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अध्याय ५ - राहुमहादशान्तर्दशाफल

मानसागरी - अध्याय ५ - राहुमहादशान्तर्दशाफल

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


राहुकी दशामें बुद्धिकी हानि, मतिमें भ्रम, सबसे शून्य, भय, मृत्युके समान कष्टव्याधि, अपने जनोंसे वियोग, धनहानि और देहके जीवनेकाभी संदेह होवे ॥१॥

राहुके अंतर्गत राहुदशामें अपने भाई और पिताको मरणतुल्य कष्ट, बंधुओंको कष्ट, रोग, अर्थनाश और विदेशगमन होता है तथा अल्पगौरव हो ॥२॥

राहुके अंतर्गत गुरुदशामें मनुष्य व्याधिदुःखकरके रहित देवताब्राह्मणके पूजनमें शक्ति और अर्थकरके युक्त होता है ॥३॥

राहुके अंतर्गत शनिदशामें रक्तपित्तविकारसे पीडा, अनेक जनोंके साथ कलह, शरीरमें अधिक कष्ट रोग और पुण्यका क्षय होता है । काली गौका दान दे ॥४॥

राहुके अंतर्गत बुधदशामें मित्र बंधु तथा धनका समागम बुद्धि धनका लाभ और किंचित् कष्टभी होता है ॥५॥

राहुके अंतर्गत केतुदशामें ज्वर होय, अग्नि, शत्रु, शस्त्रभय हो तथा मृत्यु हो कृष्णवस्तु दान और महामृत्युंजय जपसे शांति करना ॥६॥

राहुके अंतर्गत शुक्रदशामें मित्रोंको कष्ट, परस्त्रीसे भोग, स्त्रीप्राप्ति, धनलाभ और बांधवोंके साथ कलह होता है ॥७॥

राहुके अंतर्गत सूर्यदशामें शस्त्र रोगसे भय, अर्थनाश, राजासे भय तथा अग्नि चोरभय होता है ॥८॥

राहुके अंतर्गत चन्द्रदशामें स्त्रीका लाभ होय, कलह उत्पन्न होय, द्रव्यका नाश, आजीविका और बांधवोंकरके क्लेश होवै ॥९॥

राहुके अंतर्गत भौमदशामें सर्वदा शत्रुभय, शस्त्रभय, अग्निभय होता है, दानसे कष्टशांति होय ॥१०॥

इति राहोरन्तर्दशा समाप्ता ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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