वैधव्य योग नाशक सावित्रीव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


वैधव्य योग नाशक सावित्रीव्रत

( हेमाद्रि, व्रतखण्ड ) - किसी कन्याकी कुण्डलीमें विधवायोग बनत हो तो उसके माता - पित उससे एकान्तमें सावित्रीव्रत अथवा पिप्पलव्रत करायें और फिर उसका दीर्घायु योगवाले वरके साथ विवाह करें । व्रतविधि यह है कि ज्यौतिषशास्त्रोक्त शुभ मुहूर्तमें प्रातःस्त्रान आदिके पश्चात् शुभासनपर पूर्वाभिमुख बैठकर

' मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं च सावित्रीव्रतमहं करिष्ये ।'

यह संकल्प करके तीन दिन उपवास करे । यदि सामर्थ्य न हो तो प्रथम दिन रात्रि भोजन, द्वितीय दिन अयाचित और तृतीय दिन उपवास करके चतुर्थ दिन समाप्त करे । यह व्रत वटके समीप बैठकर करनेसे विशेष फलदायी होता है । अतः उस जगह बाँसके पात्रमें सप्तधान्य भरकर उसपर सुवर्णनिर्मित सावित्रीका स्थापन करके उसका गन्ध, पुष्प आदिसे पूजन करे । साथ ही वट - वृक्षको सूत्रसे वेष्टित करके उसका पञ्चोपचार पूजन कर परिक्रमा करे । तत्पश्चात्

' अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते । पुत्रान पौत्राश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥'

से सावित्रीको अर्घ्य देकर अहिवात ( सौभाग्य ) की रक्षाके लिये भक्ति, श्रद्धा और नम्रतासहित प्रार्थना करे तथा

' वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः । यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले । तथा पुत्रैश्च सम्पन्नां कुरु मां सदा ॥'

इससे वटकी प्रार्थना करे तो वैधव्यदोषका सुतरां परिहार हो जाता है । वैसे यह १ व्रत विधवा - सधवा, बालिका - वृद्धा, अपुत्रा या सपुत्रा - सभीके करनेका है और विशेषकर ज्येष्ठकी अमावस्याको सार्वजनिकरुपमें किया भी जाता है । ज्यौतिष - शास्त्रमें वैधव्ययोग इस प्रकार निश्चय किया गया है कि ' कन्याके जन्मलग्नमें सप्तमेश पापी हो, पापदृष्ट हो या पापयुक्त होकर अनिष्टकारी ( छठे, आठवें, बारहवें ) स्थानमें बैठा हो या शत्रुके घरमें हो तो पतिके सुखको हीन करता है । इसी प्रकार लग्नमें क्रूरग्रह हो और उससे सातवें भौम हो या लग्नमें चन्द्रमा ३ और सातवें मङ्गल हो, अथवा चौथे, ४ सातवें, आठवें, बारहवें या लग्नमें मङ्गल हो तो पतिके सुखको हीन करना है ॥

१. सावित्र्यादिव्रतादीनि भक्त्या कुर्वन्ति याः स्त्रियः ।

सौभाग्यं च सुहत्त्वं च भवेत् तासां सुसङ्गतिः ॥ ( व्रतखण्ड )

२. नारी वा विधवा वापि पुत्रीपुत्रविवर्जिता ।

सभर्तृका सपुत्रा वा कुर्याद् व्रतामिदं शुभम् ॥ ( स्कन्द० )

३. यदि लग्नगतः क्रूरस्तस्मात् सप्तमगः कुजः ।

विज्ञेयं मरणं पुंसाम्.............॥ ( नारद )

४. यदि लग्नगतश्चन्द्रस्तस्मात् सप्तमगः कुजः ।

भर्तुर्मृत्युं विजानीयात् ........... ॥ ( नारद )

५. लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजः ।

कन्या भर्तुर्विनाशाय भर्ता कन्याविनाशकृत् ॥ ( ज्यौ० त० )

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Last Updated : January 16, 2012

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