मित्रभेद - कथा ६

पंचतंत्र मतलब उच्चस्तरीय तात्पर्य कथा संग्रह।

The fascinating stories told by Vishnu Sharma, called Panchatantra.


एक राजा के शयन-गृह में शैया पर बिछी सफेद चादरों के बीच एक मन्दविसर्पिणी सफेद जूं रहती थी । एक दिन इधर-उधर घूमता हुआ एक खटमल भी वहाँ आ गया । उस खटमल का नाम था ’अन्गिमुख’ ।

अग्निमुख को देखकर दुःखी जूं ने कहा ----"हे अग्निमुख ! तू यहाँ अनुचित स्थान पर आ गया है । इस से पूर्व कि कोई आकर तुझे देखे, यहां से भाग जा ।"

खटमल बोला----"भगवती ! घर आये दुष्ट व्यक्ति का भी इतना अनादर नहीं किया जाता, जितना तू मेरा कर रही है । उससे भी कुशल-क्षेम पूछा जाता है । घर बनाकर बैठने वालों का यही धर्म है । मैंने आज तक अनेक प्रकार का कटु -तिक्त-कषाय-अम्ल रस का खून पिया है; केवल मीठा खून नहीं पिया । आज इस राजा के मीठे खून का स्वाद लेना चाहता हूँ । तू तो रोज ही मीठा खून पीती है । एक दिन मुझे भी उसका स्वाद लेने दे ।"

जूं बोली----"अग्निमुख ! मैं राजा के सो जाने के बाद उस का खून पीती हूँ । तू बड़ा चंचल है, कहीं मुझ से पहले ही तूने खून पीना शुरु कर दिया तो दोनों मारे जायँगे । हाँ, मेरे पीछे रक्तपान करने की प्रतिज्ञा करे तो एक रात भले ही ठहर जा ।"

खटमल बोला---"भगवती ! मुझे स्वीकार है । मैं तब तक रक्त नहीं पीऊँगा जब तक तू नहीं पीलेगी । वचन भंग करुँ तो मुझे देव-गुरु का शाप लगे ।"

इतने में राजा ने चादर ओढ़ ली । दीपक बुझा दिया । खटमल बड़ा चंचल था । उसकी जीभ से पानी निकल रहा था । मीठे खून के लालच से उसने जूं के रक्तपान से पहले ही राजा को काट लिया । जिसका जो स्वभाव हो, वह उपदेशों से नहीं छूटता । अग्नि अपनी जलन और पानी अपनी शीतलता के स्वभाव को कहां छोड़ सकती है ? मर्त्य जीव भी अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते ।

अग्निमुख के पैने दांतों ने राजा को तड़पा कर उठा दिया । पलंग से नीचे कूद कर राजा ने सन्तरी से कहा---"देखो, इस शैया में खटमल या जूं अवश्य है । इन्हीं में से किसी ने मुझे काटा है ।" सन्तरियों ने दीपक जला कर चादर की तहें देखनी शुरु कर दीं । इस बीच खटमल जल्दी से भागकर पलंग के पावों के जोड़ में जा छिपा । मन्दविसर्पिणी जूं चादर की तह में ही छिपी थी । सन्तरियों ने उसे देखकर पकड़ लिया और मसल डाला ।"

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दमनक शेर से बोला ----"इसलिये मैं कहता हूँ कि संजीवक को मार दो, अन्यथा वह आपको मार देगा, अथवा उसकी संगति से आप जब स्वभाव-विरुद्ध काम करेंगे, अपनों को छोड़कर परायों को अपनायेंगे, तो आप पर वही आपत्ति आजायगी जो ’चंडरव’ पर आई थी ।

पिंगलक ने पूछा----"कैसे ?"

दमनक ने कहा----"सुनो---

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Last Updated : February 19, 2008

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