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पांडु

   
Script: Devanagari
See also:  पांडुरोग

पांडु     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  हस्तिनापुर के प्रसिद्ध एवं प्राचीन राजा जिनके पाँच पुत्र थे - युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव   Ex. पांडु के पुत्र पांडव कहलाए ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
पाण्डु पृथापति
Wordnet:
benপাণ্ডু
gujપાંડુ
kanಪಾಂಡು
kasپانٛڑو
kokपांडू
malപാണ്ഡു
marपांडू
oriପଣ୍ଡୁ
tamபாண்டு
telపాండురాజు
urdپانڈو , پتھاپتی
adjective  कुछ लाली लिए हुए पीला   Ex. उसके फोड़े से पांडु रंग का मवाद निकल रहा है ।
MODIFIES NOUN:
वस्तु
ONTOLOGY:
रंगसूचक (colour)विवरणात्मक (Descriptive)विशेषण (Adjective)
SYNONYM:
पाण्डु
Wordnet:
benপাণ্ডুর
gujપાંડુ
kanಕಿತ್ತಲೆ ಬಣ್ಣದ
kasزَرٕد , لیوٚدُر
kokमातेरी
malഇളം മഞ്ഞ നിറത്തിലുള്ള
marलालसर पिवळा
oriପାଣ୍ଡୁର
panਪਾਂਡੂ
tamபழுப்புநிற
noun  कुछ लाली लिए हुए पीला रंग   Ex. इस तस्वीर का पिछला हिस्सा पांडु में रंगा गया है ।
ONTOLOGY:
वस्तु (Object)निर्जीव (Inanimate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
पांडु रंग पाण्डु पाण्डु रङ्ग
Wordnet:
benপাণ্ডু
gujપાંડું
malചുവപ്പുകലർന്ന മഞ്ഞനിറം
oriପାଣ୍ଡୁରଙ୍ଗ
panਪਾਂਡੂ
sanहरिणः
telపాండు రంగు
urdگیروارنگ , گیروا , پانڈورنگ
See : पीलिया

पांडु     

पांडु n.  (सो. कुरु.) हस्तिनापुर का कुरुवंशीय राजा एवं ‘पांडवों’ का पिता । यह एवं इसका छोटा भाई धृतराष्ट्र कुरुवंशीय सम्राट विचित्रवीर्य के दो ‘क्षेत्रज’ पुत्र थे । इनमें से धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था, एवं यह जन्मतः ‘पांडुरोग’ से पीडित था । शारीरिक दृष्टि से पंगु व्यक्ति का जीवन कैसा दुःखपूर्ण रहता है, इसका हृदय हिला देनेवाला चित्रण, पांडु एवं धृतराष्ट्र इन दो बंधुओं के चरित्रचित्रण के समय श्रीव्यास ने ‘महाभारत’ में किया है ।
पांडु n.  कुरुवंश में पैदा हुए शंतनु राजा ने चित्रांगद एवं विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र थे । उनमें से चित्रांगद गंधर्वो के द्वारा, युद्धभूमि में मारा गया, एवं विचित्रवीर्य छोटा हो कर भी, हस्तिनापुर पुर के राज्य का अधिकारी हुआ । पश्चात् विचित्रवीय की युवावस्था में ही अकाल मृत्यु हो गयी । उस समय उसकी पत्नी अंबालिका संतानरहित थी । फिर कुरुकुल निर्वंश न हो, इस हेतु से विचित्रवीर्य की माता सत्यवती ने अपनी पुत्रवधू अंबालिका को ‘नियोग’ के द्वारा संतति प्राप्त करने की आज्ञा दी । पराशर ऋषि से उत्पन्न अपने ज्येष्ठ पुत्र व्यास को भी यही आज्ञा सत्यवती ने दी । उस आज्ञा के अनुसार, व्यास अंबालिका के शयनमंदिर गया । व्यास की जटाधारी एवं भस्मचर्चित उग्र आकृति देख कर, अंबालिका मन ही मन घबरा गयी, एवं भय से उसका मुख फींका पड गया । यह देखतें ही क्रुद्ध हो कर व्यास ने उसे शाप दिया, ‘मुझे देखते ही तुम्हारा चेहरा निस्तेज एवं फींका पड गया है, अतएव तुम्हारा होनेवाला पुत्र भी निस्तेज एवं श्वेतवर्ण का पैदा होगा एवं उसका नाम भी पांडु रक्खा जायेगा’ । बाद में अंबालिका गर्भवती हुई, एवं उसे व्यास की शापोक्तिनुसार,श्वेतवर्ण का पाण्डु नामक पुत्र हुआ [म.आ.५७.९५, ९०.६०, १००] ;[म.स. ८.२२]
पांडु n.  पाण्डु का पालनपोषण इसके चाचा भीष्म ने पुत्रवत् किया । इसने उपनयनादि सारे संस्कार भी किये । इससे ब्रह्मचर्यविहित योग्य व्रत तथा अध्ययन करवाया । यह श्रुति-स्मृतियों में पंडित तथा व्यायाम पटू बना । चार वेद, धनुर्वेद, गदा, खड्‌ग, युद्धशास्त्र, गजशिक्षा, नीतिशास्त्र, इतिहास, पुराण, कला तथा तत्वज्ञान में यह पारंगत हुआ [म.आ.१०२.१५-१९]
पांडु n.  कुंति-भोज राजाने अपनी कन्या पृथा (कुंती) का स्वयंवर किया,वहॉं कुन्ती ने पाण्डु का वरण किया । उसे ले कर पाण्डु हस्तिनापुर आया । बाद में, भीष्म के मन में पाण्डु का दूसरा विवाह करने की इच्छा हुयी । वह मंत्री, ब्राह्मण, ऋषि तथा चतुरंगिनी सेना के साथ मद्र-राज शल्य के नगर में गया । शल्य ने आदर के साथ उसका स्वागत किया । भीष्म ने पाण्डु के लिये शल्य की बहन माद्री को मॉंगा । शल्य को यह प्रस्ताव पसन्द आया । किंतु उसने कहा, ‘मेरे कुल की रीति पूर्ण होनी चाहिये । इस रीति के अनुसार, स्वण, स्वर्णभूषण, हाथी, घोडे, रथ, वस्त्र, मणि, मूंगा, तथा अनेकानेक प्रकार के रत्न मुझे माद्री के बदले प्राप्त होना जरुरी है’। भीष्म ने यह शर्त मंजूर की । ये सारी चीजें उसने शल्य को दीं । उन्हें पा कर शल्य अत्याधिक संतुष्ट हुआ तथा अपनी बहन माद्री को यथाशक्ति अलंकार पहना कर, उसने भीष्म के हाथों सौंप दिया । माद्री के साथ भीष्म हस्तिनापुर आया, तथा सुमुहूर्त में पाण्डु ने माद्री का पाणिग्रहण किया [म.आ.१०५]
पांडु n.  पांडु के बंधुओं में से धृतराष्ट्र अंधा तथा विदुर शूद्र था । अतएव पांडु का राज्याभिषेक किया गया तथा यह हस्तिनापुर का राजा बना [म.आ.१०३.२३] । माद्री के पाणिग्रहण के ठीक एक माह के उपरांत, पाण्डु संपूर्ण पृथ्वी जीतने के उद्देश्य से बाहर निकला । इसने साथ में एक बडी सेना भी ली । सब से पहले इसने पर्वतों पर रहनेवाले दशार्ण नामक लुटेरे लोगों को जीत लिया, एवं उनकी सेना तथा निशानादि छीन लिये । बाद में अनेक राजाओं को लूटकर उन्मत्त बने मगधाधिपति दीर्घ को उसी के प्रासाद में मारकर, उसके राज्यकोष एवं हाथियों का दल ले लिया । इसी प्रकार काशी, मिथिला, सुह्य तथा पुंड्र राजाओं को पराजित कर, इसने उन सारे देशों में कौरवों का ध्वज फहराया । यही नहीं, पृथ्वी के सब राजाओं ने पाण्डु को ‘राजेंद्र’ माना, तथा इसे काफी नजराने दिये । इस प्रकार अनेक देश तथा राजाओं को पादाक्रांत कर दिग्विजयी हो कर, यह हस्तिनापुर लौट आया [म.आ.१०५] । विभिन्न देशों को जीत कर लायी हुयी धनराशि, पांडु ने अपने बंधुबांधवों में बॉंट दी । पश्चात् धृतराष्ट्र ने पांडु के नाम से सौ अश्वमेधयज्ञ किये, एवं हर एक यज्ञ में लाख लाख स्वर्ण मुद्रायें दक्षिणा में दान दी [म.आ.१०६]
पांडु n.  एकबार यह मृगया के लिये बन में गया था । तब मृगरुप धारण कर अपने मृगरुपधारिणी पत्नी से मृगरुप धारण कर के मैथुन करनेवाले किंदम नामक मुनि को साधारण मृग समझ कर इसने उस पर बाण छोडे । इससे मुनि का मैथुनभंग हुआ, तथा उसके प्राणपखेरु उड चले । मरण के पूर्व उसने पांडु को शाप दिया, ‘मैथुनानासक्त अवस्था में मेरा वध करनेवाले तुम्हारी मृत्यु भी मैथुनप्रसंग में ही होगी’ [म.आ.१०९.२८] । इस शाप के कारण, पांडु को अत्याधिक पश्चात्ताप हुआ, तथा इसने संन्यासवृत्ति लेकर अवधूत की तरह रहने का निश्चय किया । इसके साथ इसकी पत्नियों ने भी वानप्रस्थाश्रम में रह कर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की । कुन्ती तथा माद्री को साथ लेकर यह घूमते घूमते नागशत, कालकूट, हिमालय तथा गंधामादन आदि पर्वतों को लॉंध कर, चैत्ररथवन गया । वहॉं से यह इन्द्रद्युम्न सरोवर गया । पश्चात् हंसगिरि पर्वत को लॉंघ कर यह शतशृंगगिरि पर गया, और वहॉं तपस्या करने लगा [म.आ.११०]
पांडु n.  एक बार कुछ ऋषि ब्रह्माजी से मिलने जा रहे थे । पाण्डु को भी उनके साथ स्वर्ग जाने की इच्छा हुई । किंतु ऋषियों ने इसे कहा, ‘तुम हमारे साथ ब्रह्मलोक न जा सकोगे, क्योंकि, तुम निःसंतान हो । फिर पाण्डु ने उनसे कहा, ‘निःसंतान होने के कारण, आज मैं ब्रह्मलोक से वंचित किया जा रहा हूँ । मैने देव, ऋषि, तथा मानवों को तुष्ट किया है, तथापि पितरों को संतुष्ट नहीं कर पाया । ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिये? जिस ‘नियोग’ के मार्ग से मेरा जन्म व्यास से हुआ, उसी प्रकार क्या मेरी पत्नियों को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो सकती हैं?’ ऋषियों ने आशीर्वाद पूर्वक इससे कहा, ‘तथास्तु । उत्कृष्ट तपस्या के कारण तुम्हें यही पुत्रों की प्राप्ति हो जायेगी’। पश्चात् इसने कुंती से ‘नियोग’ द्वारा पुत्र उत्पन्न करने के लिए आग्रह किया । इसने कुंती से कहा. ‘तुम्हारे बहनोई एवं तुम्हारी बहन श्रुतसेना का पति केकयराज शारदंडायनि ‘नियोग’ संतति के पुरस्कर्ताओं में से एक है । पुत्रों के बारह प्रकार होते हैं । औरस संतति न होने पर, स्वजातियों से अथवा श्रेष्ठ जातियों से ‘नियोग’ के द्वारा संतति प्राप्त करने की आज्ञा शारदंडायनि ने दी है । इसलिये अपने पूर्वजों एवं स्वयं को अधोगति से बचाने के लिये, तुम ‘नियोग’ से तपोनिष्ठ ब्राह्मण के द्वारा संतति प्राप्त करो’ [म.आ.१११] । कुंती ने इसका विरोध किया । उसने इसे कहा, ‘व्युषिताश्व राजा की पत्नी भद्रा को उस राजा के शव से पुत्र उत्पन्न हुआ था । यह मार्ग कितना भी नीच क्यों न हो, पर इसे ‘नियोग’ से कहीं अधिक अच्छा समझती हूँ । तब पाण्डु ने क्रुद्ध हो कर कहा, ‘पुत्रोत्पत्ति के लिए समागम करने की आज्ञा पति के द्वारा दी जाने पर, जो स्त्री वैसा आचरण नहीं करती, उसे भ्रूणहत्या का पाप लगता है । उद्दालकपुत्र श्वेतकेतु नामक आचार्य का यही धर्मवचन है । इसी धर्मवचन के अनुसार, सौदास राजा ने अपनी पत्नी दमयंती का समागम वसिष्ठ ऋषि से करवा कर, ‘अश्मक’ नामक पुत्र प्राप्त किया था। इतना कह कर, पाण्डु ने कुन्ती को स्मरण दिलाया, ‘मेरा जन्म भी व्यास के द्वारा इसी ‘नियोग’ मार्ग से हुआ है’ [म.आ.११२-११३]
पांडु n.  फिर कुन्ती ने पांडु को दुर्वासा के द्वारा उसे प्राप्त हुए पुत्रप्राप्ति के मंत्र की कथा बताकर कहा, ‘उस मंत्र का जप कर, इष्टदेवता का स्मरण करने पर तुझे अवश्य पुत्रप्राप्त होगा’। फिर पांडु के आज्ञा के अनुसार, कुन्ती ने उस मंत्र का तीन बार जाप कर, क्रमशः यमधर्म, वायु एवं इंद्र को आवाहन किया । उन देवताओं के अंश से कुन्ती को क्रमशः युधिष्ठिर, भीम एवं नामक पुर उत्पन्न हुये[म.आ.११४] । इसके उपरांत पुत्रोत्पत्ति करना व्यभिचार होगा, यह कहकर कुन्ती ने पुत्रोत्पन्न करना अमान्य कर दिया । बाद में पांडु की आज्ञा से, कुन्ती ने माद्री को दुर्वासा का मंत्र प्रदान किया, तथा अश्विनीकुमारों के प्रभाव से, उसे नकुल, सहदेव नामक जुडवा पुत्र हुये [म.आ.१११-११३]
पांडु n.  एक बार वसंत ऋतु में, पांडु राजा अपने भार्याओं के साथ अरण्य में घूम रहा था । अरण्य की उद्दीप्त सुषमा से प्रभावित हो कर यह कामातुर हुआ । माद्री अकेली इसके पीछे पीछे आ रही थी । झीने वस्त्रों से सुसज्जित माद्री के यौवनाकर्षण पर मुग्ध हो कर उसके न कहने पर भी हठात् इसने उसके साथ समागम किया । किंदम ऋषि द्वारा दिये गये शाप के अनुसार, माद्री से संभोग करते ही इसकी मृत्यु हो गयी । इसके परलोकवासी होने पर, माद्री इसके शव के साथ सती हो गयी । पांडवों ने इसका एवं माद्री की अंत्येष्टि क्रिया कश्यप ऋषि के द्वारा सम्पन्न करायी [म.आ.११६,११८]
पांडु II. n.  धाता का पुत्र [वायु१.२८]
पांडु III. n.  (सो. कुरु.) एक कुरुवंशीय राजा । यह जनमेजय पारिक्षित (प्रथम) का पुत्र था । इसे धृतराष्ट्रादि सात भाई थे [म.आ.९९.४९]
पांडु IV. n.  अंगिराकुल में उत्पन्न एक गोत्रकार ।

पांडु     

A dictionary, Marathi and English | Marathi  English
पांडुकामला f The jaundice.
pāṇḍu a S पांडुर a S Of a yellowish white.

पांडु     

Aryabhushan School Dictionary | Marathi  English
 m 
पांडुकमला  f  The jaundice.
  Of a yellowish white.

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