चतुर्दश पटल - नक्षत्र फल

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


आनन्दभैरवी उवाच

नक्षत्रों के फल --- हे शङ्कर ! अब इसके बाद योगमार्ग से भरणी से प्रारम्भ कर सत्ताईस नक्षत्रों को तथा उन नक्षत्रों में होने वाले उत्तम फलों को भी मैं कहती हूँ । उनके फल का इतना माहात्म्य है कि जितना कलि के साक्षात्कार का होता है ॥१ - २॥

( १ ) भरणी नक्षत्र धर्म विद्यादि के निर्णय के लिए फलदायक है । भरणीनक्षत्र धर्म चिन्ता के लिए प्रशस्त कहा गया है । यह बिना यात्रा के ही मङ्गल देने वाला है , भरणी नक्षत्र वाला पुरुष मकारादि वर्णों वाली वस्तुओं को प्राप्त करता है ॥२ - ३॥

( २ ) कृत्तिका में उत्पन्न पुरुष शादि ( श ष स ह ) वणों वाली वस्तुओं को प्राप्त करता है । आरोग्य तथा धन के लिए भी वह उत्तम है यदि उसमें सूर्य दृष्ट न हों तो ? ॥४॥

( ३ ) रोहिणी नक्षत्र में उत्पन्न पुरुष धनिकों के धन की हानि नहीं करता । वह सबका प्राणप्रिय रहता है , अपने समाज में बुद्धिमान् ‍ तथ बुद्धि ( विवेक ) से शुद्ध रहता है । पृथ्वी मण्डल में वह नागादि ( काद्रवेय सर्पों ) के दोषों को शान्त करने वाला होता है । वह राज्य श्री की प्राप्ति कर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ तथा वृद्धि प्राप्त करता है ॥५॥

( ४ ) मृगशिरा नक्षत्र राजा के मन्दिर में निधि देती है , पाप रहित निर्मल जल में भय शून्य करती है । विवाहकाल में कल्याणकारिणी सुलोचना प्रदान करती है वहा जातक के सारे पापों को नष्ट कर देती है , तथा उससें अनन्त बुद्धि का संचय करती है ॥६॥

( ५ ) आर्द्रा नक्षत्र का वर्णा विद्रुमा ( मूगा ) के समान है । रतिकला में होने वाले कोलाहल को उल्लसित करने वाला है । वह अपने को मनुष्यों के लिए समर्पण कर देता है , और समय से फल देता है । सौख्य तथा मुख्य रुप से समृद्धि देता है । खिले हुये दल युक्त कमल की शोभा के समान वह प्रतिदिन धीरों की रक्षा करता है । इस प्रकार वह शान्त स्वभाव वाला है तथा अपने नेत्रों से अनिष्ट का वारण करता है ॥७॥

( ६ ) पुनर्वसु नक्षत्र तरुणरुपकूपा ( समुद्र ) है . कृपाविशिष्ट फल वाली हैं बिना भावना के ही चित्त के दोषों को दूर करने वाली हैं । अन्तिमावस्था तक धन देती है , बहुत शोक समुदाय को नष्ट करती है , यह महाग्रह की तरहा अत्यन्त पीडा़ में पड़े हुये मनुष्य की रक्षा करती है ॥८॥

( ७ ) पुष्य नक्षत्र सहसा पुण्य तथा पुष्टि प्रटान कराती है , तेजस्वियों में कान्ति देती है , पुष्य नक्षत्र में जातक की स्त्री का विपत्ति का विनाश कर कनकादि का लाभ तथा वंशादि प्रदान करती है , बाधा उपस्थित होने पर फल प्रदान करती हैं , मृगा मृगपति के समान आनन्ददायिनी श्री प्रदान करती है , कादि पञ्च वर्णों के ज्ञान से मनोहर है तथा पुत्र के समान जातक की रक्षा करती है ॥९॥

पूर्वा में रहने वाले इतने ही तारे ( नक्षत्र ) मङ्गल देने वाले हैं । ये ताराएँ इस नक्षत्र चक्र में ग्रहों को घुमाती हुई शोभित होती हैं । हे नाथ ! यदि बहुत पाप रहता है तो ये तारे विपरी फल भी प्रदान करते हैं । कर्क राशि में यदि सूर्य हों तो पुष्य में उत्पन्न हुआ जातक अत्यन्त क्रुर है ॥१० - ११॥

हे प्रभो ! अब इन ताराओं ( नक्षत्रों ) के राशि देवताओं को सुनिए । मेषा , सिंह तथा धनु ये अश्विन्यादि नक्षत्रों के देवता है । जिन राशियों में स्थित वर्ण विषयास्पद में हानि नहीं करते , उन राशियों में क्रुरा ग्रहों के रहने पर भी जाताक को सुख देवे वाले तथा सर्वत्र विजय प्राप्त कराते है ॥१२ - १३॥

विभिन्न राशियों में संभिन्ना ये क्रुर ग्रह धर्मा निन्दा नहीं करवाते । इस प्रकार अपने नक्षत्रा फलों को जानाकरा प्रश्न के लिए कोमल अक्षरों का उच्चारण करे । यदि उन उन नक्षत्रों के फला सुन्दर हैं , तबा तो अच्छी बाता है । किन्तु यदि उनका बुरा फला है , तो वर्ण का विचार कर किसी फूल का नामा लेना चाहिए ॥१४ - १५॥

अक्षमाला ( अ से लेकर क्ष पर्यन्त वर्ण ) के क्रम से ही वर्णों के फल का विचार करते हुये प्रश्न करे । उन उन वर्णों के विचार से जो जो सुख प्राप्त होता है , वही प्रश्न करे । किन्तु अधिक दुःखदायी वर्णों पर प्रश्न करने से अधिकाधिक दुःख प्राप्त होता है , सौख्यकारक वर्णों द्वारा प्रश्न करने पर साधक बहुत सौख्य तथा नित्य सुख प्राप्त करता है । हे भैरव ! अब इन नक्षत्रों के क्रमानुसार उन उन वारों को भी सुनिए । रवि से लेकरा रविवारा पर्यन्त दिन ( आठ आठ नक्षत्रों के क्रम से ) ताराओं ( नक्षत्रों ) के शुभ अधिपति कहे गये हैं ॥१६ - १८॥

हे रुद्र ! इन वारों के। शुभाशुभ का विचार कर तदनन्तर फल कहना चाहिए । वे वार पूर्व दिशा में रहने वाले कमलचक्र पर स्थित है ॥१९॥

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Last Updated : July 29, 2011

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