मित्रभेद - कथा १७

पंचतंत्र मतलब उच्चस्तरीय तात्पर्य कथा संग्रह।


जंगल के एक बड़े वट-वृक्ष की खोल में बहुत से बगले रहते थे । उसी वृक्ष की जड़ में एक साँप भी रहता था । वह बगलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था ।

एक बगला साँप द्वार बार-बार बच्चों के खाये जाने पर बहुत दुःखी और विरक्त सा होकर नदी के किनारे आ बैठा । उसकी आँखों में आँसू भरे हुए थे । उसे इस प्रकार दुःखमग्न देखकर एक केकड़े ने पानी से निकल कर उसे कहा :---"मामा ! क्या बात है, आज रो क्यों रहे हो ?"

बगले ने कहा ----"भैया ! बात यह है कि मेरे बच्चों को साँप बार-बार खा जाता है । कुछ उपाय नहीं सूझता, किस प्रकार साँप का नाश किया जाय । तुम्हीं कोई उपाय बताओ ।"

केकड़े ने मन में सोचा, ’यह बगला मेरा जन्मवैरी है, इसे ऐसा उपाय बताऊंगा, जिससे साँप के नाश के साथ-साथ इसका भी नाश हो जाय ।’ यह सोचकर वह बोला----

"मामा ! एक काम करो, मांस के कुछ टुकडे़ लेकर नेवले के बिल के सामने डाल दो । इसके बाद बहुत से टुकड़े उस बिल से शुरु करके साँप के बिल तक बखेर दो । नेवला उन टुकड़ों को खाता-खाता साँप के बिल तक आ जायगा और वहाँ साँप को भी देखकर उसे मार डालेगा ।"

बगले ने ऐसा ही किया । नेवले ने साँप को तो खा लिया किन्तु साँप के बाद उस वृक्ष पर रहने वाले बगलों को भी खा डाला ।

बगले ने उपाय तो सोचा, किन्तु उसके अन्य दुष्परिणाम नहीं सोचे । अपनी मूर्खता का फल उसे मिल गया । पाप-बुद्धि ने भी उपाय तो सोचा, किन्तु अपाय नहीं सोचा ।"

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करटक ने कहा----"इसी तरह दमनक ! तू ने भी उपाय तो किया, किन्तु अपाय की चिन्ता नहीं की । तू भी पाप-बुद्धि के समान ही मूर्ख है । तेरे जैसे पाप-बुद्धि के साथ रहना भी दोषपूर्ण है । आज से तू मेरे पास मत आना । जिस स्थान पर ऐसे अनर्थ हों वहाँ से दूर ही रहना चाहिए । जहां चूहे मन भर की तराजू को खा जायं वहाँ यह भी सम्भव है कि चील बच्चे को उठा कर ले जाय ।"

दमनक ने पूछा----"कैसे ?"

करटक ने तब लोहे की तराजू की यह कहानी सुनाई----

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Last Updated : February 20, 2008

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