Dictionaries | References

हनुमत् , हनूमत्

   
Script: Devanagari

हनुमत् , हनूमत्     

हनुमत् , हनूमत् n.  एक सुविख्यात वानर, जो सुमेरु के केसरिन् नामक वानर राजा का पुत्र, एवं किष्किंधा के वानरराजा सुग्रीव का अमात्य था । एक कुशल एवं संभाषणचतुर राजनितिज्ञ, वीर सेनानी एवं निपुण दूत के नाते इसका चरित्र-चित्रण वाल्मीकि रामायण में किया गया है । वाल्मीकि रामायण में इसे शौर्य, चातुर्य, बल, धैर्य, पाण्डित्य, नीतिमानता एवं पराक्रम इन दैवी गुणों का आलय कहा गया हैः
हनुमत् , हनूमत् n.  ‘रावण’ शब्द की भाँति ‘हनुमत्’ भी एक द्राविड शब्द है, जो ‘आणमंदी’ अथवा ‘आणमंती’ का संस्कृत रूप है; ‘अण्’ का अर्थ है ‘नर’ एवं ‘मंदी’ का अर्थ है ‘कपि’। इस प्रकार एक नरवानर के प्रतीकरूप में हनुमत् की कल्पना सर्वप्रथम प्रसृत हुई । इसी नरवानर को आगे चल कर देवतास्वरूप प्राप्त हुआ, एवं उत्तरकालीन साहित्य में राम एवं लक्ष्मण के समान हनुमत् भी एक देवता माना जाने लगा।
हनुमत् , हनूमत् n.  हनुमत् की इस देवताविषयक धारणा में इसका अर्थ वानराकृति रूप यही सब से बड़ी भू कही जा सकती है । सुग्रीव, वालिन् आदि के समान यह वानरजातीय आवश्य था, किन्तु बंदर न था, जैसा कि, आधुनिक जनश्रुति मानती है । वाल्मीकिरामायण में निर्दिष्ट अन्य वानरजातीय वीरों के समान यह संभवतः उन आदिवासियों में से एक था, जिनमें वानरों को देवता मान कर पूजा की जाती थी (वानर देखिये) । हनुमत् के व्यक्तित्व की यह पार्श्र्वभूमि भूल कर, उसे एक सामान्य वानर मानने के कारण इसका स्वरूप, पराक्रम एवं गुणवैशिष्ट्यों को काफ़ी विकृत स्वरूप प्राप्त हुआ है, जो उसके सही स्वरूप एवं गुणवैशिष्ट्यों को धूँधला सा बना देता है ।
हनुमत् , हनूमत् n.  कई अभ्यासकों के अनुसार, प्राचीन काल में हनुमत् कृषिसंबंधी एक देवता था, जो संभवतः वर्षाकाल का, एवं वर्षाकाल में उत्पन्न हुए वायु का अधिष्ठाता था । इसी कारण हनुमत् का बहुत सारा वर्णन वैदिक मरुत् देवता का स्मरण दिलाता है । यह वायुपुत्र बादलों के समान कामरूपधर, एवं आकाशगामी है । यह दक्षिण की ओर से, जहाँ से वर्षा आती है, सीता अर्थात् कृषि के संबंध में समाचार राम को पहुँचाता है । इस प्रकार इंद्र के समान हनुमत् का भी संबंध वैदिककालीन वर्षादेवता से प्रतीत होता है । आँठवी शताब्दी तक यह रुद्रावतार माने जाने लगा, एवं इसके ब्रह्मचर्य पर जोर दिया जाने लगा । बाद में महावीर हनुमत् का संबंध, प्राचीन यक्षपूजा (वीरपूजा) के साथ जुड़ गया, एवं बल एवं वीर्य की देवता के नाते इसकी लोकप्रियता एवं उपासना और भी व्यापक हो गयी है । आनंद रामायण के अनुसार, पृथ्वी के सभी वीर हनुमत् के ही अवतार हैः---ये ये वीरास्त्व भूम्यां वायुपुत्रांशरूपिणः । [आ. रा. ८.७.१२३]
हनुमत् , हनूमत् n.  भारतवर्ष के सभी प्रदेशों में हनुमत् की उपासना अत्यंत श्रद्धा से आज की जाती है, जहाँ इसे साक्षात् रुद्रावतार एवं सदाचरण का प्रतीक रूप देवता माना जाता है । आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करनेवाले शिव की, एवं व्यावहारिक कामनापूर्ति करनेवाले हनुमत्, भारत के सभी ग्रामों में आज सब से अधिक लोकप्रिय देवता है । इनमें से हनुमत् की उपासना आरोग्य, संतान आदि की प्राप्ति के लिए, एवं भूतपिशाच आदि की पीड़ा दूर करने के लिए की जाती है । हनुमत् का यह ‘ग्रामदेवता स्वरूप’ वल्मीकि रामायण में निर्दिष्ट हनुमत् से सर्वथा विभिन्न है, एवं यह ई. स. ८ वी शताब्दी के उत्तरकाल में उत्पन्न हुए प्रतीत होता है ।
हनुमत् , हनूमत् n.  जैसे पहले ही कहा जा चुका है, यह सुमेरु के राजा केसरिन् एवं गौतमकन्या अञ्जना का पुत्र था । यह अञ्जना को वायुदेवता के अंश से उत्पन्न हुआ था, एवं इसका जन्मदिन चैत्र शुक्ल पूर्णिमा था । इसके जन्म के संबंध में अनेकानेक कथाएँ पौराणिक साहित्य में प्राप्त है, जो काफ़ी चमत्कृतिपूर्ण प्रतीत होती है । शिवपुराण के अनुसार, एक बार विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर शिव को कामोत्सुक किया । पश्चात् मोहिनी को देख कर स्खलित हुआ शिव का वीर्य सप्तर्षियों ने अपने कानों के द्वारा अंजनी के गर्भ में स्थपित किया, जिससे यह उत्पन्न हुआ [शिव. शत. २०] । आनंदरामायण के अनुसार, दशरथ के द्वारा किये गये पुत्रकामेष्टियज्ञ में उसे अग्नि से पायस प्राप्त हुआ, जो आगे चल कर उसने अपने पत्‍नियों में बाँट दिया । इसी पायस में कुछभाग एक चील उड़ा कर ले गयी । आगे चल कर, वहीं पायस चील के चोंच से छूट कर तप करती हुयी अञ्जनी के अंजुलि में जा गिरा । उसी पायस के प्रसाद से इसका जन्म हुआ । भविष्यपुराण में इसके कुरूपता की मीमांसा इसे शिव एवं वायु का अंशावतार बता कर की गयी है । एक बार शिव ने अपने रौद्रतेज के रूप में, अंजनी के पति केसरिन् वानर के मुह में प्रवेश किया, एवं उसीके द्वारा अंजनी के साथ संभोग किया । पश्चात् वायु ने भी केसरिन् वानर के शरीर में प्रविष्ट हो कर अंजनी के साथ रमण किया । इन दोन देवताओं के संभोग के पश्चात् अंजनी गर्भवती हुई, एवं उसने एक वानरमुख वाले पुत्र को जन्म दिया, जो हनुमत् नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसका विरूप मुख देख कर अंजनी ने उसे पर्वत के नीचे फेंकना चाहा, किंतु वायु की कृपा से यह जीवित रहा [भवि. प्रति. ४.१३.३१.३६]
हनुमत् , हनूमत् n.  वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत में इसे सर्वत्र ‘वायुपुत्र’, ‘पवनात्मज’, ‘अनिलात्मज’, ‘वानुतय’ आदि उपाधियों से भूषित किया गया है । इसके अतिरिक्त इसे निम्नलिखित नामांतर भी प्राप्त थेः-- १. मारुति, जो नाम इसे मरुतपुत्र होने के कारण, प्राप्त हुआ था; २. हनुमत्, जो नाम इसे इन्द्र के वज्र के द्वारा इसकी हनु टूट जाने के कारण प्राप्त हुआ था; ३.वज्रांग (बजरंग), जो नाम इसे वज्रदेही होने के कारण प्राप्त हुआ था; ४. बलभीम, जो नाम इसे अत्यंत बलशाली होने के कारण प्राप्त हुआ था ।
हनुमत् , हनूमत् n.  यह बाल्यकाल से ही बलपौरुष से युक्त है, जिसके संबंध में चमत्कृतिपूर्ण कथाएँ विभिन्न पुराणों में प्राप्त है । एक बार अमावास्या के दिन अंजनी फल लाने गयी, उस समय भूखा हुआ हनुमत् खाने के लिए फल ढूँढने लगा । पश्चात् उदित होनेवाले रक्तवर्णीय सूर्यबिंब को देख कर यह उसे ही एक फल समझ बैठा, एवं उसे प्राप्त करने के लिए सूर्य की ओर उड़ा । उड़ान करते समय इसने राह में स्थित राहु को धक्का लगाया, जिससे क्रोधित हो कर इंद्र से इसकी शिकायत की । इंद्र ने अपना वज्र इस पर प्रहार किया, एवं यह एक पर्वत पर मूर्च्छित हो कर गिर पड़ा। अपने पुत्र को मूर्च्छित हुआ देख कर वायुदेव इंद्र से युद्ध करने के लिए उद्यत हुआ । यह देख कर समस्त देवगण घबरा गया, एवं अंत में स्वयं ब्रह्मा ने मध्यस्थता कर हनुमत् एवं इंद्र में मित्रता प्रस्थापित की। उस समय इंद्र के सहित विभिन्न देवताओं ने इसे निम्नलिखित अनेकानेक अस्त्र एवं वर प्रदान कियेः-- १. इंद्र -- वज्र से अवध्यत्व एवं हनुमत् नाम; २. सूर्य -- सूर्यतेज का सौवाँ अंश, एवं अनेकानेक शास्त्र एवं अस्त्रों का ज्ञान; ३. वरुण -- वरुणपाशों से अबद्धत्व; ४. यम -- आरोग्य, युद्ध में अजेयत्व एवं चिरउत्साह; ५. ब्रह्मा -- युद्ध में भयोत्पादकत्व, मित्रभयनाशकत्व, कामरूपधारित्व एवं यथेष्टगामित्व; ६. शिव -- दीर्घायुष, शास्त्रज्ञत्व एवं समुद्रोल्लंवनसामर्थ्य [पद्म. पा. ११४] ;[पद्म.उ. ६६] ;[नारद १.७९]
हनुमत् , हनूमत् n.  देवताओं से प्राप्त अस्त्रशस्त्रों के कारण यह अत्यधिक उन्मत्त हुआ, एवं समस्त सृष्टि को त्रस्त करने लगा । एक बार इसने भृगु एवं अंगिरस् ऋषियों को त्रस्त किया, जिस कारण उन्होनें इसे शाप दिया, ‘अपने अगाध दैवी सामर्थ्य का तुम्हें स्मरण न रहेगा, एवं कोई देवतातुल्य व्यक्ति ही केवल उसे पहचान कर उसका सुयोग्य उपयोग कर सकेगा’ ।
हनुमत् , हनूमत् n.  सूर्य ने इसे व्याकरण, सूत्रवृत्ति, वार्तिक, भाष्य, संग्रह आदि का ज्ञान कराया, एवं यह सर्वशास्त्रविद् बन गया । पश्चात् सूर्य की ही आज्ञा से यह सुग्रीव का स्नेही एवं बाद में मंत्री बन गया [शिव. शत. २०] । सीताशोध के लिए किष्किंधा राज्य में आये हुए राम एवं लक्ष्मण से परिचय करने के हेतु सुग्रीव ने इसे ही भेजा था । उस समय भिक्षुक का रूप धारण कर यह पंपासरोवर गया, एवं अत्यंत मार्मिक भाषा में अपना परिचय राम को दे कर, किष्किंधा राज्य में आने का उसका हेतु पूछ लिया ।
हनुमत् , हनूमत् n.  उस समय इसकी वाक्चातुर्य एवं संभाषण पद्धति से राम अत्यधिक प्रसन्न हुआः--अविस्तरमसंदिग्धमविलाभ्बितमव्यथम् । उरस्थं कण्ठगं वाक्यं वर्तते मध्यमस्वरम् ॥ संस्कारक्रमसंपन्नाम्, अद्रुतामविलम्बिताम् । उच्चारयति कल्याणीं वाचं हृदयहर्षिणीम् ॥ [वा. रा. कि. ४.३१-३२] । हनुमत् का संभाषण अविस्तृत, स्पष्ट, सुसंस्कारित एवं सुसंगत है । वह कंठ, हृदय एवं बुद्धि से एकसाथ उत्पन्न हुआ सा प्रतीत होता है । इसी कारण इसका संभाषण एवं व्यक्तित्व श्रोता के हृदय के लिए प्रसन्न, एवं हर्षजनक प्रतीत होता है । पश्चात् इसकी ही सहायता से राम एवं सुग्रीव में मित्रता प्रस्थापित हुई । तदुपरांत राम एवं सुग्रीव में जहाँ कलह के, या मतभेद के प्रसंग आये, उस समय यह उन दोनों में मध्यस्थता करता रहा। वालिन्वध के पश्चात् विषयोपभोग में लिप्त सुग्रीव को इसने ही जगाया, एवं राम के प्रति उसके कर्तव्य का स्मरण दिलाया [वा. रा. कि. २९]
हनुमत् , हनूमत् n.  सीताशोध के लिए दक्षिण दिशा की ओर निलके हुए वानरदल का यह प्रमुख बना, एवं सीताशोध के लिए निकल पड़ा। इस कार्य के लिए जाते समय रास्ते में यह कण्डुक ऋषि का आश्रम, लोध्रवन् एवं सुपर्णवन आदि होता हुआ तपस्विनी स्वयंप्रभा के आश्रम में पहुँच गया । स्वयंप्रभा ने इसे एवं अन्य वानरों को समुद्रकिनारे पहुँचा दिया । वहाँ जटायु का भाई संपाति इससे मिला, एवं सीता का हरण रावण के द्वारा ही किये जाने का वृत्त उसने इसे सुनाया । उसी समय लंका में स्थित अशोकवन में सीता को बंदिनी किये जाने का वृत्त भी इसे ज्ञात हुआ [वा. रा. कि. ४८-५९]
हनुमत् , हनूमत् n.  लंका में पहुँचने में सब से बड़ी समस्या समुद्रोल्लंघन की थी । इसके साथ आए हुए बाकी सारे वानर इस कार्य में असमर्थ थे । अतएव इसने अकेले ही समुद्र लांघने के लिए छलांग लगायी । राह में इसे आराम देने के लिए मेरुपर्वत समुद्र में उभर आया । देवताओं के द्वारा भेजी गयी नागमाता सुरसा ने इसके सामर्थ्य की परीक्षा लेनी चाही, एवं पश्चात् इसे अंगीकृत कार्य में यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया । आगे चल कर लंका का रक्षण करनेवाली सिंहिका राक्षसी इससे युद्ध करना चाही, किन्तु इसने उसे परास्त किया । पश्चात् एक सूक्ष्माकृति मक्खी का रूप धारण कर यह लंब पर्वत पर उतरा, एवं वहाँ से लंका में प्रवेश किया [वा. रा. सुं. १] ;[म. व. २६६] । वहाँ लंकादेवी को युद्ध में परास्त कर यह सीता शोध के लिए निकल पड़ा।
हनुमत् , हनूमत् n.  सीता की खोज करने के लिए इसने लंका के सारे मकान ढूँढे। पश्चात् रावण के सारे महल, शयनागार, भंडारघर, पुष्पक विमान आदि की भी इसने छानबीन की। किन्तु इसे कहीं भी सीता न मिली । इतः सीता की सुरक्षा के संबंध में यह अत्यंत चिंतित हुआ, एवं अत्यंत निराश हो कर वानप्रस्थ धारण करने का विचार करने लगा - हस्तादानो मुखादानों नियतो वृक्षमूलिकः । वानप्रस्थो भविष्यामि अदृष्ट्वा जनकात्मजाम् ॥ [वा. रा. सुं. १३.३८] । सीताशोध के कार्य में अयशस्विता प्राप्त होने के कारण यही अच्छा है कि, मैं वानप्रस्थ का स्वीकार कर, एवं विरागी बन कर यही कहीं फलमूल भक्षण करता रहूँ ।
हनुमत् , हनूमत् n.  अंत में यह नलिनी नदी के तट पर स्थित अशोकवन में पहुँच गया, जहाँ राक्षसियां के द्वारा यातना पाती हुई सीता इसे दिखाई दी । वहाँ एक पेड़ पर बैठ कर इसने रामचरित्र एवं स्वचरित्र का गान किया, एवं अपना परिचय सीता से दिया । राम के द्वारा दी गयी अभिज्ञान की अंगुठी भी इसने उसे दी [वा. रा. सुं. ३२-३५] । पश्चात् अपने पीठ पर बिठा कर सीता को बंधनमुक्त कराने का प्रस्ताव इसने उसके सम्मुख रखा, किन्तु सीता के द्वारा उसे अस्वीकार किये जाने पर (सीता देखिये), इसने उसे आश्वासन दिया कि, एक महीने के अंदर राम स्वयं लंका में आ कर उन्हें मुक्त करेंगे [वा. रा. सुं. ३८]
हनुमत् , हनूमत् n.  सीताशोध का काम पूरा करने के पश्चात् इसने चाहा कि यह रावण से मिले। अपनी ओर रावण का ध्यान खींच लेने के हेतु इसने अशोकवन का विध्वंस प्रारंभ किया । यह समाचार मिलते ही उसने पहले जंबुमालिन्, एवं पश्चात् विरूपाक्षादि पॉंच सेनापतियों के साथ अपने पुत्र अक्ष को इसके विनाशार्थ भेजा। किन्तु इन दोनों का इसने वध किया । पश्चात् इंद्रजित् ने इसे ब्रह्मास्त्र से बाँध कर रावण के सामने उपस्थित किया [वा. रा. सुं. ४१-४७] । रावण ने इसके वध की आज्ञा दी, किन्तु विभिषण के द्वारा समझाये जाने पर इसके वध की आज्ञा स्थगित कर दण्डस्वरूप इसकी पूँछ में लाग लगाने की आज्ञा दी [वा. रा. सुं. ५२] । इस समय अपनी माया से पूँछ बढ़ाने की, एवं रावणसभा में कोलाहल मचाने की चमत्कृतिपूर्ण कथा आनंदरामायण में प्राप्त है [आ. रा. सार. ९] । यहाँ तक की इसने रावण के मूँछदाढ़ी में आग लगायी। पश्चात् इसने अपनी जलती पूँछ से सारी लंका में आग लगायी । पश्चात् इसे यकायक होश आया कि, लंका दहन से सीता जल न जाये । यह ध्यान आते ही, यह पुनः एक बार सीता के पास आया, एवं उसे सुरक्षित देख कर अत्यंत प्रसन्न हुआ । बाद में सीता को वंदन कर एक छलांग में यह पुनः एक बार महेंद्र पर्वत पर आया [वा. रा. सुं. ५७-६१]
हनुमत् , हनूमत् n.  सीता का शोध लगाने का दुर्घट कार्य यशस्वी प्रकार से करने के कारण सुग्रीव ने इसका अभिनंदन किया । पश्चात् राम ने भी एक आदर्श सेवक के नाते इसकी पुनः पुनः सराहना की [वा.रा.यु. १.६-७] । उस समय राम ने कहा, ‘हनुमत् एक ऐसा आदर्श सेवक है, जिसने सुग्रीव के प्रेम के कारण एक अत्यंत दुर्घट कार्य यशस्वी प्रकार से पूरा किया है’ भृत्यकार्य हनुमता सुग्रीववस्य कृतं महत् [वा. रा. यु. १.६]
हनुमत् , हनूमत् n.  इस युद्ध में समस्त वानरसेना का एकमात्र आधार, सेनाप्रमुख एवं नेता एक हनुमत् ही था । इस युद्ध में इसने अत्यधिक पराक्रम दिखा कर निम्नलिखित राक्षसों का वध कियाः-- १. जंबुमालिन् [वा. रा. यु. ४३] ; २. धूम्राक्ष [वा. रा. यु. ५१-५२] ;[म. व. २७०.१४] ; ३. अकंपन [वा. रा. यु. ५५-५६] ; ४. देवान्तक एवं त्रिशिरस् [वा. रा. यु. ६९-७१] ; ५. वज्रवेग [म. व. २७१.२४] । रामरावण युद्ध के छठवे दिन रावण के ब्रह्मास्त्र के द्वारा मूर्च्छित हुए लक्ष्मण को हनुमत् ने ही राम के पास लाया । पश्चात् इसके स्कंध पर आरूढ हो कर राम ने रावण को आहत किया [वा. रा. यु. ५९] ; राम दशरथि देखिये । इंद्रजित के द्वारा किये गये अदृश्ययुद्ध में जब वानरसेना का निर्घृण संहार हुआ, जब इसने ही हिमाचल के वृष शिखर पर जा कर वहाँ से संजीवनी, विशल्यकरिणी, सुवर्णकरिणी, एवं संधानी नामक औषधी वनस्पतियाँ ला कर वानरसेना को जीवित किया [वा. रा. यु. ७४] । पश्चात् युद्ध के अंतिम दिन रावण के द्वारा लक्ष्मण मूर्च्छित होने पर यह पुनः एक बार हिमालय के औषधि पर्वत गया था । काफ़ी ढूँढने पर वहाँ इसे वनस्पतियाँ न प्राप्त हुई। इस कारण सारा शिखर यह अपने बायें हस्त पर उठा कर ले आया [वा. रा. यु. १०१] । वाल्मीकि रामायण के अनुसार, इसने दो बार द्रोणागिरि उठा कर लाया था [वा. रा. यु. ७४,१०१] । युद्ध में इसके दिखाये पराक्रम के कारण राम ने अत्यधिक प्रसन्न हो कर कहा थाः- न कालस्य, न शक्रस्य, न विष्णोर्वित्तपस्य च। कर्माणि तानि श्रूयन्ते यानि युद्धे हनूमतः॥ इस युद्ध में हनुमत् ने जो अत्यधिक पराक्रम दिखाया है, वह इंद्र, विष्णु एवं कुबेर के द्वारा भी कभी किसी युद्ध में नहीं दिखाया गया है ।
हनुमत् , हनूमत् n.  युद्ध समाप्त होने पर अयोध्या के सभी लोगों का कुशल देख आने के लिए, एवं भरत को अपने आगमन की सूचना देने के लिए राम ने इसे भेजा था [वा. रा. यु. १२५-१२७] ;[म. व. २६६] । राम के राज्याभिषेक के समय इसने समुद्र का जल लाया था, जिसके फलस्वरूप सीता ने इसे अपना हार इसे भेंट में दिया था ।
हनुमत् , हनूमत् n.  प्राचीन वाङ्य़म में इसे सर्वत्र ‘ब्रह्मचरिन्’, ‘जितेंदिय’, ‘ऊर्ध्वरेतस्’ आदि ‘उपाधियों’ से भूषित किया गया है । राम के अश्वमेधीय यज्ञ के समय हुए युद्ध में शत्रुघ्न आहत हुआ, उस समय इसने अपने ब्रह्मचर्य के बल से उसे पुनः जीवित किया था [पद्म. पा. ४५.३१]
हनुमत् , हनूमत् n.  प्राचीन साहित्य में इसे सर्वत्र चिरंजीव माना गया है । इसके चिरंजीवत्त्व के संबंध में एक कथा पद्म में दी है । युद्ध के पश्चात् राम की सेवा करने के हेतु, यह उसके साथ ही अयोध्या में रहने लगा। इसकी सेवावृत्ति से प्रसन्न हो कर राम ने इसे ब्रह्मविद्या प्रदान की, एवं वर प्रदान दिया, ‘जब तक रामकथा जीवित रहेगी तब तक तुम अमर रहोंगे’ [पद्म. उ. ४०] । किंतु पद्म में अन्यत्र राम-रावणयुद्ध के पश्चात्, इसका सुग्रीव के साथ किष्किंधा में निवास करने का निर्देश प्राप्त है [पद्म. सृ. ३८] । महाभारत में इसे चिरंजीव कहा गया है, एवं इसका स्थान अर्जुन के रथध्वज पर वर्णन किया गया है । [म. व. १४७.३७] । इसके द्वारा भीम का गर्वहरण करने का निर्देश महाभारत में प्राप्त है [म. व. १४६. ५९-७९]
हनुमत् , हनूमत् n.  इसे ग्यारहवाँ व्याकरणकार कहा गया है, एवं इसके द्वारा विरचित ‘महानाटक’ अथवा ‘हनुमन्नाटक’ का निर्देश प्राप्त है ।
हनुमत् , हनूमत् n.  इसके ब्रह्मचारी होने के कारण इसका अपना परिवार कोई न था । फिर भी इसके पसीने के एक बूँद के द्वारा एक मछली से इसे मकरध्वज अथवा मत्स्यराज नामक एक पुत्र उत्पन्नहोने का निर्देश आनंदरामायण में प्राप्त है [आ. रा. ७.११] ; मकरध्वज देखिये ।
हनुमत् , हनूमत् n.  तुलसी के मानस में चित्रित किया गया हनुमत् एक सेनानी नहीं, बल्कि अधिकतर रूप में राम का परमभक्त है । यद्यपि मानस में इसके समुद्रोल्लंघन अशोक वाटिकाविध्वंस, लंकादहन, मेघनादयुद्ध, कुंभकर्णयुद्ध आदि पराक्रमों का निर्देश प्राप्त है, फिर भी इन सारे पराक्रमों की सही पार्श्र्वभूमि इसकी राम के प्रति अनन्य भक्ति की है । इसी कारण तुलसी कहते हैः-- महावीर विनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आपु बरवाना । [मानस. १.१६.१०]

Related Words

હિલાલ્ શુક્લ પક્ષની શરુના ત્રણ-ચાર દિવસનો મુખ્યત   ନବୀକରଣଯୋଗ୍ୟ ନୂଆ ବା   વાહિની લોકોનો એ સમૂહ જેની પાસે પ્રભાવી કાર્યો કરવાની શક્તિ કે   સર્જરી એ શાસ્ત્ર જેમાં શરીરના   ન્યાસલેખ તે પાત્ર કે કાગળ જેમાં કોઇ વસ્તુને   બખૂબી સારી રીતે:"તેણે પોતાની જવાબદારી   ਆੜਤੀ ਅਪੂਰਨ ਨੂੰ ਪੂਰਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ   బొప్పాయిచెట్టు. అది ఒక   लोरसोर जायै जाय फेंजानाय नङा एबा जाय गंग्लायथाव नङा:"सिकन्दरनि खाथियाव पोरसा गोरा जायो   आनाव सोरनिबा बिजिरनायाव बिनि बिमानि फिसाजो एबा मादै   भाजप भाजपाची मजुरी:"पसरकार रोटयांची भाजणी म्हूण धा रुपया मागता   नागरिकता कुनै स्थान   ३।। कोटी   foreign exchange   foreign exchange assets   foreign exchange ban   foreign exchange broker   foreign exchange business   foreign exchange control   foreign exchange crisis   foreign exchange dealer's association of india   foreign exchange liabilities   foreign exchange loans   foreign exchange market   foreign exchange rate   foreign exchange regulations   foreign exchange reserve   foreign exchange reserves   foreign exchange risk   foreign exchange transactions   foreign goods   foreign government   foreign henna   foreign importer   foreign income   foreign incorporated bank   foreign instrument   foreign investment   foreign judgment   foreign jurisdiction   foreign law   foreign loan   foreign mail   foreign market   foreign matter   foreign minister   foreign mission   foreign nationals of indian origin   foreignness   foreign object   foreign office   foreign owned brokerage   foreign parties   foreign periodical   foreign policy   foreign port   foreign possessions   foreign post office   foreign public debt office   foreign publid debt   foreign remittance   foreign ruler   foreign section   foreign securities   foreign service   foreign state   foreign tariff schedule   foreign tourist   foreign trade   foreign trade multiplier   foreign trade policy   foreign trade register   foreign trade zone   foreign travel scheme   foreign value payable money order   foreign venture   foreimagine   fore-imagine   forejudge   fore-judge   foreknow   fore-know   foreknowledge   foreknown   forel   foreland   foreland shelf   forelimb   fore limb   forelock   foreman   foreman cum mechanical supervisor   foreman engineer   foremanship   foremast   fore-mentioned   foremilk   foremost   forename   forenamed   
Folder  Page  Word/Phrase  Person

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP