कार्तिक कृष्णपक्ष व्रत - गोवत्सद्वादशी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


गोवत्सद्वादशी

( मदनरत्नान्तर्गत भविष्योत्तरपुराण ) -

यह व्रत कार्तिक कृष्ण द्वादशीको किया जाता है । इसमें प्रदोषव्यापिनी तिथि ली जाती है । यदि वह दो दिन हो या न हो तो

' वत्सपूजा वटश्र्चैव कर्तव्यौ प्रथमेऽहनि'

के अनुसार पहले दिन व्रत करना चाहिये । उस दिन सायंकालके समय गायें चरकर वापस आयें तब तुल्य वर्णकी गौ और बछड़ेका गन्धादिसे पूजन करके

' क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते । सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥'

से उसके ( आगेके ) चरणोंमें अर्घ्य दे और

' सर्वदेवमये देवि सर्वदेवैरलङ्कृते । मातर्ममाभिलषितं सफलं कुरु नन्दिनी ॥'

से प्रार्थना करे । इस बातका स्मरण रखे कि उस दिनके भोजनके पदार्थोमें गायका दूध, दही, घी, छाछ और खीर तथा तेलके पके हुए भूजिया पकौड़ी या अन्य कोई पदार्थ न हों ।

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Last Updated : January 21, 2009

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