लीला गान - आज ठाढ़ो री बिहारी यमु...

’लीलागान’में भगवल्लीकी मनोमोहिनी मनको लुभाती है ।


आज ठाढ़ो री बिहारी यमुना तट पे,

मत जइयो री अकेली कोई पनघट पे ॥ टेर॥

मुकुट लकट भृकुटी की मटक,

मन रयोरी अटक कटि पीरी पट पे ॥२॥

नन्द जु को छोना लखि धीरज रह्यो ना,

वीर ऐसो कछु टोना नटवर नट पे ॥२॥

गुरुजन त्रास कैसे बसै वृजवास,

मन बन गयो दास घुँघरारी लट पे ॥३॥

छुटी कुल लाज गोपी आयी भाज भाज

रास रसिया को रास आज वंशीवट पे ॥४॥

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Last Updated : January 22, 2014

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