भजन - पट चाहै तन , पेट चाहत छदन...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


पट चाहै तन, पेट चाहत छदन मन,

चाहत है, धन जेती सम्पदा सराहिबी ।

तेरोई कहायकै, रहीम कहै दीनबन्धु,

आपनी बिपत्ति जाय काके द्वार काहिबी ?

पेट भरि खायो चाहै, उद्यम बनायौ चाहै,

कुटुँब जियाओ चाहै, काढ़ि गुन लहिबी ।

जीविका हमारी जोपै औरनके कर डारौ,

ब्रजके बिहारी ! तो तिहारी कहाँ साहिबी ॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 25, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP