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पिंगल n. एक छंदःशास्त्रज्ञ आचार्य एवं छंदःशास्त्र नामक सुविख्यात ग्रंथ का कर्ता । इसे पिंगलाचार्य या पिंगल नाग कहते थे (भट्ट हलायुध टीका) । कई विद्वानों के अनुसार, यह सम्राट अशोक का गुरु था । किन्तु ‘पानिनिशिक्षा’ की ‘शिक्षाप्रकाश’ नामक टीका के अनुसार ‘छ्न्दशास्त्र’ का रचयिता पिंगल, वैयाकरण पाणिनि का अनुज था [शिक्षासंग्रह पृ. ३८५] : कात्यायन के सुविख्यात वृत्तिकार षड्गुरुशिष्य का भी यही मत है [वेदार्थदीपिका पृ.९७] । अन्य विद्वानों के अनुसार यह पाणिनि का मामा था ।
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पिंगल n. छन्दःशास्त्र को छः वेदांगों में से एक गिना जाता है । पाणिनि के गणपाठ में छन्दःशास्त्र के छंदोविजिति, छंदोविचिति, छंदोमान तथा छंदोभाषा ये चार पर्याय प्राप्त है [ऋ.गयनादिगण ४.३.७३] । शेष पॉंच वेदांग इस प्रकार हैं, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त तथा ज्योतिष । छन्दःशास्त्रविषयक प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ ‘ऋप्रातिशाख्य’ है । उस ग्रंथ का मुख्य विषय व्याकरण है, किंतु उसमें वैदिक छंदों पर भी प्रकाश डाल गया है । ‘ऋक्प्रातिशाख्य’ में उपलब्ध छंद विषयक जानकारी काफी अधूरी है, इसी कारण पिंगल का ‘छंदःशास्त्र’ वेदांग का सर्वाधिक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है । इसमें वैदिक छंदों के साथ लौकिक छंदों पर भी प्रकाश डाला गया है । इस ग्रन्थ में आरंभ से चौथे अध्याय के सातवें सूत्र तक, वैदिक छंदों की जानकारी दी गयी है । शेष अवशिष्ट ग्रन्थ में लौकिक छंदो-की चर्चा की गयी है । इसी ग्रन्थ का एक संस्करण ‘प्राकृतपिम्गल’ नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें प्राकृत के छन्दों की जानकारी दी गयी है। ‘प्राकृतपिंगल’ का रचनाकाल १४ वीं शती माना जाता है ।
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पिंगल n. छन्दःशास्त्र के प्रवर्तक भगवान् शिव माने गये हैं । छन्दःशास्त्र की गुरुपरंपरा इस प्रकार दी गयी हैः---शिव-बृहसप्ति-दुश्च्यवन-इंदु-मांडव्य-पिंगल ।
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पिंगल n. अग्निवेश्य, आंगिरस, काश्यप [छन्द.७.९] , कौशिक [छन्द.३.६६] , क्रौष्टुकि [छन्द.३.२९] , गौतम [छन्द.३.६६] , ताण्डिन् [छन्द.३.३६] , भार्गव [छन्द.३.६६] , माण्डव्य [छन्द.७.३४] , यास्क [छन्द.३.३०] , रात [छन्द.७.३४] , वसिष्ठ [छन्द.३.६६] , सैतव [छन्द.५.१८] ।
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