अध्याय तीसरा - श्लोक २१ से ४०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


जलाशय आदि वास्तुओंका प्रारंभ शुभदायी कहा है ॥२१॥

इसके अनंतर यागोका वर्णंन करते हैं- गुरु लग्नमें हो, सूर्य छठे हो और सौम्यग्रह द्युन (७) में हो, शुक्र सुख (४) में तीसरे शनैश्वर हो ऎसे लग्नमें बनाया जो घर उसकी सौ १०० वर्षकी अवस्था होती है ॥२२॥

शुक्र लग्नमें हो और दशमें सौम्यग्रह, सूर्य लाभ ११ स्थानमें हो गुरु केन्द्रमें होय तो उस लग्नमें बनाया मंदिर सौ १०० वर्ष टिकता है ॥२३॥

चौथे गुरु हो १० दशमें चन्द्रमा हो लाभमें मंगल और सूर्य हो ऎसे लग्नमें जिसका प्रारंभ किया जाय उसकी ८० अस्सी वर्षकी अवस्थ होती है ॥२४॥

लग्नमें शुक्र हो पंचममें गुरु हो छठे ६ मंगल हो तीसरे सूर्य हो ऎसे लग्नमें जिस घरक आरंभ हो वह २०० वर्षतक टिकता है ॥२५॥

लग्नमें गुरु शुक्र स्थित हों और छठी राशिपर मंगल हो और सूर्य लाभमें हो ऎसे लग्नमें बनाया हुआ घर २०० वर्षतक टिकता है ॥२६॥

अपने उच्चका शुक्र लग्नमें हो अपने उच्चका बृहस्पति सुख ४ में हो और उच्चका शनि लाभमें हो ऎसे लग्नमें जिस घरका आरंभ कियाजाय ऎसा घर हजार १००० वर्षतक टिकता है ॥२७॥

अपने उच्चके वा अपने गृहके वा लग्नमें स्थित अथवा केन्द्र्मे स्थित सौम्यगृह हो ऎसे लग्नमें जिसका प्रारंभ हो वह गृह दो सौ वर्षतक टिकता है ॥२८॥

कर्कलनमें चन्द्रमा, केन्द्रमें बृहस्पति, मित्रगृह व अपने उच्चके अन्य ग्रह होंय तो उस घरमें चिरकालतक लक्ष्मी होता है ॥२९॥

पुष्य तीनों उत्तरा आश्लेषा मृगशिर श्रवण रोहिणी और जलके नक्षत्र शतभिषा इनमें बनाया हुआ घर लक्ष्मीसे युक्त्त होता है ॥३०॥

विशाखा चित्रा शतभिषा आर्द्रा पुनर्वसु घनिष्ठा और शुक्रवारसहित इन नक्षत्रोंमें बनाया हुआ घर अन्नको देता है ॥३१॥

हस्त उत्तराफ़ाल्गुनी चित्रा अश्विनी और अनुराधा बुधवारसहित इन नक्षत्रोंमें बनाया घर धन पुत्र और सुखदायी होता है ॥३२॥

अब कुयोगोंका वर्णन करते हैं- छठे स्थानमें ऎसे ग्रह पडे होयँ जो नीचके हों वा पराजित हों ऎसे लग्नमें जिस गृहका प्रारंभ हो उसमें नाश होता है ॥३३॥

जिस लग्नमें एकभी परभागमें स्थित हो वा दशम सप्तममें स्थित हो और वर्णका स्वामी बलसे हीन हो तो वह घर परहस्तगामी होजाता है ॥३४॥

पापग्रहोंके अन्तर्गत लग्न हो, सौम्यग्रहोंसे युक्त और दृष्ट न हो, अष्टमस्थानमें शनैश्वर होय तो वह घर अस्सी वर्षके मध्यमें नष्ट होता है ॥३५॥

शनैश्वर लग्नमें स्थित हो, मंगल सप्तमभवनमें और लग्नमें शुभग्रहोंकी दृष्टि न होय तो वह घर सौ १०० वर्षमें नष्ट होजाता है ॥३६॥

क्षीणचंद्रमा लग्नमें हो, अष्टम स्थानमें मंगल हो एसे लग्नमें जिसका प्रारंभ हो वह घर शीघ्र नष्ट होजाता है ॥३७॥

दशाका पति और वणका नाथ बलसे हीन हो और पीडित नक्षत्रपर सूर्य हो ऎसे घरकोकदाचित न बनवावे ॥३८॥

मघा मल पुष्य भाग्य ( पूर्वाफ़ा० ) हस्त रेवती इनमें बनाया हुआ ॥३९॥

और मंगलसहित इनमें बनाया घर अग्निसे भस्म होजाता है ॥४०॥

N/A

References : N/A
Last Updated : January 20, 2012

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP