केशव भट्ट काश्मीरी

भक्तो और महात्माओंके चरित्र मनन करनेसे हृदयमे पवित्र भावोंकी स्फूर्ति होती है ।


जिस समय शस्यश्यामला स्वर्णिम बंगभूमि श्रीगौराङ्ग महाप्रभुकी कीर्तन - माधुरीका रसास्वादन कर रही थी, नवद्वीपके बड़े - बड़े न्यायशास्त्री और दर्शनवेत्ता तर्क और शास्त्रार्थसे संन्यास लेकर भक्ति - कल्पलताकी शीतल छायामें विश्राम करते हुए भगवान् श्रीकृष्णकी लीलाका मधुर गान कर रहे थे, ठीक उसी समय उत्तरापथमें दिग्विजयकी विजयिनी पताका फहराते हुए एक बहुत बड़े शिष्यसमूहके साथ चौडोल पालकीपर चढ़कर पण्डितराज केशव काश्मीरीने पुण्यसलिला भगवती भागीरथीके मनोरम तटपर नवद्वीपमें शास्त्रार्थकी शङ्खध्वनि की । न्यायका गढ़ नवद्वीप हिल उठा, इतने बड़े शास्त्रवेत्तासे लोहा लेना अत्यन्त कठिन था । महापण्डितने देखा नवद्वीपसे एक बहुत बड़ा जनसमूह श्रीकृष्णका पवित्र, मधुमय और आनन्दमय नाम उच्चारण करता हुआ उनके निवासकी ओर चला रहा है । लोगोंके आगे - आगे उन्होंने एक ऐसे युवकको प्रमत्त नृत्य करते हुए आते देखा, जिसका शरीर तप्त हेमवर्णका - सा था, गलेमें पुष्पोंका आकर्षक हार था, अधरोंमें हरिनामकी पवित्र भागीरथीके निनादका आलोडन था, मुसकानकी ज्योतिर्मयी किरणोंकी तरङ्गमें अङ्ग - अङ्ग आप्लावित थे । वे सहज ही इस दिव्य, तेजःपुञ्ज विलक्षण युवककी ओर आकृष्ट हो गये; हाथ चरणधूलि मस्तकपर चढ़ानेके लिये चञ्चल हो रहे थे, पर प्रकाण्ड शास्त्रज्ञानके गर्वभारसे इतने दबे हुए थे कि धरतीका स्पर्श न कर सके । विनम्रताने दिग्विजयी पण्डितका वरण तो किया, पर जयपत्रके स्वाभिमानका मद नयनोंसे उत्तर न सका । मन कहता था कि आलिङ्गन करना चाहिये, पर जन - समूहके विनम्र संकोचने ऐसा करने नहीं दिया । युवक गौराङ्गने अपना परिचय दिया । केशव काश्मीरीने शास्त्रार्थ करनेकी इच्छा प्रकट की । ( निमाई पण्डित ) चैतन्यका न्याय - पाण्डित्य तो चारों ओर चलाकर केशव काश्मीरीसे कलिमलहारिणी, अच्युतचरणतरङ्गिणी भगवती गङ्गाकी महिमा वर्णन करनेका विनम्रतापूर्वक निवेदन किया । केशव काश्मीरीने आशुकवित्व - शक्तिके सहारे गङ्गाजीके स्वरुप - चित्रणमें सौ श्लोक नये - नये रचकर तुरंत सुना दिये, पर इतनेसे ही उन्हें संतोष न हुआ । उन्होंने गौराङ्गसे अपने श्लोकोंमें दोष निकालनेके लिये कहा । महाप्रभुने दोष बतलाये, उनके मुखसे उचित और युक्तिसंगत दोष सुनकर वे आश्चर्यचकित हो गये, उनका मुख लज्जासे लाल होकर अवनत हो गया । मनमें सरस्वतीका स्मरण किया, अपनी हारपर उन्हें बड़ी ग्लानि हो रही थी । सरस्वतीदेवीके स्मरणसे उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीचैतन्य असाधारण अलौलिक पुरुषोत्तम ही हैं । उनकी विद्वत्ताका मद उतर गया, ज्ञान भक्तिके सामने विनत हो गया । केशव काश्मीरीने गौराङ्गके चरण पकड़कर आत्मोद्धारकी भिक्षा माँगी, जनसमूहने जयध्वनि की । श्रीगौराङ्गने कहा कि ' भविष्यमें न तो आप शास्त्रार्थ करें और न किसी व्यक्तिको हरानेकी चेष्टा करे । श्रीकृष्णके चरण - चिन्तन माधुर्यका आस्वादन ही भवसागरसे आगम - निगम सभी शास्त्र श्रीकृष्णकी महिमाका कीर्तन गति हैं । वे ही जगतके जीवनस्वरुप हैं । जिस व्यक्तिकी मतिगतिश्रीकृष्णचरणमें नहीं है, वह सब शास्त्रोंका ज्ञाता होकर भी शास्त्रके वास्तविक रसका आस्वादन नहीं कर सकता । श्रीकृष्णका भजन छोड़कर जो व्यक्ति शास्त्रकी आलोचनामें ही कुशल है, वह निरे गदहेके समान ज्ञान - भारका वहन करता है । सिद्धवर्णीका समाम्नाय तो श्रीकृष्णकी ही कृपा - दृष्टिमें होता ।' केशव काश्मिरी श्रीचैतन्यमहाप्रभुके शिष्य हो गये । श्रीकृष्णके परमनुतागने किलेमें आप - से - आप बंद हो गये । श्रीकृष्ण - भक्तिकी माधुरीके प्रचारमें उन्होंने महान् योग दिया ।

केशव काश्मीरीके समयमें भारतका अधिकांश म्लेच्छा क्रान्त था, स्थान - स्थानपर वैदिक परम्पराकी कड़ी, विधर्मियोंद्वारा तोड़नेका दुस्साहस चल रहा था । भगवानके श्रीकृष्णके पवित्र लेला - क्षेत्र मथुरामण्डलको भ्रष्ट करनेकी चेष्टामें यवनोंका बहुत बड़ा हाथ था । कलिन्दन्दन्दिके तटख्य विश्रामपाटपर जनका एक समूह कुतकों तथा अन्यान्य उपायोंसे हिंदुओंको धर्मच्युत होनेके लिये विवश कर रहा था । उत्तरायणकी हिंदू जनताने पशुरामण्डलकी पवित्रताको अक्षुण्ण रखनेके लिये दिग्विजयी महापण्डित परम भागवत केशव काश्मीरीका दरवाजा खटखटाया । केशव काश्मीरीने सदल - बल उपस्थित होकर विश्रामभाटपर अधिकार करके उन लोगोंको मथुरामण्डलसे बाहर कर दिया, उनके पडयन्त्रका जनाजा निकाल दिया और व्रजभूमिकी भक्तिमती पवित्रता और भगदीयताका संरक्षण किया ।

केशव काश्मीरीका नाम श्रीचैतन्यके तत्कालिनी अनुयायियों और भक्तोंकी श्रेणीमें श्रद्धापूर्वक लिया जाता है । वे भगवान् श्रीकृष्णके परक भक्त थे, चैतन्यकी दिव्यताके प्रचारक थे और सिद्ध भागवत थे ।

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Last Updated : April 28, 2009

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