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कार्तवीर्य

   { kārtavīryḥ }
Script: Devanagari

कार्तवीर्य     

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See : सहस्रार्जुन

कार्तवीर्य     

कार्तवीर्य n.  (सो. सह.) इसकी माता का नाम राकवती [रेणु.१४] । शिवपूजाभंग होने के कारण यह करविहीन जन्मा । मधु अगले जन्म में शिवशाप के कारण कार्तवीर्य हुआ [रेणु.२८] । इसके लिये अर्जुन, सहस्त्रार्जुन तथा हैहयाधिपति नामांतर प्राप्त है । यह सुदर्शन चक्र का अवतार है [नारद.१.७६] । कृतवीर्य के सौ पुत्र च्यवन के शाप से मृत हुए । केवल यह सप्तमीव्रतस्नान के कारण उस शाप से मुक्त हुआ [मत्स्य.६८] । कृतवीर्य ने संकष्टीव्रत करते समय जम्हाई दे कर उसके प्रयाश्चित्तार्थ आचमन नहीं किया । गणेश के प्रसाद से चतुर्थीव्रत करने से उसे पुत्र हुआ, परंतु उपरोक्त पापाचरण के कारण इसे केवल दो कंधे, मुंह, नाक तथा आखें इतनी ही इंद्रियॉं थी । यह देख कर इसके माता-पिता ने बहुत शोक किया । एक बार दत्त उनके पास आये, तब उन्होने उसे पुत्र दिखाया । उस समय यह बारह वर्ष का था । दत्त ने इसे एकाक्षरी मंत्र बता कर, बारह वर्षे गणेश की आराधना करने के लिये कहा । इसने तदनुसार आराधना की, तब गणेश ने इसे सुंदर शरीरयष्टि तथा सहस्त्र हाथ दिये इसी कारण इसका नाम सहस्त्रार्जुन हुआ [गणेश.१.७२-७३]
कार्तवीर्य n.  कृतवीर्य के पश्चात् जब अमात्य इसको राज्याभिषेक करने लगे, तब कार्तवीर्य ने गद्दी पर बैठना अस्वीकार कर दिया । इसे ऐसा लगता था कि, राजा के नाते कर का योग्य मोबदला अपने द्वारा प्रजा को नहीं मिलेगा । इसे गर्गमुनि ने सह्याद्रि की गुहाओं में दत्त की सेवा करने की सलाह दी [मार्क.१६] । निष्ठापूर्वक एक हजार वर्ष तक दत्तात्रेय की सेवा करने पर, इसे चार वर मिलेः---१. सहस्त्रबाहु, २. अधर्मनिवृत्ति, ३. पृथ्वीपालन, ४. युद्धमृत्यु । इसने कर्कोटक नाग से अनूप देश की माहिष्मती अथवा भोगावती नगरी जीती । यही वर्तमान ओंकार मांधाता है । वहॉं मनुष्यों को बसा कर, इसने अपनी राजधानी बनायी । तदुपरांत कार्तवीर्य को दत्त तथा नारायण ने राज्याभिषेक किया । उस समय समस्त देव, गंधर्व तथा अप्सरायें उपस्थित थीं [मार्क.१७]
कार्तवीर्य n.  थोडे ही समय में, इसने समस्त पृथ्वी जीत ली, तथा यह उसका पालन करने लगा । इसने मारी नामक राक्षस का वध किया [नारद१.७६] । इससे युद्ध करने के लिये रावण अपने मित्र शुक, सारण, महोदर, महापार्श्व तथा धूम्राक्ष सहित आया था । उस समय ऐसा पता चला कि, कार्तवीर्य राजमहल में नहीं है । यह इस समय नर्मदा पर स्त्रियों सहित क्रीडा करने गया था । आगे चल कर, रावण विंध्यपर्वत पार कर नर्मदा तट पर गया । वहां स्नान कर शंकर की पूजा करने बैठा । इधर कार्तवीर्य ने सहज लीलावश नदी का प्रवाह अपने सहस्त्र हाथों से रोक दिया । वह रुका हुआ पानी विविध दिशाओं में बहने लगा । इस प्रकार का एक वेगवान प्रवाह रावण तक पहूँचा । उससे उसका पूजाभंग हो गया । इस प्रकार पूजाभंग करनेवाला कार्तवीर्य है, यम समझते ही रावण ने इस पर आक्रमण किया । परंतु इसने उसके मंत्रियों को हतवीर्य कर दिया तथा रावण को पकड लिया । अपना पौत्र पकडा गया, ऐसा वर्तमान सुन कर पुलस्त्य ऋषि कार्तवीर्य के पास आया । इसने उसका समान किया तथा इच्छा पूछी । तब इसने रावण को छोड देने की प्रार्थना की । इसने आनंद से रावण को छोड दिया, तथा अग्नि के समक्ष एक दूसरे से स्नेहपूर्वक व्यवहार करने की तथा पीडा न देने की प्रतिज्ञा की [वा.रा.उ.३१-३३] ;[विष्णु.४.११] ;[आ. रा.सार.१३] ;[भा.९.१५] । कार्तवीर्य ने नर्मदा के किनारे खडे रह कर पांच बाण छोडे, जिससे लंकाधिपति रावण मूर्च्चित हुआ । उसे धनुष्य से बांध कर यह माहिष्मती के पास लाया । बाद में पुलस्त्य की प्रार्थनानुसार उसे छोड दिया [मत्स्य.४३] ;[ह.वं.१.३३] ;[पद्म.सृ. १२] ;[ब्रह्म.१३] । वंशावली के अनुसार रवण इसका समकालीन होना असंभव है । रावण व्यक्तिनाम न हो कर तामिल भाषा का Irivan या Iraivan शब्द का संस्कृत रुप होना चाहिये । इस शब्द का अर्थ हैं देव, राजा, सार्वभौम अथवा श्रेष्ठ [J R AS. 1914, P 285] रावण विशेषनाम समझा गया, इसलिये यह घोटाला हुआ । विष्णुपुराण की इस कथा में पुलस्त्य का नाम नहीं हैं [विष्णु. ४.११] । पृथ्वी जीत कर इसने बहुत यज्ञ किये [भा.९.२३] । १०००० यज्ञ किये, सात सौ यज्ञ किये [ह.वं.१.३३] यों भी कहा गया है । उस समय उसे यज्ञ से एक दिव्य रथ तथा ध्वज प्राप्त हुआ [मत्स्य.४३] ;[ह. वं. १.३३] ;[मार्क.१७] ;[पद्म. सृ.१२] ;[अग्नि. २७५] ;[ब्रह्म.१३] ;[विष्णुधर्म.१.२३] । बाद में प्रजा को यह इतना दुख देने लगा, कि पृथ्वी त्रस्त हो गई । तब देवताएं विष्णु के पास गये तथा उन्होंने सब कथा बताई । विष्णु ने उन्हे अभय दिया तथा कार्तवीर्य के नाशार्थ परशुरामावतार लेने का निश्चय किया । शंकर ने परशुराम को कार्तवीर्य संहार के लिये आवश्यक बल दिया [म.क.२४. १४७-१५६] ;[विष्णुधर्म २.२३] हैहयाधिपति मत्त होने के कारण, कुमार्ग की ओर प्रवृत्त हुआ । यह अत्रिमुनि का अपमान कर रहा है, यह देखते ही कार्तवीर्य को दग्ध करने के लिये दुर्वास सात दिनों में ही माता के उदर से च्युत हो गया [मार्क. १६.१०१] । दुर्वास दत्त का बडा भाई था । दत्त ही कृपा भी कार्तवीर्य ने संपादन की थी । तदनंतर आदित्य ने विप्ररुप से इसके पास आ कर खाने के लिये कुछ भक्ष्य मांगा । इसने कौनसा भक्ष्य दूँ, ऐसा उसे पूछा । तब उसने सप्त द्वीप मांगे । परंतु उन्हें देने के लिये यह असमर्थ दिखने के कारण आदित्य ने कहा, ‘तुम पांच बाणों को छोडो । उनके अग्रभाग पर मैं बैठूँगा तथा अपनी इच्छानुसार प्रदेश खाऊंगा । यह मान्य कर के इस ने पांच बाण छोडे । आदित्य ने जो पूर्व तथा दक्षिण के प्रदेश जलाये, उसमें आपव वसिष्ठ ऋषि का आश्रम भी जला दिया । यह ऋषि वरुण का पुत्र था । वह कार्यवश आश्रम के बाहर, १००००० वर्षो तक जल में रहने में रहने के लिये गया था । वापस आते ही उसने देखा कि, आश्रम दग्ध हो गया है । उसने कार्तवीर्य को शाप दिया, ‘तुम्हारा वध परशुराम रण में करेगा’ [वायु ९४.४३-४७,९५.१-१३] ;[मत्स्य. ४३-४४] ;[ह. वं. १.३३] ;[पद्म सृ.१२] ;[ब्रह्म.१३] ;[विष्णुधर्म १. ३१] । कई ग्रंथों में आदित्य के बदले अग्नि भी दिया गया है [म.शां. ४९.३५] । काफी दिन बीत जाने के बाद, यह एक बार मृगया के हेतु बाहर गया, तथा घूमते-घूमते जमदग्नि के आश्रम में गया । वहॉं जमदग्नि की पत्नी तथा जमदग्नि ने इन्द्र द्वारा दी गई कामधेनु से इसका सत्कार किया । तब यह जमदग्नि से वह गाय मांगने लगा । जमदाग्नि ने इसे ना कर दिया । तब यह जबरदस्ती उस गाय को ले जाने लगा । परंतु उस गाय के आक्रोश से तथा शृंगा से इसकी संपूर्ण सेना एक पल में मृत हो गई । कामधेनु स्वर्ग में चली गई [पद्म. उ. २४१] । परंतु आखिर कार्तवीर्य यह गाय तथा साथ में उसका बछडा ले ही गया । इसके पुत्रों ने इसको न मालूम होते ही बछडा चुरा लाया [म.शां. ४९.४०] । परशुराम तपश्चर्या के लिये गया था । केशव को संतुष्ट कर के अनेक दिव्यास्त्र ले कर वह अपने आश्रम में आया । कामधेनु ले जाने का वर्तमान उसे ज्ञात हुआ । तब क्रोध से कार्तवीर्य पर आक्रमण कर, नर्मदा के किनारे उसने इसे युद्ध लिये आमंत्रित किया । कार्तवीर्य की पत्नी मनोरमा ने इसे युद्ध पर न जाने के लिये प्रार्थना की, परंतु यह नहीं मानता यो देख कर उसने प्राणत्याग कर दिया । दत्त के वर से प्राप्त इनकी बुद्धि नष्ट हो गई । तदनंतर इसका परशुराम से युद्ध हुआ । अंत में बाहुच्छेद हो कर यह मृत हो गया । यह युद्ध गुणावती के उत्तर में तथा खांडवारण्य के दक्षिण मे स्थित टीलों पर हुआ [म.द्रो.परि.१.क्र.८. पंक्ति. ८३९ टिप्पणी] । बाद में परशुराम द्वारा किये गये कार्तवीर्य के वध की वार्ता जमदग्नि ने सुनी । उसने राम से कहा, ‘यह कार्य तुमने अत्यंत अनुचित किया । क्षमा ब्राह्मण का भूषण है । अब प्रायश्चित्त के लिये एक वर्ष तक तीर्थयात्रा करने के लिये जाओ’ । इस कथनानुसार परशुराम तीर्थयात्रा करने के लिये गया । तब पहले बैर का स्मरण कर कार्तवीर्य के पुत्रों ने ध्यानस्थ जमदग्नि का बाणों से वध किया तथा उसका मस्तक ले कर वे भाग गये । परशुराम के लौटने पर, यह वृत्त उसें मालूम हुआ । माता की सांत्वना के लिये, उसने इक्कीस बार पृथ्वी निःक्षत्रिय करने की प्रतिज्ञा की, तथा उन पुत्रों पर आक्रमण किया । पांच को छोड बाकी सब पुत्रों का वध कर के, परशुराम पिता का मस्तक वापस ले आया [म.व.११७] ;[भा. ९.१५] ;[अग्नि.४] । कई स्थानों पर लिखा है कि कार्तवीर्य ने जमदग्नि का वध किया [वा.रा.बा.७५] ;[पद्म. उ. २४१] । पद्मपुराण में तमाचा लगाने का भी उल्लेख है । ऊपर दिया गया है, इसे हजार हाथ थे, परंतु इसे घरेलू तथा अन्य कार्यो के लिये दो हात थे [ह.वं.१.३३] ;[ब्रह्म.१३] । परंतु इसे सहस्त्रबाहु नाम था [ह. वं. १.३३] ;[मत्स्य.६८] ;[अग्नि.४] ;[गणेश १.७३] । महाभारत में लिखा है कि, आपव का आश्रम हिमालय के पास था । यह आश्रम अग्नि को दे सका, इससे यह स्पष्ट है कि, इसका राज्य मध्यदेश पर होगा । अयोध्या का राजा हरिश्चन्द्र तथा त्रिशंकु इसके समकालीन थे । यद्यपि मथुरा के शूरसेन देश की स्थापना स्वयं शत्रुध्नपुत्र शूरसेन ने की, तथापि लिंगपुराण में वर्णन है कि इसकी स्थापना इसके पुत्र ने की [लिंग. १.६८] । इसके सब पुत्रों के स्वतंत्र देश थे [ब्रह्मांड. ३.४९] । यह संपूर्ण कथा, जमदग्नि की कामधेनु को मुख्य मान कर बताई गई है । पद्मपुराण में उसी गाय को सुरभि माना गया है (उ. २४१) । वहॉं इक्कीस बार पृथ्वी निःक्षत्रिय करने की प्रतिज्ञा का उल्लेख नही है । वहॉं [ब्रह्मांड. ३.२१.५-४७-६१] उल्लेख है कि, परशुराम ने कान्यकुब्ज तथा अयोध्या के सब राजाओं की सहायता से अर्जुन को मारा तथा भार्गवों का पराभव किया ।
कार्तवीर्य n.  इसका शासन ८५ हजार वर्षो तक रहा । इस प्रदीर्घ शासनकाल में इसने हैहयसत्ता तथा वैभव को अत्यंत वृद्धिंगत किया । प्रतीत होता है कि, इसने नर्मदा के मुख से हिमालय तक का प्रदेश जीत लिया था । इसकी सत्ता चारों ओर सुदूर तक फैली थी, इसका प्रमाण यह है कि, इसे कई स्थानों पर सम्राट तथा चक्रवर्ति कहा गया है [ह. वं. १.३३] ;[पद्म. सृ. १२] ;[ब्रह्म.१३] ;[विष्णुधर्म १.२३] ;[नारद. १.७६] । नर्मदा तथा समुद्र का अपने हाथों से यह इस प्रकार मंथन करता था कि, सब जलचर इसके शरण आ जाते थ । यमसभा में यह यम के पास अधिष्ठित रहता है [म.स.८.८] । इसका ब्राह्मणों के श्रेष्ठत्व के संबंध में पवन में संवाद हुआ था [म.अनु. १५२-१५७] । उसी प्रकार, मुझसे लडने लायक शक्तिशाली कौन है, इस विषय पर समुद्र से भी इसका संवाद हुआ है [म.आश्व. २९] । इसने प्रवालक्षेत्र में प्रवालगण का बडा मंदिर बनाया [गणेश. १.७३] । माघस्नानमाहात्म्य के संबंध में इसका दत्त से संवाद हुआ था [पद्म. उ.२४२-२४७] । नारदपुराण में इसकी पूजाविधि बतायी है । इसके शरीरवर्णन में दिया है कि यह काना था [नारद. १.७६]
कार्तवीर्य n.  इसे सौ पुत्र थे । उनके नाम शूर, शूरसेन, वृष्टयाद्य, वृष, जलध्वज [वायु.९४.४९-५०] धृष्ट, कोष्ट [मत्स्य.४३] , कृष्ण [ह.वं.१.३३] ;[पद्म. सृ१२] ,सूर, सूरसेन [अग्नि. २७५] , वृषण मधुपध्वज [ब्रह्म.१३] , धृष्ट, कृष्ण [लिंग.१.६८] , वृषभ मधु, ऊर्जित [भा. ९.२३] । भागवत में कहा है कि, इसे दस हजार पुत्र थे ।
कार्तवीर्य II. n.  (सो. सह.) मत्स्य तथा वायु के मत में कनक के चार पुत्रों में से एक ।

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कार्तवीर्य     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
कार्तवीर्य  m. m. ‘son of कृत-वीर्य’, N. of अर्जुन (a prince of the हैहयs, killed by परशुराम), [MBh.] &c.
N. of one of the चक्रवर्तिन्s (emperors of the world in भारत-वर्ष), [Jain.]

कार्तवीर्य     

कार्तवीर्यः [kārtavīryḥ]   The son of Kṛitavīrya and king of the Haihayas, who ruled at Māhiṣmatī. [Having worshipped Dattāttreya, he obtained from him several boons, such as a thousand arms, a golden chariot that went wheresoever he willed it to go, the power of restraining wrong by justice, conquest of earth, invincibility by enemies &c.; (cf. [R.6.39] ). According to the Vāyu Purāṇa he ruled justly and righteously for 85, years and offered 1, sacrifices. He was a contemporary of Rāvaṇa whom he once captured and confined like a beast in a corner of his city; cf. [R.6.4.] Kārtavīrya was slain by Paraśurāma for having carried off by violence the Kāmadhenu of his reversed father Jamadagni. Kārtavīrya is also known by the name Sahasrārjuna.]

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 نُسِہنٛتاپنی مذۂبی کِتاب   نسوانی تہاجم   نٔسۍ   نٔسۍ آواز   نٔسۍ نٔے   نِسی   نِش   نِشٲنۍ   نِشٲنی   نِشا تیل   نشاد   نِشاد   نشان   نِشان   نشان بردار   نشان بنانا   نشان دہی   نِشاندہی   نشانہٕ   نِشانہٕ   نِشانہ بٲزی   نِشانہٕ باز   نشانہ بنانا   نشانہٕ تراوُن   نِشانہٕ تراوُن   نِشانہٕ دِیُٛن   نِشانہِ سادُن   ِنِشانہٕ سادُن   نِشانہٕ لگاوَن وول   نشانے باز   نشانے بازی   نَشاوَر چیز   نِشُبا   نشتر   نِشٹھا   نِشٹھیٖوَن   نشٹے دوکلا   نِشچِرا دٔریاو   نِشچیشتاکرَن   نشرشدہ   نشٕرکرنہٕ آمُت   نَشٕر کَرنہٕ آمُت   نشریات   نشرِیات   نِشرٛیٚنِکا تُن   نشست گیری   نِشکُُنبھ   نِشَنگِی   نِشَنٛگی   نشہٕ   نَشہِ   نَشہٕ   نَشہٕ باز   نشہ بندی   نَشہٕ بٔنٛدی   نَشہٕ خور   نَشہِ روٚس   نَشہٕ کَرُن   نَشہٕ کھَسُن   نَشہٕ کَھسُن   نشہِ ہوٚت آسُن   نٖشُونٛبھ   نشیبی جگہ   نشےکاعادی   نشیلاپن   نصاب   نصاب تعلیم   نصف ارکان   نصف اوٚڈ   نصف اوّل   نصف بدنی   نصف دائرہ   نصف سازی   نصف مساوی   نصف مقدار   نَصفہ قطر   نٔصیب   نٔصیٖحَت   نٔصیٖحَت کَرَن وول   نصیحت کَرٕنۍ   نصیحہ   نطریہ عقلیت کا پیروکار   نِظٲمۍ   نظارٕٕ   نَظارٕ   نَظارٕٕ   نظارُک ذِکِر   نظام   نِظام   نظام تنفس   نظام دوران خون   نِظام شٲہی   نِظام شاہ   نظام شاہی   نظام شمسی   نظام عضلات   نظام لمف   نظام ہاضمہ   نظام ہڈی جوڑ   نِظامہِ شَمسی   نظامی   نظر   نَظَر   نَظٕر   نَظَر اَنٛدٲزی   نظراَنٛداز   نِظر اَنٛداز   نَظر اَنداز کَرُن   نَظَر اَنٛداز کَرُن   نَظَراَنٛداز کَرنہٕ آمٕتۍ   نَظرانہٕ   نظربند   نظر بند   نظربَنٛد آسُن   نظربندی   نَظر دِنۍ   نَظرِ کَرَم   نَظَرگُزَر   نَظَر گُزَر   نظرِ گَژُھن   نَظرَن تَل   نَظرَن مَنٛز   نظر نہٕ یِنہٕ وول   نظرِ ہُنٛد نۄقصان   نَظَریٲتی   نظرِیات   نَظٔرِیات   نظریاتی   نظری دھبے   نَظریہٕ   نَظَریہٕ   نظریہٴ تباین روح   نظم   نظٕم   نَظٕم پَسنٛد   نعرہ لگانا   نعل   نعل بانس   نعل بند   نعل بندی   نغمہٕ   نغمہؑ کویل   نغمہ وموسیقی   نَفاہ روٚژھ   نفخ شکم   نَفَر   نفرت   نَفرَت   نفرت کرن وول   نَفسہِ نوزُک   نفسِیٲتی   نَفسِیٲتی ساینَس   نفسیاتی عدم توازن   نَفسِیایُک عٔلِم   نفسی حالَت   نفع   نفع دار   نفع زینُن   نفع منٛز حِصہٕ   نفعہ   نٔفوٗظ   نقٲشی   نَقٲشی   نقٲشی دار   نَقٲشی کٔرِتھ   نقاب   نِقاب   نِقاب دار ژوٗر   نقاشی   نقال   نُقتی   نقٕد مٲلی وسٲیٔل   نَقدی   نقش تراوُن   نقٕش دار   نقشہ   نقشہٕ   نَقشہٕ   نقشہٕ بَناوُن   نَقشہِ بناوُن   نَقشہٕ قَدمَس پٮ۪ٹھ پَکُن   نقشہِ نگٲرۍ   نقشہِ نگٲری   نقشہٕ نگٲری   نقشہِ نگٲری کَرٕنۍ   نقشہ نویسی   نَقشہٕ نٔویٖسی   نقش ونگار   نقطہٕ   نقطہٴ نون غنّہ   نقطہ انجماد   نقطہ جوش   نقطۂ عروج   نقل   نقٕل   نَقٕل تارُن   نقٕل کرُن   نَقٕل کَرُن   نَقلہٕ گوٚر   نَقلی   نَقلی بُتھ   نَقلی پَن   نقلی گۄسٲنۍ   نکابٕ   نکاتی   نکاح   نکاح ثانی   نَکار   نکاراگوائی   نَکارچی   نکار کرُن   نَکار کَرَن وول   نکارگوا   نِکارگُوا   نِکارگُواہُک   نکاس   نکاسی   نکالنا   نِکاہ   نُکتی   نکٹا   نَکٹا   نکٹیسر   نَکٹیسَر   نَکُر   نکرا   نَکرچوٚتُردَرشی   نَکُر لاگُن   نَکر مَگر مَچھ   نکری   نکڑا   نکسل   نکسل واد   نکسیر   نکسیٖر   نِکشُوبَھا   نٔکُل   نکلا   نَکُلانٛد بٮ۪مٲرۍ   نکلنا   نکلوانا   نِکُلوشٹھی   نِکَمہٕ   نِکُن   نِکُنٛب   نَکھ   نِکھارُن   نٔکھرٕ   نٔکھرٕ دار   نِکھرُن   نٔکھرٕ ہاوٕنۍ   نکھروٹ   نِکَھروَٹ   نَکھٕ-نَکھٕ   نَکھہٕ   نَکھہٕ وولمُت   نَکھٕ وَسُن   نِکوسِیا   نکوٗلک   نکوٗلَک   نکُولَک   نَکُولَوشٹھی   نِکُونٛبھ   نَکوور   نکیر   نٔکیٖر   نَگ   نَگاڈٕ   نگارٕ   نگانیکا   نگاہ   نگدنتی   نگدنٛتی   نِگرٲنی   نگرا   نِگران   نگرہار   نَگَرہار   نَگَن   نگن جيت   نَگنِکا   نگھنٹو   نل   نَل   نِل   نٔلچہِ   نَل سٲزی   نلکُبر   نَلکہٕ   نَلکہٕ دفتر   نَلکہٕ وول   نل کوبر   نلکی آلہ   نَلِکیَنٛترٛ   نٔلِنی   نِلہٕ مۄنٛڑٕج   نٔلۍ   نلی   نلیا   نَلِینِی   نَم   نُمٲیش   نُمٲیِش   نُمٲیِش دار   نُمٲیِش کَرَن وول   نُمٲیشہٕ دار   نُمٲینٛدٕ جمٲژ   نمازگاہ   نماز گاہ   نُمایدٕ   نمائش   نمائش کردہ   نمائشی ہال   نماینٛدٕ   نُمایَنٛد   نُمایَنٛدٕ روٚستُے   نمائندگی   نُمایَنٛدگی   نُمایَنٛدٕگی   نمبر   نَمبَر   نَمبرپَلیٹ   نَمبَر پَلیٹ   نَمبَردِنۍ   نمبردینا   نمبل   نمتِم   نٔمِتھ   نمٹنا   نمدٕ   نَمدٕ   نمدا   نمرا   نَم ژَم ژَٹٕنۍ   نَمَسکار   نمک   نَمَک حَلال   نمک سار   نمکی   نِمکی   نمکین   نَمکیٖن   نَمُن   نَمنَس لایق   نَمٕ نِشان   نِمنلوچا   نِمن لوچا   نمنمتِم   نم نمتھ   نَمنہٕ روٚستُے   نموچی   نموٗچی   نِموچی   نَموٗنہٕ   نٔموٗنِیا   نِمی   نٔمی   نِمی ریٚش   نِمیش   نمی ناتھ   نٔمی ناتھ   نَن   ننانواں   نناواں   نٔناوُن   نِنٛبُک   نَنٮ۪ر   نَنخاہ بَغٲر   ننٛد   نَند   نَنٛد   نَندا   نَنٛدا   نِنٛدٕر   ننٛدُربار   ننٛدُربار ضِلعہٕ   نِنٛدٕر پاوٕنۍ   نِنٛدرِ ٹھۄل یٕنۍ   نند رُخ   نِنٛدرِ ہوٚت   نِنٛدٕرِ ہوٚت   نندک   ننٛدک   ننٛدٕلال   نندن   نندن مالا   ننٛدنمالا   نندنی   نَندنِی   نَنٛدنی   ننٛدوڈ   ننٛدوڈ ضِلعہٕ   نندُولا   نَنٛدولا   نَنٛدی   نَنٛدیٖگرٛام   ننگرواری   نَنٛگرواری   نَنٛگہٕ   ننٛگہٕ پَن   نَنٛگہٕ کُل   ننٛگہٕ گی   نُنہٕ دٲنۍ   نُنہٕ دار   نُنہٕ کاژُر   نَنہٕ وور   نَنہٕ وورٕے   نَنوکارمنتر   
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