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द्रौपदी

   { draupadī }
Script: Devanagari

द्रौपदी     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
DRAUPADĪ   Pāñcālī, the wife of the Pāṇḍavas. (See under Pāñcālī).

द्रौपदी     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  राजा द्रुपद की कन्या जो पांडवों की पत्नी थीं   Ex. द्रौपदी यज्ञ से उत्पन्न हुई थी ।
HOLO MEMBER COLLECTION:
पंचकन्या
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
पांचाली पाञ्चाली पंचाली कृष्णा याज्ञसेनी त्रिहायणी पंचभर्तारी मुक्तवेणी वेदिजा सत्यगंधा सैरंध्री सैरन्ध्री पार्षती नरनारी
Wordnet:
asmদ্রৌপদী
benদ্রৌপদী
gujદ્રૌપદી
kanದ್ರೌಪದಿ
kasدرٛوپٔدی
kokद्रौपदी
malദ്രൌപതി
marद्रौपदी
mniꯗꯔ꯭ꯧꯞꯗꯤ
oriଦ୍ରୋପଦୀ
panਦ੍ਰੋਪਤੀ
sanद्रौपदी
tamதிரெளபதி
telద్రౌపది
urdدروپدی

द्रौपदी     

द्रौपदी n.  द्रुपद राजा की कन्या, एवं पांडवों की पत्नी । स्त्रीजाती का सनातन तेज एवं दुर्बलता की साकार प्रतिमा मान कर, श्री व्यास ने ‘महाभारत’ में इसका चरित्रचित्रण किया है । स्त्रीस्वभाव में अंतर्भूत प्रीति एवं रति, भक्ति एवं मित्रता, संयम एवं आसक्ति इनके अनादि दंद्व का मनोरम चित्रण, ‘द्रौपदी’ में दिखाई देता है । स्त्रीमन में प्रगट होनेवाली अति शुद्ध भावनाओं की असहनीय तडपन, अतिरौद्र पाशवी वासनाओं की उठान, एवं नेत्रदीपक बुद्धिमत्ता का तुफान, इनका अत्यंत प्रभावी आविष्कार ‘द्रौपदी’ में प्रकट होता इनके कारण इसकी व्यक्तिरेखा प्राचीन भारतीय इतिहास की एक अमर व्यक्तिरेखा बन गयी है । याज एवं उपयाज ऋषिओं की सहायता से, द्रुपद ने ‘पुत्रकामेष्टि यज्ञ’ किया । उस यज्ञ के अग्नि में से, ध्रुष्टद्युम्न एवं द्रौपदी उत्पन्न हुएँ, [म.आ.१५५] । यज्ञ में में उत्पन्न होने के कारण, इसे ‘अयोनिसंभव’ एवं ‘याज्ञसेनी’ नामांतर प्राप्त हुएँ [म.आ.परि.९६.११,१५] । पांचाल के राजा द्रुपद की कन्या होने के कारण, इसे ‘पांचाली’, एवं इसके कृष्णवर्ण के कारण, ‘कृष्णा’ भी कहते थे । लक्ष्मी के अंश से इसका जन्म हुआ था [म.आ.६१.९५-९७,१७५-७७]
द्रौपदी n.  द्रौपदी विवाहयोग्य होने के बाद, द्रुपद ने इसके स्वयंवर का निश्चय किया । स्वयंवर में भिन्न भिन्न देशों के राजा आये थे, परंतु मत्स्यवेध की शर्त से पूरी न कर सके (द्रुपद देखिये) । अर्जुन ने मत्स्यवेध का प्रण जीतने पर, द्रौपदी ने अर्जुन को वरमाला पहनायी । बाद में पांडव इसे अपने निवासस्थान पर ले गये । धर्म ने कुंती से कहा ‘हम भिक्षा ले आये हैं । उसे सत्य मान कर, कुंती ने सहजभाव से कहा, ‘लायी हुई भिक्षा पॉंचो में समान रुप में बॉंट लो’। पांडवों के द्वारा लायी भिक्षा द्रौपदी है, ऐसा देखने पर कुंती पश्चात्ताप करने लगी । परंतु मात का वचन सत्य सिद्ध करने, के लिये, धर्म ने कहा, ‘द्रुपदी पॉंचों की पत्नी बनेगी’। द्रुपद को पांडवों के इस निर्णय का पता चला । एक स्त्री पॉंच पुरुषों की पत्नी बने, यह अधर्म हैं, अशास्त्र है, ऐसा सोच कर वह बडे विचार में फँस गया । इतने में व्यासमुनि वहॉं आये, तथा उसने द्रुपद को बताया, ‘द्रुपदी को शंकर से वर प्राप्त है कि, तुम्हें पॉंच पति प्राप्त होंगे । अतः पॉंच पुरुषों से विवाह इसके बारे में अधर्म नही है’। द्रुपद ने उसके पूर्वजन्म की कथा पूछी । व्यास ने कहा, ‘द्रौप्दी पूर्वजन्म में में एक ऋषिकन्या थी । अगले जन्म में अच्छा पति मिले, इस इच्छ से उसने शंकर की आराधना की । शंकर से प्रसन्न हो कर, उसे इच्छित वर मॉंगने के लिये कहा । तब उसने पॉंच बार ‘पति दीजिये’ यो कहा । तब शंकर ने इसे वर दिया कि, तुम्हें पॉंच पति प्राप्त होगे [म.आ.१८७-१८८] । इसलिये द्रौपदी ने पॉंच पांडवों को पति बनने में अधर्म नहीं है।’ यह सुन कर, द्रुपद ने धौम्य ऋषिद्वारा शुभमुहूर्त पर, क्रमशः प्रत्येक पांडव के साथ, द्रौपदी का विवाह कर दिया [म.आ.१९०] । ब्रह्मवैवर्त पुराण में, द्रौपदी के पंचपतित्व के संबंध में निम्नलिखित उल्लेख है । रामपत्नी सीता का हरण रावण द्वारा होनेवाला है, यह अग्नि ने अंतर्ज्ञान से जान लिया । उस अनर्थ को टालने के लिये, सीता की मूर्तिमंत प्रतिकृति अपनी मायासामर्थ्य के द्वारा उसने निर्माण की । सच्ची सीता को छिपा कर, मायावी सीता को ही राम के आश्रम में रखा । इसने सीता को राम का वियोग लगा । तब उसने शंकर की आराधना प्रारंभ की । शंकर ने प्रसन हो कर उसे वर मॉंगने के लिए कहा । पॉंच बार, ‘पतिसमागम प्राप्त हो, ’ ऐसा वर सीता ने मॉंग लिया । तब शंकर ने उसे कहा, ‘अगले जन्म में तुम्हें पॉंच पति प्राप्त होगें’ [ब्रह्मवै. २.१४] । पॉंचों पांडव एक ही इन्द्र के अंश होने के कारण, वस्तुतः द्रौपदी एक की ही पत्नी थी [मार्क.५]
द्रौपदी n.  विवाहोपरांत काफी वर्ष द्रौपदी ने बडे सुख में बिताये । पांडवों का राजसूययज्ञ भी उसी काल में संपन्न हुआ । पांडवों से इसे प्रतिविंध्यादि पुत्र भी हुएँ । किंतु पांडवों के बढते ऐश्वर्य के कारण, दुर्योधन का मत्सर दिन प्रतिदिन बढता गया । उसने द्यूत का षड्‍यंत्र रच लिया, एवं द्यूत खेलने के लिये शकुनि को आगे कर, युधिष्ठिर का सारा धन हडप लिया । अन्त में द्रौपदी को भी युधिष्ठिर ने दॉंव पर लगा दिया । उस कमीने वर्तन के लिये उपस्थित राजसभासदों ने युधिष्ठिर का धिक्कार किया । विदुर को द्रौपदी को सभा में लाने का काम सौंपा गया । उसने दुर्योधन को अच्छी तरह से फटकारा, एवं उस काम करने के लिये ना कह लिया । पश्चात द्रौपदी को सभा में लाने का कार्य प्रतिकामिन पर सौंपा गया । वह भी हिचकिचाने लगा । फिर यह काम दुःशासन पर सौंपा गया । दुःशासन का अन्तःपुर में प्रवेश होते ही द्रौपदी भयभीत हो कर स्त्रियों की ओर दौडने लगी । अंत में दैडनेवाली द्रौपदीके केश पकडकर दुशाःशन खींचने लगा । उस समय द्रौपदी ने कहा, ‘मैं रजस्वला हूँ । मेरे शरीर पर एक ही वस्त्र है । ऐसी स्थिति में मुझे सभा में ले जाना अयोग्य हैं’। उस पर दुःशासन ने कहा, ‘तुम्हें द्यूत में जीत कर हमने दासी बनाया हैं । अब किसी भी अवस्था में तुम्हारा राजसभा में आना अयोग्य नहीं है’। इतना कह कर अस्ताव्यस्त केशयुक्त, जिसका पल्ला गिर पडा है, ऐसा द्रौपदी को वह बलपूर्वक केश पकड कर, सभा में ले आया [म.स.६०.२२-२८]
द्रौपदी n.  सभा में आते ही आक्रोश करते हुए द्रौपदों ने प्रश्न पूछा, ‘धर्म ने पहले अपने को दॉंव पर लगाया, तथा हारने पर मुझे लगाया । तो क्या मैं दासी बन गई?’ सके प्रश्न का उत्तर कोई भी न दे सका [म.स.६०.४३-४५] । भीष्म ने सुनी अनसुनी की । बाकी सभा स्तब्ध रही । यह लगातार प्रश्नों की बौछार कर रही थी । सुन कर भी किसी के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी । कर्ण, दुःशाशनादि द्रौपदी की ‘दासी दासी’ कह कर अवहेलना करने लगे । भीम अपना क्रोध न रोक सका । जिन हाथों से धर्म ने द्रौपदी को दॉंव पर लगा था, उन हाथों को जलाने के लिये, अग्नि लाने को उसने सहदेव से कहा । बडी कठिनाई से अर्जुन ने उसे शांत किया । इस पर धृतराष्ट्रपुत्र विकर्ण सामने आया, तथा द्रौपदी के प्रश्न का उत्तर देने की प्रार्थना उसने भीष्मादिकों से की । परंतु कोई उत्तर न दे सका । तब विकर्ण ने कहा, ‘दॉंव पर जीते गये धर्म ने चूँकि द्रौपदी को दॉंव पर लगाया, अतः सचमुच यह जीती ही नहीं गई’। यह कहते ही सारे सभाजन विकर्ण की वाहवाह-करने लगे । द्रौपदी का यह नैतिक विजय देख कर, कर्ण सामने आ कर बोला, ‘संपूर्ण संपत्ति दॉंव पर लगाने पर, द्रौपदी अजित रह ही नहीं सकती । इसके अतिरिक्त द्रौपदी अनेक पतिओं की पत्नी होने के कारण, धर्मशास्त्र के अनुसार पत्नी न हो कर, दासी है । इसलिये पूरी संपत्ति के साथ यह भी दासी बन गई है’। पश्चात द्रौपदी की ओर निर्देश कर के उसने दुःशासन से कहॉं, द्रौपदी के वस्त्र खींच लो । पांडवों के वस्त्र भी छीन लो’। तब पांडवों ने एक वस्त्र छोड, अन्य सभी वस्त्र उतार डालें । द्रौपदी का वस्त्र खींचने दुःशासन बढा, एवं इसके वस्त्र खींचने लगा । उसपर यह आर्तभाव से भगवान को पुकारने लगी [म.स.६१.५४२-५४३] । भीम क्रोध से लाल हो गया । दुःशासन के रक्तप्राशन के प्रश्न का उसने सभा को पुनः स्मरण दिला कर सुधन्वा की कथा बताई (सुधन्वन् देखिये) । द्रौपदी लगातार आक्रोश कर रही थी, ‘स्वयंवर के समय केवल एक बार मैं लोगों के सामने आई । आज मैं पुनः सब को दृष्टिगत हो रही हूँ । इस शरीर को वायु भी स्पर्श न कर सका, उसकी भरी सभा में आज अवहेलना चालू है’। दुःशासन इसके वस्त्र खींच ही रहा था, किंतु इसकी लज्जारक्षा के लिये श्रीकृष्ण स्वयं चीररुप हो गये, एवं एक के बाद एक नये चीर उसने प्रकट किया [म.स.६१.४१] । द्रौपदी के शील की रक्षा हुई । अपने कृत्य के प्रति लज्जित हो कर, अधोमुख दुःशासन अपने स्थान पर बैठा गया [म.स.६१.४८] । अन्त में धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को कडी डॉंट लगाई । द्रौपदी को इच्छित वर दे कर, पतियों सहित इसे दास्यमुक्त किया [म.स.६३.२८-३२]
द्रौपदी n.  युधिष्ठिर के द्युत के कारण, पांडवों के साथ वन में जाने का प्रसंग द्रौपदी पर आया । वनवास में कौरवों के कारण, इसे अनेक तरह के कष्ट उठाने पडे । एक बार इसका सत्वहरण करने की लिये, परमकोपी दुर्वासास् ऋषि अपने शिष्यों के साथ, रात्रि के समय पांडवो के घर आया, एवं आधी रात में भोजन मॉंगने लगा । उस समय द्रौपदी का भोजन हो गया था । इसलिये सूर्यप्रदत्तस्थाली में पुनः अन्न निर्माण करना असंभव था । तब ऋषियों को ‘क्या परोसा जावे, यह धर्मसंकट इसके सामने उपस्थित हुआ । आखिर विवश हो कर, इसने कृष्ण का स्मरण किया । कृष्ण ने भी स्वयं वहॉं आकर, इसके संकट का निवारण किया [म.व.परि.१.क्र.२५. पंक्ति. ५८-११७] । पांडवों का निवास काम्यकवन में था । एक बार जयद्रथ आश्रम में आया । उस समय पॉंचों पांडव मृगया के लिये गये थे । अब अच्छा अवसर देख कर, जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण किया । इतने में पांडव वापस आये । जयद्रथ को पराजित कर, उन्होंने द्रौपदी को मुक्त किया । बाद में अपमान का बदला चुकाने के लिये, जयद्रथ के सिर का पॉंच हिस्सों में मुंडन कर, उसे छोड दिया गया [म.व.२५६.९] ; जयद्रथ देखिये ।
द्रौपदी n.  वनवास की समाप्ति के बाद, अज्ञातवास के लिये पांडव विराटगृह में रहे । द्रौपदी सैरंध्री बन कर, एवं ‘मलिनी’ नाम धारण कर, सुदेष्णा के पास रही उस समय इसने सुदेष्णा से कहा था, ‘मैं किसीका पादसंवाहन अथवा उच्छिभक्षण नही करुँगी । कोई मेरे अभिलाषा रखे, तो वह मेरे पॉंच गंधर्व पतियों द्वारा मारा जायेगा’। द्रौपदी के इन सारे नियमों के पालन का आश्वासन सुदेष्णा ने इसे दिया [म.वि.८.३२] । एक बार कीचक नामक सेनापति ने इसकी अभिलाषा रखी, परंतु भीम ने उसका वध किया [म.वि.१२-२२] । वनवास तथा अन्य समयों पर भी, अपनी तेजस्विता तथा बुद्धिमत्ता इसने कई बार व्यक्त की है [म.व.२८,२५२] ;[म.शां.१४] । पांडवों का वनवास तथा अज्ञातवास समाप्त होने पर, वे हस्तिनपुर लौट आये, एवं कौरवों के पास राज्य का हिस्सा मॉंगने लगे । अपने कौरव बांधवों से लडने की ईर्ष्या युधिष्ठिर के मन में नहीं थी । उनसे स्नेह जोडने के लिये, युधिष्ठिर दूत भेजना चाहता था । किंतु कौरवों के द्वारा किय गये अपमान का शल्य द्रौपदी भूल न सकती थी । कौरवों के साथ दोस्ती सलुक की बाते करनेवाले पांडवों के प्रति यह भडक उठी । पांडवों के साथ कृष्ण को भी कडे वचन कह कर, इसने युद्ध के प्रति अनुकुल बनाया [म.उ.८०] । इसने कृष्ण से कहा, ‘कौरवों के प्रति द्वेषाग्नि, तेरह साल तक, मैने अपने हृदय में, सांसो की फूँकर डाल कर, आज तक प्रज्वलित रखा है । कौरवों से युद्ध टाल कर, पांडव आज उस अग्नि को बुझाना चाहते है । उन्हें तुम ठीक तरह से समझा लो । नही तो, मेरे वृद्ध पिता द्रुपद, एवं मेरे पॉंच पुत्र के साथ, मैं खुद कौरवों से लडा करुँगी, एवं नष्ट हो जाऊँगी’ [म.उ.८०.४.४१] । भारतीय युद्ध में अश्वत्थामन् ने द्रौपदी के सारे पुत्रों का वध किया । दारुक से यह वार्ता सुन कर द्रौपदी ने अन्नत्याग कर, प्राणत्याग करने का निश्चय किया । तब भीम ने उसे समझाया । अन्त में अश्वत्थामन् को पराजित कर, उसके मस्तकस्थित मणि ला कर, युधिष्ठिर के मस्तक पर देखने की इच्छा इसने प्रकट की । पश्चात् भीम ने वह कार्य पूरा किया [म.सौ.१५.२८-३०,१६.१९-३६]
द्रौपदी n.  भारतीय युद्ध के बाद, पांडवों को निष्कंटक राज्य मिला । उस समय द्रौपदी ने काफी सुखोपभोग लिया । बाद में स्त्री तथा बांधवों के साथ, युधिष्ठिर महाप्रस्थान के लिए निकला । राह में ही द्रौपदी का पतन हुआ । अपने पतियों में से, यह अर्जुन पर ही विशेष प्रीति रखती थी [म.महा.२.६] । उस पाप के कारण इसका पतन हुआ । किंतु कृष्ण का स्मरण करते ही, यह स्वर्ग चली गई [भा.१.१५.५०] । इसे युधिष्ठिर से प्रतिविंध्य, भीम से सुतसोम, अर्जुन से श्रुतकीर्ति, नकुल से शतानीक, तथा सहदेव से श्रुतसेन नामक पुत्र हुएँ [म.आ.९०.८२,५८.१०२-१०३,६१.८८,२१३.७२-७३] । श्रुतसेन के लिये श्रुतकर्म पाठ ‘भागवत’ में प्राप्त है [भा.९.२२.२९]
द्रौपदी n.  द्रौपदी मानिनी थी । स्वयंवर के समय कर्ण इसका प्रण जीतने समर्थ था । किन्तु सूतपुत्र को वरने का इसने इन्कार किया [म.आ.१८६] । वनवास में पांडव तथा कृष्ण को द्रौपदी ने बार बार युद्ध की प्रेरणा दी । कृष्ण के शिष्टाई करने जाते समय, इसने अपने मुक्त केशसंभार की याद उसको दिलाई थी । भारतीय युद्ध में, अपने पुत्रों के वध का समाचार सुनते ही, अश्वत्थामा के वध की चेतावनी इसने पांडवों को दी । युद्ध के पश्चात्, युधिष्ठिर राज्य स्वीकार करने के लिये हिचकिचाने लगा । उस समय भी इसने उसे राजदण्ड धारण करने के लिये समझाया । महाभारत में द्रौपदी तथा भीम का स्वभावचित्रण विशेष रुप से किया है । द्रौपदी के स्वभावचित्रण में व्यावहारिक विचार, स्त्रीसुलभ अपेक्षा, जोश तथा स्फूर्ति का आविष्कार बडी खूबी से किया गया है । भीम भी द्रौपदी के विचार का समर्थक बताया गया है । द्रौपदी तथा भीम युधिष्ठिर के बर्ताव के बारे में कडा विरोध करते हुएँ दिखते है । किंतु आखिर युधिष्ठिर के सौम्य प्रतिपादन से वे दोनों भी चूप बैठने पर विवश होते हैं ।

द्रौपदी     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
noun  पांडवांची बायल आशिल्ली अशी राजा द्रुपदाची धूव   Ex. द्रौपदी यज्ञांतल्यान उत्पन्न जाल्ली
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पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
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द्रौपदी     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  राजा द्रुपदाची मुलगी व पांडवाची पत्नी   Ex. द्रौपदीचे वस्त्रहरण ही स्त्रीजातीची सर्वात मोठी विटंबना होती.
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पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
पांचाली कृष्णा याज्ञसेनी
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द्रौपदी     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
द्रौपदी  f. af. See below.
द्रौपदी  f. bf.patr. of कृष्णा (wife of the पाण्डु princes), [MBh.] ; [Hariv. &c.] (identified with उमा, [SkandaP.] )

द्रौपदी     

द्रौपदी [draupadī]   [द्रुपदस्यापत्यं स्त्री-अण् ङीप्] N. of the daughter of Drupada, king of the Pāñchālas. [She was won by Arjuna at her Svayaṁvara ceremony, and when he and his brothers returned home they told their mother that they had that day made a great acquisition. Whereupon the mother said, "Well, then, my dear children, divide it amongst yourselves." As her words once uttered could not be changed, she became the common wife of the five brothers. When Yudhiṣṭhira lost his kingdom and even himself and Draupadī in gambling, she was grossly insulted by Duhśāsana (q. v.) and by Duryodhana's wife. But these and the like insults she bore with uncommon patience and endurance, and on several occasions, when she and her husbands were put to the test, she saved their credit (as on the occasion of Durvāsas begging food at night for his 6, pupils). At last, however, her patience was exhausted, and she taunted her husbands for the very tame way in which they put up with the insults and injuries inflicted upon them by their enemies (see. [Ki.1.29-46] ). It was then that the Pāṇḍavas resolved to enter upon the great Bhāratī war. She is one of the five very chaste women whose names one is recommended to repeat; see अहल्या.)

द्रौपदी     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
द्रौपदी  f.  (-दी) A proper name. DRAUPADĪ, the daughter of DRUPADA, king of Panchāla, and the common wife of the five Pāndava princes.
E. द्रपद the father of this lady, and अण् and ङीप् affixes.
ROOTS:
द्रपद अण् ङीप्

द्रौपदी     

noun  द्रुपदकन्या या पाण्डवानां पत्नी आसीत्।   Ex. द्रौपदी यज्ञात् जाता।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
पाञ्चाली कृष्णा याज्ञसेनी त्रिहायणी वेदिजा नित्ययौवना सैरन्ध्री
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 आगंतुक   चित्रांगद   उग्रायुध   अवहार   बृहत्क्षत्र   बृहन्त   मौद्नल्य   मणिमत्   प्रतिविंध्य   प्रतिविन्ध्य   शेला   श्रुतकर्मा   श्रुतसेन   आग्नेय   ९५   मंगळ   मन्दोदरी   पांचाल   कीचक   दुर्वासस्, आत्रेय   अंशुमत्   सुकेतु   ह्री   आर्या   रवि   पुष्टि   रोचमान   वेदवती   सत्यधृति   सत्या   श्रुतायु   भीमसेन   मालिनी   शतानीक   शल   युधिष्ठिर   गांधारी   अजमीढ   जरासंध   धृष्टद्युम्न   विकट   अश्वत्थामन्   विराट   सत्यभामा   अक्रूर   सुकुमार   सांब   दुर्मुख   दुश्शासन   विकर्ण   विदूरथ   विश्वेदेव   वृक   वक्र   सुभद्रा   भगदत्त   भोज   शूर   वर्ष   सहदेव   पाञ्चाली   विदुर   अर्जुन   बृहद्रथ   संजय   शकुनि   नर   दुर्योधन   भीष्म   कर्ण   भगीरथ   परिक्षित्   रुक्मिणी   शल्य   नारद         सात्यकि   उत्तर   कुबेर   धृतराष्ट्र   पार्वती   पृथु      व्यास   कृष्ण   राम   હિલાલ્ શુક્લ પક્ષની શરુના ત્રણ-ચાર દિવસનો મુખ્યત   ନବୀକରଣଯୋଗ୍ୟ ନୂଆ ବା   વાહિની લોકોનો એ સમૂહ જેની પાસે પ્રભાવી કાર્યો કરવાની શક્તિ કે   સર્જરી એ શાસ્ત્ર જેમાં શરીરના   ન્યાસલેખ તે પાત્ર કે કાગળ જેમાં કોઇ વસ્તુને   બખૂબી સારી રીતે:"તેણે પોતાની જવાબદારી   ਆੜਤੀ ਅਪੂਰਨ ਨੂੰ ਪੂਰਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ   బొప్పాయిచెట్టు. అది ఒక   लोरसोर जायै जाय फेंजानाय नङा एबा जाय गंग्लायथाव नङा:"सिकन्दरनि खाथियाव पोरसा गोरा जायो   आनाव सोरनिबा बिजिरनायाव बिनि बिमानि फिसाजो एबा मादै   भाजप भाजपाची मजुरी:"पसरकार रोटयांची भाजणी म्हूण धा रुपया मागता   नागरिकता कुनै स्थान   ३।। कोटी   foreign exchange   foreign exchange assets   foreign exchange ban   foreign exchange broker   foreign exchange business   foreign exchange control   foreign exchange crisis   foreign exchange dealer's association of india   foreign exchange liabilities   foreign exchange loans   foreign exchange market   foreign exchange rate   foreign exchange regulations   foreign exchange reserve   foreign exchange reserves   foreign exchange risk   foreign exchange transactions   foreign goods   foreign government   foreign henna   foreign importer   foreign income   foreign incorporated bank   foreign instrument   foreign investment   foreign judgment   foreign jurisdiction   foreign law   foreign loan   foreign mail   foreign market   foreign matter   foreign minister   foreign mission   foreign nationals of indian origin   foreignness   foreign object   foreign office   foreign owned brokerage   foreign parties   foreign periodical   foreign policy   foreign port   foreign possessions   foreign post office   foreign public debt office   foreign publid debt   foreign remittance   foreign ruler   foreign section   foreign securities   foreign service   foreign state   foreign tariff schedule   foreign tourist   foreign trade   foreign trade multiplier   foreign trade policy   foreign trade register   foreign trade zone   foreign travel scheme   foreign value payable money order   foreign venture   foreimagine   fore-imagine   forejudge   fore-judge   foreknow   fore-know   foreknowledge   foreknown   forel   foreland   foreland shelf   forelimb   fore limb   forelock   foreman   foreman cum mechanical supervisor   foreman engineer  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 forested land   forester   foresters' school   forest fallow   forest fauna   forest fire   forest guard   forest labourers' co-operative society   forestland   forest management   forest mensuration   forest offence   forest produce   forest product   forest protection   forest range   forest red gum   forest revenue   forestry   forest soil   forest sub-committee   forest thinning   forest type   forest utilisation   forest utilisation officer   forest valuation   forest village school master   foretaste   foretasted   foretell   foreteller   foretelling   forethink   forethought   foretoken   foretold   fore-tooth   foretop   fore udder   for-ever   foreward   fore-ward   forewarn   fore-warn   fore-warned   forewarning   fore-warning   foreword   for example   forex business   for expression of opinion   for favourable action   for favour of   for favour of comments   for favour of doing the needful/necessary action   for favour of due consideration   for favour of necessary action   for favour of orders   for favour of remarks   for favour orders   forfeit   forfeitable   forfeited   forfeited property   forfeited share   forfeit to government   forfeiture   forfeiture of deposits   forfeiture of shares   forficulate   for filing with the case concerned   for free distribution   for further action   forge   forgeability   forged   forged acceptance   forged coin   forged document   forge delay time   forgednote   forged note   forged seal   forged transfer   forged welding   forge name   forger   forgery   forget   forge test   forgetful   forgetfulness   forget me drug   forgetting   forgetting curve   forge welding   forging   forging classification   forging defect   forging equipment   forging machine   forging process   forging rolls   forging shop   forging structure   forging thermit   forging tool   forgivable   forgive   forgiven   forgiveness   forgiving   forgo   forgoing   forgotten   for gross negligence on your part   for guidance   foriculate   forign currency   forign exchange   forign remittance   forign service   for immediate effect   for improvement of   for information   for information and necessary action   for instance   forint   for interim information   for invoice   for issue   fork   forked   forked chain   forked chain compound   forked circuit   forked lightning   forked line method   forked mycorrhiza   forked track   forkfit truck   forlorn   form   formability   formability test   formal   formal acceptance   formal agencies of education   formal and informal organisation   formal application for pension   formal approach   formal approval   formal approval is necessary   formal authority   formal cause   formal character   formal charge   formal citrate   formal communication   formal criticism   formal deed   formal defect   formaldehyde   
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