भजन - जो नर दुखमें दुख नहिं मान...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जो नर दुखमें दुख नहिं मानै ।

सुख-सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै ॥

नहिं निंदा, नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह-अभिमाना ।

हरष सोकतें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना ॥

आसा-मनसा सकल त्यागिकें, जगतें रहै निरासा ।

काम-क्रोध जेहि परसै नाहिन, तेहि घट ब्रह्म निवासा ॥

गुरु किरपा जेहिं नरपै कीन्ही, तिन्ह यह जुगति पिछानी ।

नानक लीन भयो गोबिंदसों, ज्यों पानी सँग पानी ॥

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Last Updated : December 20, 2007

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