विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास पहला - विमललक्षणनाम ॥

इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।   


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पहले प्रपंच करें सटीक । बाद में लें परमार्थ विवेक । यहां न करें आलस । विवेकी हो ॥१॥
प्रपंच छोड़ परमार्थ करोगे । उससे तुम कष्ट पाओगे । प्रपंच परमार्थ करोगे । तभी तुम विवेकी ॥२॥
प्रपंच छोड़ परमार्थ किया तो । अन्न मिलेना खाने को । फिर उस अभागे को । परमार्थ कैसा ॥३॥
परमार्थ छोड़ प्रपंच करोगे । फिर तुम यमयातना भोगोगे । अंत में परम दुःख पाओगे । यमयातना भोगते ॥४॥
साहब के काम पर नहीं गया । घर में ही सुस्त बैठा । फिर साहब ने उसे पीटा । देखते लोग ॥५॥
तब महत्त्व ही गया । दुर्जनों ने उपहास किया । दुःख उदंड भोगा । अपने जीव ने ॥६॥
ऐसे ही होता अंत । इसकारण भजें भगवंत । परमार्थ की प्रचीत । तें रोकड़ी ॥७॥
 संसार में रहते ही मुक्त । उसे ही जानें संयुक्त । अखंड देखें युक्तायुक्त । विचार ऐसे ॥८॥
प्रपंच में जो सावधान । वही परमार्थ करेगा जान । प्रपंच में जो अप्रमाण । वह परमार्थी खोटा ॥९॥
इस कारण सावधानी से । प्रपंच परमार्थ साधें । ऐसा न करने से भोगे । नाना दुःख ॥१०॥
पर्ण पर इल्ली देखकर चले । जीवसृष्टि विवेक से चले । और पुरुष होकर भूले । इसे क्या कहें ॥११॥
इस कारण रखें दीर्घ सूचना । अखंड करें विचारणा । आगे की पहचानें घटना । अनुमान से ॥१२॥
सुखी रहता खबरदार । दुःखी होता बेखबर । ऐसा यह लौकिक विचार । दिखता ही है ॥१३॥
इस कारण सर्वसावधान । महिमा उसकी धन्य । जनों को दे समाधान । वही एक ॥१४॥
मंथन का किया आलस । फिर संकट आयेगा अनायास । उस समय कैसा अवकाश । सम्हालने का ॥१५॥
इस कारण दीर्घसूचना के लोग । उनका देखें विवेक । लोगों के कारण ही लोग । सयाने होते ॥१६॥
परंतु वे सयाने पहचानें । गुणवंतो के गुण लें । अवगुण देखकर त्यागें । जनों के ॥१७॥
मनुष्य को परखे बिना रहें ना । और किसी का मन तोड़ें ना । मनुष्यमात्र को अनुमान । से जानकर देखें ॥१८॥
एक जैसा दिखे सभी को । नेक वह जब विवेक से देखो । कामी निकम्मे लोगों को । भली तरह जाने ॥१९॥
जानकर सभी को चाहता । यही उसकी अपूर्वता । जिसका उसका रखता । उचित गौरव ॥२०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे विमललक्षणनाम समास पहला ॥१॥

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Last Updated : December 08, 2023

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