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स्नेहभङ्ग
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भवोच्छेद
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ध्यानभङ्ग
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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पाठविच्छेद
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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पत्त्रच्छेद्य
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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गोतीर्थक
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क्लान्तिच्छेद
Meanings: 3; in Dictionaries: 2
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शीर्षच्छेद
Meanings: 3; in Dictionaries: 2
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शीर्षच्छेदक
Meanings: 2; in Dictionaries: 1
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स्नेहच्छेद
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विंझणें
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अतिच्छन्द
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मर्मभेद
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विझणें
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शेड
Meanings: 7; in Dictionaries: 6
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अहित
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परिच्छेद
Meanings: 28; in Dictionaries: 7
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उत्तरस्थान - अध्याय २३
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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निदानस्थान - अध्याय ४
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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छेद
Meanings: 42; in Dictionaries: 9
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सकल
Meanings: 39; in Dictionaries: 11
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छिद्
Meanings: 21; in Dictionaries: 4
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सुहृद्-भेदः - कथा ९
हितोपदेश भारतीय जन- मानस तथा परिवेश से प्रभावित उपदेशात्मक कथाएँ हैं। हितोपदेश की कथाएँ अत्यंत सरल व सुग्राह्य हैं।
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उत्तरस्थान - अध्याय ११
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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सूत्रस्थान - अष्टविध-शस्त्रकर्माविषयी
भारतीय शास्त्रांमध्ये वैद्यक शास्त्राने फार प्राचीन काळापासून प्रगती केलेली आहे , त्यापैकी चरक आणि सुश्रुत यांनी सर्व जगाला आरोग्यविषयक ज्ञान दिले .
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मार्कण्डेयपुराणम् - पञ्चदशोऽध्यायः
मार्कण्डेय पुराणात नऊ हजार श्लोकांचा संग्रह आहे.
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मिश्रितप्रकरणम् - श्लोक ११३ ते १५०
अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .
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निदानस्थान - अध्याय ११
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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सूत्रस्थान - अध्याय २६
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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संकेत कोश - संख्या ५
हिंदू धर्मात असे अनेक संकेत आहेत ,जे आपल्या जीवनात मोलाचे कार्य बजावतात .
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निदानस्थान - अध्याय १३
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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सूत्रस्थान - शल्यायनयनीय
भारतीय शास्त्रांमध्ये वैद्यक शास्त्राने फार प्राचीन काळापासून प्रगती केलेली आहे , त्यापैकी चरक आणि सुश्रुत यांनी सर्व जगाला आरोग्यविषयक ज्ञान दिले .
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निदानस्थान - अध्याय २
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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समय मातृका - द्वितीयः समयः
क्षेमेंद्र के ग्रंथ समयमातृका का रचनाकाल १०५० ई है। यह एक हास्य प्रहसन का अत्युत्तम ग्रंथ है ।
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५
Meanings: 551; in Dictionaries: 4
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