भजन - जो मेरै तन होते दोय ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जो मेरै तन होते दोय ।

मैं काहू तें कछु नहिं कहतौ,

मोतें कछु कहतौ नहिं कोय ॥१॥

एक जु तन हरि-बिमुखनके

सँग रहतो देस-बिदेस ।

बिबिध भाँति के जग-दुख सुख जहँ,

नहीं भगति-लवलेस ॥२॥

एक जु तन सत्संग रंग रँगि,

रहतौ अति सुख पूर ।

जनम सफल कर लेतौ ब्रज बसि,

जहँ ब्रज जीवनमूर ॥३॥

द्वै तन बिन द्वै काज न ह्वैहैं,

आयु सु छिन-छिन छीजै ।

नागरिदास एक तनते अब,

कहौ कहा करि लीजै ॥४॥

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Last Updated : December 22, 2007

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