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अथर्वन् [atharvan] m. m. [अथ-ऋ-वनिप् शकन्ध्वादि˚ [Tv.] ; probably connected with some word like athar fire]
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अथर्वन् n. अश्वत्थ के दानस्तुति का दान ग्रहण करनेवाला [ऋ.५.४७.२४] । यह एक प्राचीन उपाध्याय था [ऋ.१०.१२०.९] । इसीने अग्निमंथन का प्रचार किया [ऋ.६.१६.१३] ;[तै.ब्रा.३.५.११] ;[वा.सं.३०.१५] । इसके द्वारा उत्पन्न अग्नि, विवस्वत् का दूत बना [ऋ.१०.२१.५] । इसीके नाम पर से अग्नि को अथर्वन् नाम प्राप्त हुआ [ऋ.६.१६.१३] । अग्नि को इसकी उपमा दी गई मिलती है [ऋ.१०.८७.१२, ८.९.७] । अथर्वन् का अर्थ अग्निहोत्री भी है [ऋ.७.१.१] । इसका तथा इन्द्र का स्नेह था । इन्द्र इसे सहायता लरता था ।इसकी देवताओं में गणना की गई है [बृ.उ.२.६.३, ४.६.३] । इसने इन्द्र को उद्देशित कर के एक स्तोत्र की रचना की है [ऋ.१.८०.१६] । इसने यज्ञ कर के, स्थैर्य प्राप्त कर लिया [ऋ.१०.९२.१०] । इसने यज्ञसामर्थ्य से मार्ग चौडा कर लेने पर, सूर्य उत्पन्न हुआ [ऋ.१.८३.५] । मनु तथा दध्यच् के साथ इसने तप किया था [ऋ.१.१०.१६] । अथर्वागिरस् शब्द प्राय है [अ.वे.१०.७.२०.] ;[श.ब्रा.११.५.६७] । इसने इन्द्र को सोमरस दिया [अ.वे.५.११,७.१०४] । वरूण ने इसे एक कामधेनु दी थी [अ. वे. १८. ३. ५४] इसका देवताओं के साथ स्नेहसंबंध होने के कारण यह स्वर्ग में रहता था [अ.वे. ४.१.७] । यह आचार्य था [श.ब्रा.१४.५.५.२२, ७.३.२८] । अथर्वागिरस् ऋषि का प्रादुर्भाव वैशाली राज्य में हुआ । इस शब्द का शब्द का अनेकवचन पितर अर्थ से आया है [ऋ.१०.१४.४-६, १०.१५.८] । वे स्वर्ग में रहने वाले देवता थे [अ.वे.११.६.१३] । एक अद्भुत मूली से ये दैत्यनाश करते थे [अ.वे. ३७.७] । यह ब्रह्मदेव का ज्येष्ठ पुत्र । यज्ञ नामक इन्द्र इसका सहाध्यायी था । इन दोनों को ब्रह्मदेव से ब्रह्मविद्या प्राप्त हुई [मुं. उ.१.१.१-२] । यह स्वायंभुव मन्वन्तर का ऋषि था । यह ब्रह्मदेव का मानसपुत्र था । इसे कर्दमकन्या शांति तथा चित्ति नामक दो पत्नियॉं थी [भा.४.१,१०.७४.९] । इसे सुरुपा मारीची, स्वराट् कार्दमी तथा पथ्या मानवी ये तीन पत्नियॉं थीं [ब्रह्मांड. ३.१.१०२-१०३] ;[वायु.६५.९८] । परंतु सुरुपा मारीची, अंगिरस् की पत्नी मानी गई है [मत्स्य. १९६.१] । धृतव्रत, दध्यच् तथा अथर्वशिरस् इसके पुत्र हैं । इन्हें आथर्वण कहते हैं । यह युधिष्ठिर के यज्ञ में ऋत्विज था [भा.१०.७४.९] । अंगिरस कुल का प्रथम से इसका संबंध है, ऐसा उल्लेख अथर्ववेद में पाया जाता है [म.उ.१८.७-८] ;[मुं.उ.१.१.१-२] ;[वायु. ७४] ;[ब्रह्मांड. ३.६५.१२] ;[ह. वं.१.२५] । इसकी मॉं का नाम सती था [भा.६.६.१९] । इसने समुद्र से अग्नि बाहर निकाला [म.व.२१२.१८] । नहुष, इन्द्रपद से भ्रष्ट होने के पश्चात् पहला इन्द्र सिंहासन पर बैठा । तब अंगिरा ने आ कर अथर्ववेदमंत्रों से इन्द्र का सत्कार किया । तब इन्द्र ने इसे वरदान दिया कि‘तुम्हारी वेद का नाम अथर्वागिरस होगा, तुम्हें भी लोग अथर्वागिरस् कहेंगे तथा तुम्हें यज्ञभाग भी मिलेगा’ (म.उ.१८.५-८’ पणि देखिये) ।
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A priest who has to worship fire and Soma.
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A Brāhmaṇa.
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