रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक ७

गोस्वामी तुलसीदासजीने श्री. गंगाराम ज्योतिषीके लिये रामाज्ञा-प्रश्नकी रचना की थी, जो आजभी उपयोगी है ।


साजि सुमंगल आरती, रहस बिबस रनिवासु ।

मुदित मात परिछन चलीं उमगत हृदयँ हुलासु ॥१॥

( अयोध्याका ) रनिवास आनन्दमग्न हो गया । मंगल आरती सजाकर माताएँ ( वर-दुलहिनका ) परिछन करने चलीं । हृदयमें आनन्दकी बाढ़ आ रही है ॥१॥

( प्रश्‍न - फल शुभ है । )

करहिं निछावरि आरती, उमगि उमगि अनुराग ।

बर दुलहिन अनुरूप लखि सखी सराहहिं भाग ॥२॥

सखियाँ प्रेमसे बार-बार उमंगलें आकर आरती करके न्योछावर करती हैं और वर तथा दुलहिनोंको परस्पर देखकर ( अपने ) भाग्यको प्रशंसा करती हैं ॥२॥

( प्रश्न-फल उत्तम है । )

मुदित नगर नर नारि सब, सगुन सुमंगल मूल ।

जय धुनि मुनि दुंदुभी बाजहिं बरषहिं फुल ॥३॥

अयोध्या - नगरवासी सभी स्त्री - पुरुष प्रसन्न हैं । मुनिगण जयध्वनि कर रहे हैं और देवता नगारे बजाकर पुष्प - वर्षा कर रहें हैं ॥ यह शकुन सुमंगलका मूल ( मंगलदायी ) है ॥३॥

आये कोसलपाल पुर, कुसल समाज समेत ।

सम‍उ सुनत सुमिरत सुखद, सकल सिद्धि सुभ देत ॥४॥

श्रीकोसलनाथ ( महाराज दशरथ ) बरातके साथ कुशलपूर्वक नगरमें आ गये । यह अवसर सुननेसे तथा स्मरण करनेसे सुख देनेवाले है और सभी शुभ सिद्धियाँ देता है ॥४॥

रूप सील बय बंस गुन, सम बिबाह भये चारि ।

मुदित राउ रानी सकल, सानुकूल त्रिपुरारि ॥५॥

रूप, शील अवस्था, वंश और गुणमें चारों विवाह समान हुए इससें महाराज ( दशरथ ) तथा सब रानियाँ प्रसन्न हैं कि भगवान शंकर ( हमारे ) अनुकुल हैं ॥५॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

बिधि हरि हर अनुकुल अति दशरथ राजहि आजु ।

देखि सराहत सिद्ध सुर संपति समय समाजु ॥६॥

आज महाराज दशरथके लिये ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकरजी अत्यन्त अनुकुल हैं । उनकी सम्पत्ति तथा सौभाग्यमय समाजको देखकर सिद्ध तथा देवतातक उनकी प्रशंसा करते हैं ॥६॥

( प्रश्न फल शुभ है । )

सगुन प्रथम उनचास सुभ, तुलसी अति अभिराम ।

सब प्रसन्न सुर भूमिसूर, गो गन गंगा राम ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रथम सर्गका यह उनचासवाँ दोहा शुभ शकुनका सूचक, अत्यन्त सुन्दर है । देवता, ब्राह्मण, गायें, गंगाजी तथा श्रीराम-सभी प्रसन्न हैं ॥७॥

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Last Updated : January 22, 2014

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