फाल्गुन कृष्णपक्ष व्रत - संकष्टचतुर्थी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


संकष्टचतुर्थी

( भविष्योत्तर ) - यह व्रत प्रत्येक मासकी कृष्ण चतुर्थीको किया जाता है । इसमें चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी लेनी चाहिये । यदि वह दो दिन चन्द्रोदयव्यापिनी हो तो ' मातृविद्धा प्रशस्यते ' के अनुसार पहले दिन व्रत करे । व्रतीको चाहिये कि वह प्रातःस्त्रानादिके पश्चात् व्रत करनेका संकल्प करके दिनभर मौन रहे और सायंकालमें पुनःस्त्रान करके लाल वस्त्र धारणकर ऋतुकालके गन्ध - पुष्पादिसे गणेशजीका पूजन करे, उसके बाद चन्द्रोदय होनेपर चन्द्रमाका पूजन करे और अर्घ्य एवं वायन देकर स्वयं भोजन करे तो सुख, सौभाग्य और सम्पत्तिकी प्राप्ति होती है । इसकी कथा यह है कि सत्ययुगमें राजा युवनाश्वके पास सम्पूर्ण शास्त्रोंके ज्ञाता ब्रह्मशर्मा नामके ब्राह्मण थे, जिनके सात पुत्र और सात पुत्रवधुएँ थीं । ब्रह्मशर्मा जब वृद्ध हुए, तब बड़ी छः बहुओंकी अपेक्षा छोटी बहूने श्वशुरकी अधिक सेवा की । तब उन्होंने संतुष्ट होकर उससे संकष्टहर चतुर्थीका व्रत करवाया, जिसके प्रभावसे वह मरणपर्यन्त सब प्रकारके सुख - साधनोंसे संयुक्त रही ।

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Last Updated : January 01, 2002

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