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foracer
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invitation
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dinner
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invited
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bait
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वान्त
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समयः
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forage
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invite
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अथान्त्येष्टिप्रयोगः - अस्थिसंचयनम्
‘कृत्य दिवाकरः’ या ग्रंथाद्वारे शास्त्रोक्त पूजा पाठ कसे करावेत याचे ज्ञान मिळते.
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आह्वे
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त्रेतायुगसन्तानः - अध्यायः २३८
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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निर्वाणप्रकरणं - सर्गः १
योगवाशिष्ठ महारामायण संस्कृत साहित्यामध्ये अद्वैत वेदान्त विषयावरील एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ आहे. ह्याचे रचयिता आहेत - वशिष्ठ
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पार्वतीखण्डः - अध्यायः ५३
शिव पुराणात भगवान शिवांच्या विविध रूपांचे, अवतारांचे, ज्योतिर्लिंगांचे, शिव भक्तांचे आणि भक्तिचे विस्तृत वर्णन केलेले आहे.
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निर्णयसंग्रहः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा । वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥ अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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पार्वतीखण्डः - अध्यायः ५२
शिव पुराणात भगवान शिवांच्या विविध रूपांचे, अवतारांचे, ज्योतिर्लिंगांचे, शिव भक्तांचे आणि भक्तिचे विस्तृत वर्णन केलेले आहे.
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वेंकटेश्वर माहात्म्य - पंचमोऽध्यायः
Venkateshwara also known as Venkatachalapathy or Srinivasa or Balaji, is the supreme God believed to be a form of the Hindu Deity Lord Vishnu.
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स्कंध १ ला - अध्याय १५ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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पार्वतीखण्डः - अध्यायः ४५
शिव पुराणात भगवान शिवांच्या विविध रूपांचे, अवतारांचे, ज्योतिर्लिंगांचे, शिव भक्तांचे आणि भक्तिचे विस्तृत वर्णन केलेले आहे.
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भूमिखंडः - अध्यायः १०१
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः २०८
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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कर्मविपाकसंहिता - ज्येष्ठा नक्षत्र
कर्मविपाकसंहितासे बडी सुगमतासे लोग अपना पूर्वजन्म का वृत्तांत जान सकते है और विधिपूर्वक प्रायश्चित्त करने से अपने मनोरथों को सिद्ध कर सकते है।
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भूमिखंडः - अध्यायः ८५
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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भूमिखंडः - अध्यायः १०५
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः २४३
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ४६२
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ४८९
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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मानसारम् - राजहर्म्यविधानम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ४२८
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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चतुर्थः भागः - विषाधिकारः
भावप्रकाशसंहिता
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः १९४
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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त्रेतायुगसन्तानः - अध्यायः ११७
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः ४१
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तिष्यसन्तानः - अध्यायः ६७
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः २१५
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तिष्यसन्तानः - अध्यायः ३०
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः २४९
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः ९५
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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त्रेतायुगसन्तानः - अध्यायः २८१
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ४००
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः २०५
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तिष्यसन्तानः - अध्यायः ६
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः १३९
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः १६५
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ३८०
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ३५६
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः ५१
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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मानसारम् - पदविन्यासलक्षणम्
'मानसारम्' वास्तुशास्त्रावरील एक प्राचीन ग्रंथ आहे.
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः ५२
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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क्रियाखण्डः - अध्यायः ११
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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