छब्बीसवाँ पटल - कौल संध्या

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


कुलमार्ग के साधक की सन्ध्या --- इस प्रकार स्नान करने के बाद कुलमार्ग का अधिकारी सन्ध्या करे । कुलरुपा महाविद्या रुप योग में युक्त योग में युक्त होने के कारण साधक यतीश्वर हो जाता है । जिस समय शिव की महाशक्ति से साधक युक्त हो जाता है , शाक्तों की समाधि में होने वाली वही महासन्ध्या है । हृदय में शिव का तथा सूर्य का ध्यान कर भाल प्रदेश में शक्ति तथा चन्द्रमा के सङ्गम का ध्यान करे तो शाक्तों की समाधि में होने वाली यही सन्ध्या है ॥९२ - ९४॥

अथवा , इन्दु तथा शिव का ध्यान कर ह्रदय में शक्ति और सूर्य के सङ्रम का ध्यान करें , तो यही शाक्तों की समाधि में होने वाली संयोग विद्या सन्ध्या हो जाती है । इस प्रकार ज्ञानरुपा जगन्मयी सन्ध्या का निरुपण हमने किया । वही नित्या वायवी शक्ति हैं जिसके विनष्ट होने से सन्ध्या भी छिन्न - भिन्न हो जाती है ॥९५ - ९६॥

N/A

References : N/A
Last Updated : July 30, 2011

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP