मंकणक

भक्तो और महात्माओंके चरित्र मनन करनेसे हृदयमे पवित्र भावोंकी स्फूर्ति होती है ।


पुण्यसलिला सरस्वती नदीके किनारे एक परम तपस्वी मंकणक नामके ब्राह्मण रहते थे । एक दिनकी बात है, अपने नित्य नैमित्तिक कर्मके लिये कुश लाते समय कुशकी नोक उनके हाथमें गड़ गयी । उनके हाथोंसे खून बहने लगा । उसे देखकर उन्हें इतनी प्रसन्नता हुई कि वे हर्षावेशमें नाचने लगे । उनकी तपस्याके प्रभावसे प्रभावित होनेके कारण स्थावर - जंगम सम्पूर्ण जगत् ही उनके नृत्यकी गतिमें गति मिलाकर नृत्य करने लगा । उनके तेजसे सभी मोहित हो गये । उस समय इन्द्रादि देवगण एवं तपोधन ऋषियोंने मिलकर ब्रह्मासे प्रार्थना की कि ' आप ऐसा उपाय करें कि इनका नृत्य बंद हो जाय ।' ब्रह्माने इसके लिये रुद्रसे कहा, क्योंकि मंकणकजी भगवान् रुद्रके परम भक्त थे । ब्रह्माकी बात मानकर रुद्रदेव वहाँ गये और उन ब्राह्मण देवतासे कहा - ' विप्रश्रेष्ठ ! तुम किसलिये नृत्य कर रहे हो ? देखो, तुम्हारे नृत्य करनेसे सारा जगत् नृत्य कर रहा है ।' रुद्रदेवकी इस बातको सुनकर मंकणकने कहा - ' क्या आप नहीं देख रहे हैं कि मेरे हाथसे खून बह रहा है ? उसीसे प्रसन्न और हर्षाविष्ट होकर मैं नाच रहा हूँ ।' महादेवने कहा - ' ब्राह्मण ! तुम देखते नहीं कि तुम्हारे इस अखण्ड नृत्यसे मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ है ? तुम मेरी ओर देखो तो सही ।' मंकणक सोचने लगे - ' ये कौन हैं, जो मुझे नाचनेसे रोक रहे हैं ।' उस समय महादेवने अपनी अँगुलियोंके अग्रभागसे अपने अँगूठेको दबाया और उससे उसी समय बरफके समान श्वेत वर्णका भस्म निकलने लगा । यह देखकर उन ब्राह्मण देवताको बड़ी लजा आयी और वे घबराकर महादेवके चरणोंमें गिर पड़े । उनके मुँहसे बरबस ये शब्द निकल पड़े - ' प्रभो ! आपसे बढ़कर और कोई देवता है ही नहीं । सारे जगतके आधार आप ही हैं; आप ही इसकी सृष्टि, स्थिति और प्रलय करते हैं । प्रभो ! मैंने आपके सामने बड़ा अपराध किया है । मुझसे अनजानमें आपका बड़ा अपमान हो गया है, मुझ बालककी चूकपर दृष्टि न डालिये । क्षमा कीजिये । क्षमा कीजिये ।'

भगवान् शङ्करने बड़ी प्रसन्नतासे कहा - ' ब्राह्मणदेव ! इसमें अपराधकी क्या बात है ? आवेशके कारण तुम नाच रहे थे, ऐसी स्थितिमें अपमानकी तो कोई बात ही नहीं है । मेरी इच्छासे नृत्य बंद कर देनेके कारण मैं तुमपर अत्यन्त प्रसन्न हूँ । यह तुम्हारी तपस्या और भी हजारो गुना बढ़ जाय । इस प्राची सरस्वतीके किनारे ही मैं सर्वदा तुम्हारे साथ निवास करुँगा ।' इतना कहकर शङ्करने सरस्वती नदीकी और भी महिमा बतलायी तथा ब्राह्मण मंकणकपर महान् भक्तवत्सलता प्रकट करके आशुतोष भगवान् शङ्कर उन्हींके साथ वहीं निवास करने लगे । आज भी भगवान् शङ्कर अपने आज्ञाकारी भक्त मंकणकके साथ सरस्वतीतटपर विचरते रहते हैं ।

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Last Updated : April 29, 2009

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