कबीरजी

भक्तो और महात्माओंके चरित्र मनन करनेसे हृदयमे पवित्र भावोंकी स्फूर्ति होती है ।


उच्चश्रेणीके भक्तोंमें कबीरजीका नाम बहुत आदर और श्रद्धाके साथ लिया जाता है । इनकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें कई प्रकारकी किंवदन्तियाँ हैं । कहते हैं, जगद्गुरु रामानन्द स्वामीके आशीर्वादसे ये काशीकी एक विधवा ब्राह्मणीके गर्भसे उत्पन्न हुए । लज्जाके मारे वह नवजात शिशुको लहरताराके तालके पास फेंक आयी । नीरु नामका एक जुलाहा उस बालकको अपने घर उठा लाया, उसीने बालकको पालाबोसा । यही बालक ' कबीर ' कहलाया । कुछ कबेरपत्नी महानुभावोंकी मान्यता है कि कबीरका आविर्भाव काशीके लहरतारा तालाबमें कमलकें एक अति मनोहर पुष्पके ऊपर बालकरुपमैं हुआ था । एक प्राचीन ग्रन्थमें ल्खा है कि किसी महान् योगीके औरस और प्रतीचि नामक देवाङ्गनाके गर्भसे भक्तराज ब्रह्लाद ही कबीरके रुपमें संवत् १४५५ ज्येष्ठ शुक्ला १५ को प्रकट हुए थे । प्रतीचिने उन्हें कमलके पत्तेपर रखकर लहरतारा तालाबमें तैरा दिया था और नीरु - नीमा नामके बुलाहा - दग्पती जबतक आकर उस बालकको नहीं ले गये, तबतक प्रतीचि उनकी रक्षा करती रही । कुछ लगोंका यह भी कथन है कि कबीर जन्मसे ही मुसल्मान थे और सयाने होनेपर स्वामी रामानन्दके प्रभावसें आकर उन्होंने हिंदूधर्मकी बातें जानी । ऐसा प्रसिद्ध है कि एक दिन एक पहर रात रहते ही कबीर पञ्चगङ्गाघाटकी सीढियोंपर जा पड़े । वहींसे रामानन्दजी स्नान करनेके लिये उत्तरा करते थे । रामानन्दजीका पैर कबीरके इसे ही श्रीगुरुमुखसे प्राप्त दीक्षामन्त्र मान लिया और स्वामी रामानन्दजीको अपना गुरु कहने लगे । स्वयं कबीरके शब्द हैं --

' हम कासी में प्रगट भये हैं, रामानंद चेताये ।'

मुसल्मान कबीरपन्थियोंकी मान्यता है कि कबीरने प्रसिद्ध सूफी मुसल्मान फकीर शेख तकीसे दीक्षा ली थी । परंतु कबीरने शेख तकीका नाम उतने आदरसे नहीं लिया है, जितना स्वामी रामानन्दका । इसके सिवा कबीरने पीर पीराम्बरका नाम भी विशेष आदरसे लिया है । इन बातोंसे यही सिद्ध होता है कि कबीरने हिंदू - मुसल्मानका भेदभाव मिटाकर हिंदू - भक्तों तथा मुसलिम फकीरोंका सत्संग किया और उनसे जो कुछ भी तत्त्व प्राप्त हुआ, उसे हदयङ्गम किया ।

जनश्रुतिके अनुसार कबीरके एक पुत्र और एक पुत्री थी । पुत्रका नाम था कमाल और पुत्रीका कमाली । इनकी स्त्रीका नाम ' लोई ' बतलाया जाता है । इस छोटे - से परिवारके पालनके लिये कबीरको अपने करघ पर कठिन परिश्रम करना पड़ता था । घरमें साधु - संतोंका जमघट रहता ही था । इसलिये कभी - कभी इन्हें फाकेमस्तीका मजा भी मिला करता था । कबीर ' पढ़े - लिखे ' नहीं थे । स्वयं उन्हीके शब्द हैं --

' मसि कागद छूयो नहीं, कलम गही नहिं हाथ ।'

कबीरकी वाणीका संग्रह ' बीजक ' के नामसे प्रसिद्ध है । इसके तीन भाग हैं -- रमैनी, सबद और साखी । भाषा खिचड़ी है -- पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, व्रजभाषा आदि कई बोलियोंका पँचमेल है । भाषा साहित्यिक न होनेपर भी बहुत ही जोरदार तथा पुरअसर है । कबीरको शान्तिमय जीवन बहुत प्रिय था और अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि सदगुणोंके ये उपासक थे ।

कबीरने परमात्माको मित्र, माता, पिता और पति आदि रुपोंमें देखा है । कभी वे कहते हैं ' हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया ' और कभी कहते हैं ' हरि जननी, मैं बालक तोरा ।' उनकी उलटवाणियोंमें उनका भगवानके साथ जो मधुर प्रगाढ़ सम्बन्ध था, उकी बहुत सुन्दर व्यञ्जना हुई है । अपनी सरलता, साधुस्वभाव और निश्छल संतजीवनके कारण ही कबीर आज भारतीय जनसमुदायमें ही क्यों, विदेशोंमें भी लोगोंके कण्ठहार वन रहे हैं । इधर यूरोपवालोंने भी कबीरके महत्त्वको कुछ - कुछ अब समझा है ।

बुढ़ापेमें कबीरके लिये काशीमें रहना लोगोंने दूभर कर दिया था । यश और कीर्तिकी उनपर वृष्टि - सी होने लगी । कबीर इससे तंग आकर मगहर चले आये । १९९ वर्षकी अवस्थामें मगहरमें ही उन्होंने शरीर छोड़ा ।

संत - शिरोमणि कबीरका नाम उनकी सरलता और साधुताके लिये संसारमें सदा अमर रहेगा । उनकी कुछ साखियोंकी बानगी लीजिये --

ऐसा कोई ना मिला, सत्त नाम का मीत ।

तन मन सौर्प मिरग ज्यौं, सुनै बधिक का गीत ॥

सुख के माथे सिल परौ, जो नाम हदय से जाय ।

बलिहारी वा दुःख की, ( जो ) पल पल नाम रटाय ॥

तन थिर, मन थिर, बचन थिर, सुरत निरत थिर होय ।

कह कबीर इस पलक को, कलप न पावै कोय ॥

माली आवत देखि कै, कलियाँ करैं पुकारि ।

फूली फूली चुनि लिये, कालिह हमारी बारि ॥

सोऔं तो सुपिने मिलै, जागौं तो मन माहिं ।

लोचन राता, सुधि हरी, बिछुरत कबहूँ नाहिं ॥

हँस हँस कंत न पाइया, जिन पाया तिन रोय ।

हाँसी खेले पिउ मिलैं तो कौन दुहानिनि होय ॥

चूड़ी पटकौं प्लँग से, चोली लावौं आगि ।

जा कारन यह तन धरा, ना सूती गल लानि ॥

सब रग ताँत, रबाब तन, विरह बजावै नित्त ।

और न कोई सुनि सर्क, कै साईं, कै चित्त ॥

कबीर प्याला प्रेम का, अंतर लिया लगाय ।

रोम रोम में रमि रहा, और अमल क्या खाय ॥

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Last Updated : April 28, 2009

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