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भोजनादि शयनान्तविधि
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
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cater
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आपामरसाधारण
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अननं
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commissary
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श्रीनारदभक्तिसूत्रें - सूत्र १४
नारद भक्ति सूत्र या ग्रंथाचे रसाळ निरूपण संत केशवराज महाराज देशनुख यांनी केले आहे.
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नारद भक्ति सूत्र - प्रथमोऽध्यायः
नारद भक्ति सूत्राचे रोज वाचन केल्याने सर्व कलह नष्ट होतात
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अध्याय २०७ - कौमुदव्रतं
अग्निपुराणात त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु, महेश आणि सूर्य ह्या देवतांसंबंधी पूजा-उपासनाचे वर्णन केलेले आहे.
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पौष शुक्लपक्ष व्रत - आरोग्यव्रत
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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मानसागरी - अध्याय ५ - चन्द्रमध्ये चन्द्रान्तरफलानि
सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.
The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.
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मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष व्रत - निक्षुभार्कचतुष्ट्य
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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धर्मसिंधु - घटस्थापनाविधि
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे. This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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विठ्ठल चित्रकवि
' अभंग ' म्हणजे संतकवींनी समाजजागृतीसाठी केलेल्या रसाळ रचना.
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भाद्रपद शुक्लपक्ष व्रत - मौनव्रत
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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आश्विन कृष्णपक्ष व्रत - पितृव्रत
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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अश्वत्थप्रदक्षिणाव्रत
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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माघ शुक्लपक्ष व्रत - सप्तसप्तमी
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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षष्ठ पटल - भावविद्याविधि
रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।
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बृहत्संहिता - अध्याय ७५
शके ८८८ फाल्गुन कृष्ण द्वितीया गुरुवारी उत्पलनामकाने ही टीका केली.
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पङ्क्ति
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Tags: paṅktiḥ,
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यक्षिणी साधना - भूतिनी यक्षिणी साधन
भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया , उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है ।
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स्कंध ४ था - अध्याय २६ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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सप्तत्रिंशोsध्याय:
श्री. प. प.वासुदेवानन्दसरस्वतीकृत श्रीगुरुचरित्रकाव्य
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गिरिराजखण्डः - अध्यायः ०६
गर्ग संहिता ही गर्ग मुनिंची रचना आहे. ह्या संहितेत श्रीकृष्ण आणि राधाच्या माधुर्य-भाव असलेल्या लीलांचे वर्णन आहे.
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः १६०
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः २८३
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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षष्ठ पटल - कुमारीलक्षण
रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।
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स्कंध १ ला - अध्याय १३ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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त्रेतायुगसन्तानः - अध्यायः १७९
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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त्रेतायुगसन्तानः - विषयानुक्रमणिका
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तिष्यसन्तानः - विषयानुक्रमणिका
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तिष्यसन्तानः - अध्यायः २३
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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परमपुरुषसंहिता - सप्तमोध्यायः
संहिता हिन्दू धर्मातील पवित्र आणि सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदांतील मन्त्रांचे खण्ड होत.
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नानामुहूर्त्तप्रकरणम् - श्लोक १३ ते ३७
अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ५२४
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः १८०
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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नागनाथहंसाख्यान - पत्नीसह गृहत्याग
श्रीमत्सद्गुरूहंसराजस्वामींची शिकवण म्हणजे मोक्षरूपी ध्येय गाठण्याकरितां श्रुति , युक्ति व अनुभूति यांच्या आधाराने साधकांच्या सोयीकरितां तयार करून दिलेली ज्ञानयोगाची सोपानपरंपराच आहे .
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त्रेतायुगसन्तानः - अध्यायः २२६
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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स्कंध १० वा - अध्याय ५२ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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नागनाथहंसाख्यान - सिध्दींची प्राप्ति
श्रीमत्सद्गुरूहंसराजस्वामींची शिकवण म्हणजे मोक्षरूपी ध्येय गाठण्याकरितां श्रुति , युक्ति व अनुभूति यांच्या आधाराने साधकांच्या सोयीकरितां तयार करून दिलेली ज्ञानयोगाची सोपानपरंपराच आहे .
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ७२
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तृतीयपरिच्छेद - यज्ञोपवीत
निर्णयसिंधु ग्रंथामध्ये कोणत्या कर्माचा कोणता काल , याचा मुख्यत्वेकरून निर्णय केलेला आहे .
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नागनाथहंसाख्यान - अंजनगांवीं वास्तव्य
श्रीमत्सद्गुरूहंसराजस्वामींची शिकवण म्हणजे मोक्षरूपी ध्येय गाठण्याकरितां श्रुति, युक्ति व अनुभूति यांच्या आधाराने साधकांच्या सोयीकरितां तयार करून दिलेली ज्ञानयोगाची सोपानपरंपराच आहे.
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः २९२
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तिष्यसन्तानः - अध्यायः ३१
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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त्रेतायुगसन्तानः - अध्यायः २३५
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः ११४
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तिष्यसन्तानः - अध्यायः ३३
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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द्वापरयुगसन्तानः - अध्यायः १२३
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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तिष्यसन्तानः - अध्यायः ७९
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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