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सान्तपनम्
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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गोमयम्
Meanings: 2; in Dictionaries: 1
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strait
Meanings: 12; in Dictionaries: 7
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विष्णुस्मृतिः - अध्यायः ३८
स्मृतिग्रंथ म्हणजे धर्मशास्त्रावरील एक आवश्यक वचनांचा भाग.
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पंचम पटल - धर्मरूपयोगविघ्नकथनम्
महायोगी आदिनाथ श्रीमहादेव विरचित " शिवसंहिता " हा ग्रंथ देवी पार्वतीने विचारलेले प्रश्न व त्या प्रश्नांना श्रीशिवांनी दिलेली उत्तरे या प्रश्नोत्तरांच्या रूपाने अवतरित झाला आहे.
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suffering
Meanings: 4; in Dictionaries: 3
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grief
Meanings: 4; in Dictionaries: 4
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bodily
Meanings: 4; in Dictionaries: 3
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predicament
Meanings: 6; in Dictionaries: 5
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austere
Meanings: 7; in Dictionaries: 4
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penance
Meanings: 4; in Dictionaries: 3
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exigence
Meanings: 6; in Dictionaries: 2
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difficulty
Meanings: 6; in Dictionaries: 4
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discomfort
Meanings: 10; in Dictionaries: 5
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inconvenience
Meanings: 7; in Dictionaries: 6
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mortification
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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privation
Meanings: 11; in Dictionaries: 5
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खण्डः २ - अध्यायः १२३
विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण आहे. अधिक माहितीसाठी प्रस्तावना पहा.
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विष्णुस्मृतिः - अध्यायः ५२
स्मृतिग्रंथ म्हणजे धर्मशास्त्रावरील एक आवश्यक वचनांचा भाग.
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पराशरस्मृतिः - दशमोध्यायः
स्मृतिग्रंथ म्हणजे धर्मशास्त्रावरील एक आवश्यक वचनांचा भाग.
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misfortune
Meanings: 7; in Dictionaries: 4
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अध्याय १७१ - प्रायश्चित्तानि
अग्निपुराणात त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु, महेश आणि सूर्य ह्या देवतांसंबंधी पूजा-उपासनाचे वर्णन केलेले आहे.
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धर्मपदम् - बुद्धवर्गः चतुर्दशः
धर्मपदम्
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trouble
Meanings: 15; in Dictionaries: 5
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pain
Meanings: 28; in Dictionaries: 10
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खण्डः ३ - अध्यायः ३४८
विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण आहे. अधिक माहितीसाठी प्रस्तावना पहा.
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चतुर्थः पाद: - सूत्र ४१-४३
ब्रह्मसूत्र वरील हा टीका ग्रंथ आहे. ब्रह्मसूत्र ग्रंथात एकंदर चार अध्याय आहेत.
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अथ चर्यापादः - प्रायश्चित्तविधिपटलः
सुप्रभेदागमः म्हणजे शिल्पशास्त्र ह्या विषयावरील महत्वपूर्ण ग्रंथ.
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खण्डः ३ - अध्यायः २३६
विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण आहे. अधिक माहितीसाठी प्रस्तावना पहा.
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चर्यापदः - प्रायश्चित्तविधिपटलः
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
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misery
Meanings: 9; in Dictionaries: 4
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त ५४ वे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
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निपातन
Meanings: 22; in Dictionaries: 4
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doubt
Meanings: 22; in Dictionaries: 5
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त १४६ वे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
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अध्याय १६९ - प्रायश्चित्तानि
अग्निपुराणात त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु, महेश आणि सूर्य ह्या देवतांसंबंधी पूजा-उपासनाचे वर्णन केलेले आहे.
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त ८१ वे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
Type: PAGE | Rank: 0.01224819 | Lang: NA
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पराशरस्मृतिः - चतुर्थोध्यायः
स्मृतिग्रंथ म्हणजे धर्मशास्त्रावरील एक आवश्यक वचनांचा भाग.
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need
Meanings: 58; in Dictionaries: 8
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त ५६ वे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
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आचारकाण्डः - अध्यायः १६४
विष्णू पुराणाचा एक भाग असलेल्या गरूड पुराणात मृत्यूनंतरच्या स्थितीबद्दलची चर्चा आहे, शिवाय श्रद्धाळू हिंदू धर्मीयांमध्ये मृत्यूनंतर जी विविध क्रिया कर्मे केली जातात, त्याला गरूडपुराणाची पार्श्वभूमी आहे.
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rub
Meanings: 22; in Dictionaries: 5
Type: WORD | Rank: 0.01224819 | Lang: NA
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कृच्छ्र
Meanings: 42; in Dictionaries: 6
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difficult
Meanings: 13; in Dictionaries: 4
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बृहस्पतिस्मृतिः - स्त्रीसंग्रहणम्
स्मृतिग्रंथ म्हणजे धर्मशास्त्रावरील एक आवश्यक वचनांचा भाग.
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प्रायश्चित्तव्रत - व्रत १६ से २०
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त ५८ वे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
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धर्मसिंधु - प्रायश्चित्त प्रयोग
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे. This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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तृतीयस्थानम् - त्रिंशोऽध्यायः
हारीत संहिता, एक चिकित्साप्रधान आयुर्वेदिक ग्रन्थ आहे. ह्या ग्रंथाचे रचनाकार महर्षि हारीत होत, जे आत्रेय पुनर्वसु ऋषींचे शिष्य होते.
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त ७९ वे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
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