-
copperplate
Meanings: 2; in Dictionaries: 2
Type: WORD | Rank: 0.0853129 | Lang: NA
-
सुचीरम्
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
Type: WORD | Rank: 0.05687527 | Lang: NA
-
mandate
Meanings: 16; in Dictionaries: 9
Type: WORD | Rank: 0.02843763 | Lang: NA
-
city
Meanings: 11; in Dictionaries: 5
Type: WORD | Rank: 0.02488293 | Lang: NA
-
copper
Meanings: 23; in Dictionaries: 11
Type: WORD | Rank: 0.02132823 | Lang: NA
-
मयमतम् - अथ चतुस्त्रिंशोऽध्यायः
The Mayamatam is a vastusastra. Mayamatam gives indications for the selections of a proper orientation, right dimensions, and appropriate materials.
Type: PAGE | Rank: 0.02010844 | Lang: NA
-
fore
Meanings: 10; in Dictionaries: 6
Type: WORD | Rank: 0.01777352 | Lang: NA
-
मयमतम् - अथ चतुर्दशोऽध्यायः
The Mayamatam is a vastusastra. Mayamatam gives indications for the selections of a proper orientation, right dimensions, and appropriate materials.
Type: PAGE | Rank: 0.01777352 | Lang: NA
-
खण्डः ३ - अध्यायः ३०७
विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण आहे. अधिक माहितीसाठी प्रस्तावना पहा.
Type: PAGE | Rank: 0.01777352 | Lang: NA
-
lease
Meanings: 43; in Dictionaries: 13
Type: WORD | Rank: 0.01777352 | Lang: NA
-
अंशुमत्काश्यपागमः - स्तंभलक्षणपटलः
वास्तुशास्त्रावरील एक असामान्य ग्रंथ..
Type: PAGE | Rank: 0.01759489 | Lang: NA
-
अंशुमत्काश्यपागमः - बोधिकालक्षणपटलः
वास्तुशास्त्रावरील एक असामान्य ग्रंथ..
Type: PAGE | Rank: 0.01421882 | Lang: NA
-
मत्स्यपुराणम् - अध्यायः ६७
मत्स्य पुराणात सात कल्पांचे वर्णन असून हे पुराण नृसिंह वर्णनापासून सुरू होते.
Type: PAGE | Rank: 0.01421882 | Lang: NA
-
मानसारम् - अधिष्ठानविधानम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.01175608 | Lang: NA
-
उत्तरस्थानम् - नवमोऽध्यायः
हिन्दू धर्मातील पवित्र आणि सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदांतील मन्त्रांचे खण्ड म्हणजेच संहिता.
Type: PAGE | Rank: 0.01066411 | Lang: NA
-
दिग्भद्रा दिप्रासादलक्षणं नाम चतुष्षष्टितमोऽध्यायः - १ ते ५०
समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।
Type: PAGE | Rank: 0.01066411 | Lang: NA
-
मानसारम् - राजलक्षणम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.01066411 | Lang: NA
-
उत्तरस्थानम् - त्रिंशोऽध्यायः
हिन्दू धर्मातील पवित्र आणि सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदांतील मन्त्रांचे खण्ड म्हणजेच संहिता.
Type: PAGE | Rank: 0.01066411 | Lang: NA
-
उत्तान
Meanings: 55; in Dictionaries: 10
Type: WORD | Rank: 0.01066411 | Lang: NA
-
मानसारम् - द्वारमानविधानम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.01005422 | Lang: NA
-
मानसारम् - सिंहासनलक्षणम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.01005422 | Lang: NA
-
मेर्वादिविंशिकानागरप्रासादलक्षणं नाम त्रिषष्टितमोऽध्यायः - ५१ ते ११७
समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।
Type: PAGE | Rank: 0.01005422 | Lang: NA
-
निर्वाणप्रकरणं - सर्गः ८७
योगवाशिष्ठ महारामायण संस्कृत साहित्यामध्ये अद्वैत वेदान्त विषयावरील एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ आहे. ह्याचे रचयिता आहेत - वशिष्ठ
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
द्राविडप्रासादलक्षणं नाम द्विषष्टितमोऽध्यायः - ५१ ते १००
समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
उत्तरस्थान - अध्याय ९
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
जगत्यङ्गसमुदायाधिकारो नामाष्टषष्टितमोऽध्यायः
समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
अंशुमत्काश्यपागमः - मूध्नेष्टकाविधिपटलः
वास्तुशास्त्रावरील एक असामान्य ग्रंथ..
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
सूत्रस्थान - अध्याय २२
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
मध्यम भागः - अध्यायः १६
ब्रह्माण्डाच्या उत्पत्तीचे रहस्य या पुराणात वर्णिलेले आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
राजगृहं नाम त्रिंशोऽध्यायः - १ ते ५०
समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
दशमोऽध्याय:
विश्वकर्मकृतायां वास्तुशास्त्रे वास्तुविद्या
Type: PAGE | Rank: 0.00888676 | Lang: NA
-
मयमतम् - अथ पञ्चदशोऽध्यायः
The Mayamatam is a vastusastra. Mayamatam gives indications for the selections of a proper orientation, right dimensions, and appropriate materials.
Type: PAGE | Rank: 0.008797443 | Lang: NA
-
कृतयुगसन्तानः - अध्यायः २८६
लक्ष्मीनारायणसंहिता
Type: PAGE | Rank: 0.007109408 | Lang: NA
-
ब्रह्मपुराणम् - अध्यायः ५८
ब्रह्मपुराणास आदिपुराण म्हणतात. यात सृष्टीची उत्पती, पृथुचे पावन चरित्र, सूर्य आणि चन्द्रवंशाचे वर्णन, श्रीकृष्ण-चरित्र, कल्पान्तजीवी मार्कण्डेय मुनि चरित्र, तीर्थांचे माहात्म्य अशा अनेक भक्तिपुरक आख्यानांची सुन्दर चर्चा केलेली आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.007109408 | Lang: NA
-
मानसारम् - प्रलम्बलक्षणम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.007109408 | Lang: NA
-
मानसारम् - प्रस्तरविधानम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.007109408 | Lang: NA
-
उत्तरार्धम् - अध्यायः १८
वायुपुराणात खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, युग, तीर्थ, पितर, श्राद्ध, राजवंश, ऋषिवंश, वेद शाखा, संगीत शास्त्र, शिवभक्ति, इत्यादिचे सविस्तर निरूपण आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.007109408 | Lang: NA
-
अंशुमत्काश्यपागमः - एकतलविधिपटलः
वास्तुशास्त्रावरील एक असामान्य ग्रंथ..
Type: PAGE | Rank: 0.007109408 | Lang: NA
-
उत्तरस्थान - अध्याय ३०
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.007109408 | Lang: NA
-
शिवराजाभिषेकप्रयोग: - विधिमुहुर्तादि विचार
गागाभट्टकृत राजाभिषेकप्रयोग: ।
Type: PAGE | Rank: 0.006220732 | Lang: NA
-
उत्तरभागः - अध्यायः ५५
`नारदपुराण’ में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द-शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवानकी उपासनाका विस्तृत वर्णन है।
Type: PAGE | Rank: 0.006220732 | Lang: NA
-
विष्णुपर्व - अष्टादशाधिकशततमोऽध्यायः
महर्षी व्यासांनी रचलेला हा महाभारताचा पुरवणी ग्रंथ आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.006220732 | Lang: NA
-
मयमतम् - अथ त्रयोविंशोऽध्यायः
The Mayamatam is a vastusastra. Mayamatam gives indications for the selections of a proper orientation, right dimensions, and appropriate materials.
Type: PAGE | Rank: 0.006220732 | Lang: NA
-
ब्रह्मपुराणम् - अध्यायः २१७
ब्रह्मपुराणास आदिपुराण म्हणतात. यात सृष्टीची उत्पती, पृथुचे पावन चरित्र, सूर्य आणि चन्द्रवंशाचे वर्णन, श्रीकृष्ण-चरित्र, कल्पान्तजीवी मार्कण्डेय मुनि चरित्र, तीर्थांचे माहात्म्य अशा अनेक भक्तिपुरक आख्यानांची सुन्दर चर्चा केलेली आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.005332056 | Lang: NA
-
मानसारम् - स्तम्भलक्षणम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.00444338 | Lang: NA
-
अथ क्रियापादः - करणाधिकारलक्षण पटलः
सुप्रभेदागमः म्हणजे शिल्पशास्त्र ह्या विषयावरील महत्वपूर्ण ग्रंथ.
Type: PAGE | Rank: 0.00444338 | Lang: NA
-
अथ राजाभिषेकप्रयोग: ॥
गागाभट्टकृत राजाभिषेकप्रयोग: ।
Type: PAGE | Rank: 0.00444338 | Lang: NA
-
क्रियापदः - करणाधिकारलक्षण पटलः
सुप्रभेदागमः
Type: PAGE | Rank: 0.00444338 | Lang: NA
-
मानसारम् - विमानलक्षणम्
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.00444338 | Lang: NA
-
मेर्वादिविंशिका नाम सप्तपञ्चाशोऽध्यायः
समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।
Type: PAGE | Rank: 0.002666028 | Lang: NA