अध्याय ५४ वा - आरंभ

श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा


श्रीगोविन्दसद्गुरवे नमः ॥
भक्तवत्सला भवभंजना । भावुकसद्भावप्रवर्धना । भक्तिभीमकीसम्भावना । अभावखण्डना गोविंदा ॥१॥
कोणें नेलें भीमकीरत्न । पुसतां सखिया सांगती खुण । स्यन्दन केतु रूप लावण्य । वस्त्राभरण तें ऐका ॥२॥

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Last Updated : May 09, 2017

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