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अनरुढा
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कुललयाश्व
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उपदेश - संसारिकांस उपदेश १९ ते २१
संत नामदेवांनी भक्ति-गीते आणि अभंगांची रचना करून समस्त जनता-जनार्दनाला समता आणि प्रभु-भक्तिची शिकवण दिली.
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संवरण
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उपदेश - जनांस उपदेश ६ ते १०
संत नामदेवांनी भक्ति-गीते आणि अभंगांची रचना करून समस्त जनता-जनार्दनाला समता आणि प्रभु-भक्तिची शिकवण दिली.
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सम्राज्
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दुष्यंत
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स्कंध ९ वा - अध्याय २० वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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विष्णुदास नामा
' अभंग ' म्हणजे संतकवींनी समाजजागृतीसाठी केलेल्या रसाळ रचना.
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कार्तिक माहात्म्य - अध्याय २१
कार्तिक माहात्म्य वाचल्याने गतजन्मातील पापे नष्ट होतात.
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श्री दत्ताची आरती - त्रिगुणात्मक त्रैमूर्ती द...
श्री दत्ताची आरती दत्तात्रेय पूर्ण अवतार असून, ब्रम्हा, विष्णू आणि महेश यांचे एकत्रीत रूप आहे. Dattatrya is considered by some Hindus, to be god who is an incarnation of the Divine Trinity Brahma, Vishnu and Mahesh.
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अध्याय दसवाँ - श्लोक ४१ से ६०
देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।
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भाग २ - लीळा २९१ ते ३००
प्रस्तुतचे भागात श्रीचक्रधरस्वामींचे सेंदुरणीस आगमन झाल्यानंतर भटोबासांस ईश्वरप्रतीत होऊन स्वामींचे खडकुलीस प्रयाण होईपर्यंतचा इतिवृतांत आला आहे.
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नरहरितनयकृत
विविध कवींच्या प्राचीन कविता शके १८२७ मध्ये श्री. भावे यांनी प्रसिद्ध केल्या.
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बृहज्जातक - अध्याय ७
सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.
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ध्रुवचरित्र
विविध कवींच्या प्राचीन कविता शके १८२७ मध्ये श्री. भावे यांनी प्रसिद्ध केल्या.
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अनुभवामृत - प्रकरण २ रें
वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.
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मरुत्त आविक्षित कामप्रि
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भाग २ - लीळा २८१ ते २९०
प्रस्तुतचे भागात श्रीचक्रधरस्वामींचे सेंदुरणीस आगमन झाल्यानंतर भटोबासांस ईश्वरप्रतीत होऊन स्वामींचे खडकुलीस प्रयाण होईपर्यंतचा इतिवृतांत आला आहे.
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दिलीप
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वेन
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तीर्थावळी - अभंग ४१ ते ५०
तीर्थांचे वर्णन.
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नैषधीयचरितम् - षष्ठ सर्गः
महाकवि श्रीहर्षरचितं नैषधीयचरितम् हा ग्रंथ म्हणजे संस्कृत भाषेतील अतिउत्तम रचना होय.
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श्रीनाथलीलामृत - अध्याय १५ वा
नाथसंप्रदाय भारताच्या सांस्कृतिक इतिहासांत महनीय स्थान पावलेला संप्रदाय आहे.
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उत्तर खंड - उपनिषदानुसरित
सत्कार्योत्तेजक सभा धुळें, महाराष्ट्रधर्मग्रन्थमाला
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श्रीनाथलीलामृत - अध्याय ५ वा
नाथसंप्रदाय भारताच्या सांस्कृतिक इतिहासांत महनीय स्थान पावलेला संप्रदाय आहे.
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अध्याय पहिला - प्रस्तावोध्याय
भगवान सद्गुरु श्रीगोविंद अनंत ऊर्फ श्रीमामामहाराज केळकर यांचे चरित्र.
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श्रीनाथलीलामृत - अध्याय १९ वा
नाथसंप्रदाय भारताच्या सांस्कृतिक इतिहासांत महनीय स्थान पावलेला संप्रदाय आहे.
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कार्तवीर्य
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पतंजलि
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पांडवप्रताप - अध्याय २९ वा
पांडवप्रताप ग्रंथवाचन म्हणजे चंचल मनाला भक्तियोगाकडे वळविण्याचा प्रवास.
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कीर्तन आख्यान - बभ्रुवाहनाख्यान
कीर्तनकारांना नित्य उपयोगी अशी आख्याने. विष्णुदासांनी याला ’कीर्तन-मुक्ताहार’ असे नाव दिले होते.
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स्कंध १० वा - अध्याय ८७ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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श्रीनाथलीलामृत - अध्याय ९ वा
नाथसंप्रदाय भारताच्या सांस्कृतिक इतिहासांत महनीय स्थान पावलेला संप्रदाय आहे.
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श्रीनाथलीलामृत - अध्याय १४ वा
नाथसंप्रदाय भारताच्या सांस्कृतिक इतिहासांत महनीय स्थान पावलेला संप्रदाय आहे.
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श्रीनाथलीलामृत - अध्याय ६ वा
नाथसंप्रदाय भारताच्या सांस्कृतिक इतिहासांत महनीय स्थान पावलेला संप्रदाय आहे.
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प्रजापति
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श्रीनाथलीलामृत - अध्याय २७ वा
नाथसंप्रदाय भारताच्या सांस्कृतिक इतिहासांत महनीय स्थान पावलेला संप्रदाय आहे.
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मध्यम भागः - अध्यायः ७
ब्रह्माण्डाच्या उत्पत्तीचे रहस्य या पुराणात वर्णिलेले आहे.
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पृथु
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देव
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