त करा तब १४१८ पल अर्थात् २३ घटी ३८ पल हुए इसमें चन्द्रमाका दिनगतकाल लाना है , इस कारण पल घटाये तब शेष रहे २३ घटी २९ पल , यह चन्द्रमाका स्पष्ट दिनगतकाल हुआ ॥१॥

अब ग्रहका दिनमान जाननेकी रीति लिखते हैं ——

अंगुलादि शरको पलभासे गुणा करके चौबीसका भागदेय , तब जो पलात्मक लब्धि मिले वह शर उत्तर होय तो उत्तर शर दक्षिण होय तो दक्षिण होती है और दृक्कर्म्मदत्त ग्रहसे चर लाकर वह ग्रह उत्तरगोलीय होय तो उत्तर और दक्षिणगोलीय होय तो दक्षिण जाने , तदनन्तरे पलात्मक लब्धिका और चरका संस्कार करे तब वह स्पष्टचर होता है , फिर तिस चरसे दिनमान साधे वह अभीष्ट ग्रहका दिनमान होता है , तदनन्तर अभीष्ट ग्रहका दिनमान और दिनगतकाल इनसे त्रिप्रश्र्नाधिकारमें कही हुई रीति के द्वारा अभीष्ट ग्रहकी इष्टछाया लावे ॥२॥

उदाहरण —— शर उत्तर ६५ अंगुल ४४ प्रतिअंगुलको पलभा अंगुल ४५ प्रतिअंगुलसे गुणा करा तब ३७७ अंगुल ५८ प्रतिअंगुल हुए इसमें २४ का भाग दिया तब लब्धि हुई १५ पल ४४ वि . । यह लब्धि शरके उत्तर होनेके कारणसे उत्तर है इससे दृक्कर्म्मदत्त चन्द्रसे लाए हुए चर उत्तर ५९ पलका संस्कार करा तब ७४४४ यह स्पष्ट चर हुआ , यह दृक्कर्म्मदत्त चन्द्रके उत्तरगोलीय होनेके कारण धन है , इस कारण ७४ पलमें १५ घटीको युक्त करा तब १६ घटी १४ प . यह दिनार्द्ध हुआ , इस कारण ३२ घटी २८ पल यह चन्द्रमा का दिनमान हुआ , इसमेंसे दिनगत काल २३ घटी २९ पलको घटाया तब शेष रहे घटी ५९ पल यह पश्र्चिमोन्नत काल हुआ , इसको दिनार्द्ध १६ घटी १४ पलमें घटाया तब घटी १५ पल यह पश्र्चिम नतकाल हुआ , इससे लाये हुए अक्षकर्ण १३ अंगुल २९ प्रति अंगुल , स्पष्ट चर ७४४४ हार १२८५६ समाख्य ०।। इष्टहार २७। भाज्य ११५५। अंगुलादि कर्ण १५ अंगुल ५३ प्रतिअंगुल , इष्टच्छ्ाया ० अंगुल ३४ प्रतिअंगुल ॥२॥

अब बेधसे ग्रहच्छाया साधनकी रीति लिखते हैं -

अब ग्रहको छायासे दिनगतकाल साधनेकी रीति लिखते हैं -

जिस समय ग्रहका वेध करा हो उस समय जितनी घटी रात्रि बीती होय उसको अनुमानसे जानकर उस समयका ग्रह , स्पष्ट चर और दिनमान लावे , तदनन्तर इनसे और ग्रहकी इष्ट छाया से त्रिपश्राधिकारमें कही हुई रीतिके अनुसार अभीष्ट ग्रहका दिनगत काल लावे , यह दिनगत काल चन्द्रमाका होय तो उसमें नौ पल युक्त कर देय ॥४॥

उदाहरण —— रात्रिमें चन्द्रमाकी और देखकर अनुमान करनेसे ० घटी रात्रि व्यतीत हुई मालूम पड़ी इसकारण तिस समय के चन्द्रसे लाया हुआ स्पष्टचर ७४ पल हुआ और दिनमान ३२ घटी २८ पल हुआ और बेधसे लाई हुई इष्ट छाया ० अंगुल ३४ प्रतिअंगुल हुई इसकारण इनसे लाया हुआ कर्ण १३ अंगुल ५३ प्रतिअंगुल , भाज्य ११५५ , इष्टहार , अक्षकर्ण १३ अंगुल १९ प्रतिअंगुल , हार १२८५८ और पश्र्चिमनत घटी १५ इस कारण दिनार्द्ध १६ घटी १४ पलमें पश्र्चिमनत घटी १५ पलको युक्त करा तब २३ घटी २९ पल हुए , इसमें पल युक्त करे तब २३ घटी ३८ पल यह चन्द्रमाका दिनगत काल हुआ ॥४॥

अब ग्रहके उदयमें दिन शेष रात्रिगत कालसाधन लिखते हैं -

पूर्व दृक्कर्म्मदत्त ग्रह और षड्रशियुक्त रवि इन दोनोंमें जो कम हो वह रवि और जो अधिक हो उसको लग्न मानकर इन दोनों से अभीष्ट काल लावे तब यदि पूर्वदृक्कर्म्मदत्त ग्रह षड्रशियुक्त सूर्यकी अपेक्षाय कम होय तो ग्रहोदय होनेमें अभीष्ट कालकी तुल्य दिन रहेगा ऐसा जाने और यदि पूर्व दृक्कर्म्मदत्त ग्रह षड्राशियुक्त सूर्यकी अपेक्षा अधिक होय तो ग्रहोदय होनेमें अभीष्ट कालकी तुल्य रात्रि व्यतीत होनेपर चन्द्रोदय होयगा ऐसा जाने ॥५॥

उदाहरण —— पूर्वदृक्कर्म्मदत्त चन्द्र राशि ० अंश २९ कला ० विकला और षड्राशियुक्त सूर्य राशि २३ अंश २५ कला ४८ विकला , इन दोनोंमें चन्द्रमा कम है इस कारण चन्द्र राशि ० अंश २९ कला ० विकलाको सूर्य मानकर लाया हुआ भोग्य काल १५ पल हुआ और षड्राशियुक्त सूर्य राशि २३ अंश २५ कला ४८ विकला को लग्न मानकर लाया हुआ भुक्तकाल १३३ पल हुआ अब भोग्य कालके पल १५ और भुक्तकालके पल १३३ तथा रवि और लग्न इन दोनोंके मध्यके उदय पल कन्योदय ३३५ और तुलोदय ३३५ पल , इन सबका योग करा ८१८ पल अर्थात् १३ घटी ३८ पल , यह इष्टकाल हुआ , अब चन्द्रमा षड्राशियुक्त रविकी अपेक्षा कम है इस कारण १३ घटी ३८ पल दिन शेष रहनेपर चन्द्रोदय होयगा ॥५॥

अब सूर्यास्तसे रात्रिगत काल जाननेकी रीति लिखते हैं ——

ग्रहके दिनगतकालमें दिनशेष काल घटावे और रात्रिगतकाल आया होय तब तो मिला देनेसे सूर्यास्तसमयसे ग्रहवेधपर्यन्त काल होता है , परन्तु यदि यह काल चन्द्रमाके विषयका होकर अनुमान करी हुई घटिकाओंकी अपेक्षा अधिक अथवा कम होय तो तिन दोनों कालोंके अन्तरको दोसे गुणा करके जो पलात्मक गुणनफल होय उसको वेधीय कालमें घटानेसे अथवा युक्त करनेसे चन्द्रमाका वेधीय काल स्पष्ट होता है ॥६॥

उदाहरण —— चन्द्रमाके दिनगतकाल २३ घटी ३८ पलमेंसे दिन शेषकाल १३ घटी ३८ पलको घटाया तब शेष रहे ० घटी , यह सूर्यास्तसे चन्द्रवेधपर्यन्तका काल हुआ , यह और अनुमित घटी ० बराबर हैं इस कारण यही स्पष्ट काल हुआ ॥६॥

इति श्रीगणकवर्यपण्डितगणेशदैवज्ञकृतौ ग्रहलाघवकरणग्रन्थे पश्र्चिमोत्तरदेशीयमुरादाबादवास्तव्य -काशीस्थराजकीयसंस्कृतविद्यालयप्रधानाध्यापकपण्डितस्वामिराममिश्रशास्त्रिसान्निध्याधिगतविद्य -भारद्वाज -गोत्रोत्पन्न गौडवंशावतंसश्रीयुतभोलानाथतनूज -पण्डितरामस्वरूपशर्म्मणा कृतया सान्वयभाषाव्याख्यया सहितो ग्रहच्छायाधिकारः समाप्तिमितः ॥१

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Last Updated : October 24, 2010

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