प्रायश्चित्तव्रत - व्रत १ से ५

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


( १ )

प्राजापत्यव्रत

( मन्वादि धर्मशास्त्र ) - इसमें तीन दिन प्रातःकाल ( कुक्कुटाण्डके बराबर २६ या १५ ग्रास ); तीन दिन सायंकाल ( वैसे ही २५ या १२ ग्रास ) और तीन दिन अयाचित ( बिना माँगे जो कुछ जिस समय जितना मिल जाय, उसके चौबीस ग्रास ) भोजन और तीन दिन उपवास करनेसे एक ' प्राजापत्य ' १ होता है । इस प्रकार न हो सके तो एकभुक्त, नक्त, अयाचित और उपवास - ये यथाक्रम ३ - ३ दिन करे । उपवास निराहार न हो सके तो जल, फल या दुग्धपानसे करे । जपशीलको २ बारह हजार जप, तपशीलको ३ एक हजार होम तथा समर्थको १२ ब्राह्मणोंका भोजन और दो गो - दान या गोमूल्यरुपसे कुछ द्रव्यका दान करना चाहिये । इस व्रतसे ' अनादिष्ट ' ( जिनके लिये प्रायश्चित्तका विधान नहीं है उन ) पापोंकी निवृत्ति होती हैं ।

( २ )

पादोनकृच्छ्रव्रत ( मन्वादि धर्मशास्त्र ) - इसमें दो दिन प्रातःकाल, दो दिन सायंकाल, दो दिन अयाचित भोजन और दो दिन उपवास करे । यह न बने तो कुछ सोना दान दे ।

( ३ )

अर्द्धकृच्छ्रव्रत

( धर्मशास्त्र ) - इसमें एक दिन प्रातःकाल, एक दिन सायंकाल, दो दिन अयाचित भोजन और दो दिन उपवास करे । यह न बने तो सोने या चाँदीका दान दे । इस व्रतसे ऋतुकालमें स्त्रीका सहवास त्याग देने - जैसे पापोंकी निवृत्ति होती है ।

सायं प्रातस्तथैकैकं दिनद्वयमयाचितम् ।

दिनद्वयं च नाश्र्नीयात् कृच्छ्रार्धं तद् विधीयते ॥ ( आपस्तम्ब )

( ४ )

पादकृच्छ्रव्रत

( धर्मशास्त्र ) - इसमें एक दिन प्रातःकाल, एक दिन सायंकाल, एक दिन अयाचित भोजन और एक दिन उपवास करनेसे ' पादकृच्छ्र ' १ होता है ।

बालवृद्धातुरेष्वेवं शिशुकृच्छ्रमुवाच ह । ( वसिष्ठ )

( ५ )

अतिकृच्छ्र

( धर्मशास्त्र ) - नौ दिन एक - एक ग्रास भोजन और तीन दिन उपवास करने और ३ या २ गौ देनेसे ' अतिकृच्छ्र ' २ होता है । यह न बन सके तो ' पाणिपूरान्न ' ( हथेलीमें आये उतना ) भोजन और तीन दिन दूध आदिसे उपवास करे । यह व्रत ब्राह्मणके लकुट - प्रहार करने - जैसे पापोंकी निवृत्तिके निमित्त किया जाता है ।

एकैकं ग्रासमश्र्नीयात् त्र्यहणि त्रीणि पूर्ववत् ।

त्र्यहं चोपवसेदन्त्यमतिकृच्छ्रं चरन् द्विजः ॥ ( मनु )

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Last Updated : January 16, 2012

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